झारखण्ड की डेमोग्राफी में भयंकर बदलाव से आदिवासियों की स्थिति भयावह : बंधु तिर्की
़भावनात्मक मुद्दों के नीचे दब गयी आदिवासियों की विकट आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक परिस्थिति एवं विस्थापन-पलायन जैसी बातें
रांची . पूर्व मंत्री, झारखण्ड सरकार की समन्वय समिति के सदस्य एवं झारखण्ड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने कहा है कि रांची सहित पूरे झारखण्ड में आदिवासियों का विस्थापन, पलायन और रांची सहित पूरे झारखण्ड में डेमोग्राफी में भयंकर बदलाव के कारण आदिवासियों की स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण बन गयी है. श्री तिर्की ने कहा कि जिन आदिवासियों के लिये झारखण्ड का निर्माण किया गया था आज वही आदिवासी हाशिये पर चले गये हैं और जिस प्रकार से आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को कुचलने की साज़िश रची जा रही है उसके कारण आनेवाले दिनों में झारखण्ड के आदिवासियों का भविष्य अंधकारमय है.
श्री तिर्की ने कहा कि भाजपा के नेताओं विशेष रूप से इसके प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, डेमोग्राफी जैसे बेहद गंभीर और संवेदनशील मुद्दे को राजनीति से अलग रखें. उन्होंने कहा कि जब भी झारखण्ड के डेमोग्राफी की बात होती है तो भाजपा और उसके नेताओं को केवल संथाल के साहेबगंज, पाकुड़ और उसके आसपास के क्षेत्रों की याद आती है जबकि देखते-देखते इन 23 वर्षों में न केवल राजधानी रांची बल्कि धनबाद, जमशेदपुर, हजारीबाग जैसे नगरों के साथ ही सम्पूर्ण झारखण्ड की डेमोग्राफी में नकारात्मक और ख़तरनाक बदलाव हुआ है जो आदिवासियों के लिये आत्मघाती है. उन्होंने कहा कि यदि राजधानी रांची की ही बात की जाये तो रांची के हेसल, हेहल, मधुकम, चडरी, पुरनकी रांची, करमटोली, बरियातु, हेसाग, कडरू, अरगोड़ा, मोरहाबादी, हातमा, गोंदा, पंडरा, कमड़े, रातू सहित प्रत्येक क्षेत्र की डेमोग्राफी बदल गयी और आदिवासियों को अपनी जमीन से बेदखल कर अप्रत्यक्ष रूप से जबरदस्ती उन्हें पलायन और विस्थापन के लिये मजबूर किया जा रहा है. श्री तिर्की ने कहा कि केन्द्र सरकार एवं भारतीय जनता पार्टी जिस प्रकार से प्रत्येक मुद्दे को धार्मिक एवं जातिगत रंग देती है उसके कारण भावनात्मक दृष्टिकोण से आनेवाले विषयों के आगे आदिवासियों के पारंपरिक, सांस्कृतिक एवं संवैधानिक अधिकार दबते जा रहे हैं और यह स्थिति ख़तरनाक है. उन्होंने कहा कि आदिवासियों को उनका संवैधानिक अधिकार देने और उसके विषय में उन्हें जागरूक करने की बजाय उन्हें भावनात्मक मुद्दों पर भड़काया जा रहा है और इस बात का पूरा प्रयास किया जा रहा है कि भावनात्मक मुद्दों के आगे सभी ज्वलंत मुद्दे दब जायें व वे भ्रमित ही रहें जिससे किसी भी दृष्टिकोण से आदिवासी जागरूक नहीं हों. श्री तिर्की ने कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि पेसा कानून, पाँचवी अनुसूची जैसे मामलों के प्रति केन्द्र सरकार का रवैया पूरी तरह से उपेक्षापूर्ण है और आदिवासियों और उनके मुद्दों को उपेक्षा की दृष्टि से देखा जा रहा है. उन्होंने कहा कि आज परिस्थिति ऐसी हो गयी है जहाँ आदिवासियों के संवैधानिक अधिकार पर खतरा है वहीं उनकी परंपरा के संरक्षण का सवाल भी बहुत गंभीर होता जा रहा है. श्री तिर्की ने कहा कि भावनात्मक मुद्दों के कारण विस्फोटक स्थिति तैयार हो रही है क्योंकि जहाँ एक ओर लोगों की मूलभूत ज़रूरतें पूरी नहीं हो रही है वहीं दूसरी ओर जब भी बहस की स्थिति आती है तो केवल और केवल प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से मंदिर, मस्जिद, हिंदू, मुस्लिम पर केंद्रित मुद्दे ही सामने आते हैं जिसके कारण सभी लोगों विशेषकर आदिवासियों में बेहद आक्रोश है. उन्होंने कहा कि भाजपा और संघ परिवार, राष्ट्रवाद के नाम पर अंध राष्ट्रवाद एवं ध्रुवीकरण का जहरीली हवा को वातावरण में घोल रही है जिसका असर पूरे समाज में नज़र आ रहा है. श्री तिर्की ने कहा कि जिस प्रकार से यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) को संसद में लाने और उसके लागू करने की चर्चा की जाती है और भाजपा-संघ परिवार द्वारा उसके लिये माहौल बनाने का प्रयास करने के साथ उसे कानून बनाकर लागू करने की योजना बनायी जा रही है, उसके कारण आदिवासी ही सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे क्योंकि इससे उनके शादी-विवाह, रीति-रिवाज, पूजा-पाठ, परंपरागत गोद लेने की पद्धति आदि भी गहराई तक प्रभावित होगी. उन्होंने कहा कि यूसीसी के लागू होने से आदिवासी समुदाय को चौतरफा संकटों का सामना करना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि देश के विभिन्न राज्यों में अबतक आदिवासी जन समुदाय की एक बड़ी आबादी अपने जंगल से अलगाव, ज़मीन से विस्थापन, भाषा-संस्कृति के साथ अपनी पहचान को बचाने और जीवन जीने की न्यूनतम जरुरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रही है. इसके अलावा आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर जमीन अधिग्रहण, औद्योगीकरण, सिंचाई परियोजना, रेल परियोजना, विद्युत परियोजना आदि की आड़ में आदिवासी समुदाय की एक बड़ी आबादी को विस्थापन और पलायन को मजबूर होना पड़ा है जिसका दंश आज भी आदिवासी समुदाय झेल रहा है. उन्होंने कहा कि आज कारपोरेट एवं औद्योगिक घरानों की बुरी नजर आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधनों पर है जो खतरनाक है.
No comments:
Post a Comment