Sunday, 7 January 2024

बीआईटी मेसरा के शिक्षक मिनाल पाठक "रावा " पुरस्कार से सम्मानित

राची, झारखण्ड  | जनवरी  | 07, 2024 :: 
आनंद मार्ग के विश्व मंच पर बीआईटी मेसरा के शिक्षक मिनाल पाठक सभ्यता ,संस्कृति के क्षेत्र में काम करने के लिए "रावा " पुरस्कार से श्रद्धेय पुरोधा प्रमुख के हाथों सम्मानित हुए



मनुष्य जब पूर्ण भाव से प्रभात संगीत के साथ  खड़ा हो जाता है, तो रेगिस्तान भी हरा हो जाता है ।


 * मनुष्य जीवन की यात्रा विशेषकर अध्यात्मिक पगडंडियां प्रभात संगीत के सूर से सुगंधित हो उठता है।


 * प्रभात संगीत मानव मन में ईश्वर प्रेम के प्रकाश फैलाने का काम करता है।



 * मनुष्य के मन में ईश्वर के लिए उठने वाले हर प्रकार के भाव को सुंदर भाषा और सूर में  लयबद्ध कर प्रभात संगीत के रूप में प्रस्तुत है





निकटवर्ती आनंद मार्ग प्रचारक संघ विश्वस्तरीय मुख्यालय आनंद नगर में
आज आनंद मार्ग के विभिन्न कार्यक्रमों में प्रभात संगीत आधारित नृत्य नाटिका एवं प्रभात संगीत प्रस्तुत किए गए आज इन सभी कार्यक्रमों का अंतिम दिन था 
"रीनासा आर्टिस्ट एंड राइटर्स एसोसिएशन" के कलाकारों के कलाकारों ने पिछले 1 महीने से विभिन्न राज्यों एवं देश विदेश के कलाकारों ने प्रभात संगीत पर आधारित नृत्य एवं संगीत का अभ्यास किया प्रभात संगीत पर आधारित एक वर्कशॉप  चलाया जा रहा था जिसका संचालन बीआईटी मेसरा के प्रोफेसर मिनाल पाठक कर रहे थे , सभी कलाकारों ने अपने प्रस्तुति दिखलाई 

आनंद मार्ग के विश्व मंच पर बीआईटी मेसरा के प्रोफेसर मिनाल पाठक सभ्यता ,संस्कृति के क्षेत्र में काम करने के लिए "रावा " पुरस्कार से श्रद्धेय पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत के हाथों सम्मानित हुए

आनंद मार्ग की सांस्कृतिक संस्था
"रावा" रीनासा आर्टिस्ट एंड राइटर्स एसोसिएशन 

आचार्य रमेंद्रनंद अवधूत ने कहा की भगवान श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने सभ्यता एवं संस्कृति के पतन को रोकने के लिए"रीनासा आर्टिस्ट एंड राइटर्स एसोसिएशन"की स्थापना की जो की आनंद मार्ग प्रचारक संघ की सांस्कृतिक संस्था है , उन्होंने कहा कि 
आज से लगभग 7000 वर्ष पूर्व भगवान सदाशिव ने सरगम का आविष्कार कर मानव मन के सूक्ष्म अभिव्यक्तियों को प्रकट करने का सहज रास्ता खोल दिया था। इसी कड़ी में 14 सितंबर 1982 को झारखंड राज्य के देवघर में आनंद मार्ग के प्रवर्तक भगवान श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने प्रथम प्रभात संगीत" बंधु हे निये चलो" बांग्ला भाषा में देकर मानव मन को भक्ति उनमुख कर दिया। 
8 वर्ष 1 महीना 7 दिन के छोटे से अवधि में उन्होंने 5018 प्रभात संगीत का अवदान मानव समाज को दिया। आशा के इस गीत को गाकर कितनी जिंदगियां संवर गई। प्रभात संगीत के भाव ,भाषा, छंद, सूर एवं लय अद्वितीय और अतुलनीय है। बांग्ला, उर्दू , हिंदी, अंगिका ,मैथिली, मगही एवं अंग्रेजी भाषा में प्रस्तुत प्रभात संगीत मानव मन में ईश्वर प्रेम के प्रकाश फैलाने का काम करता है। संगीत साधना में तल्लीन साधक को एक बार प्रभात संगीत रूपी अमृत का  स्पर्श पाकर अपनी साधना को सफल करना चाहिए।
 इस पृथ्वी  पर उपस्थित मनुष्य के मन में ईश्वर के लिए उठने वाले हर प्रकार के भाव को सुंदर भाषा और सूर में  लयबद्ध कर प्रभात संगीत के रूप में प्रस्तुत कर दिया।
उन्होंने कहा कि कोई भी मनुष्य जब पूर्ण भाव से प्रभात संगीत के साथ  खड़ा हो जाता है, तो रेगिस्तान भी हरा हो जाता है।
संगीत तथा भक्ति संगीत दोनों को ही रहस्यवाद से प्रेरणा मिलती रहती है। जितनी भी सूक्ष्म तथा दैवी अभिव्यक्तियां हैं, वह संगीत के माध्यम से ही अभिव्यक्त हो सकती है। मनुष्य जीवन की यात्रा विशेषकर अध्यात्मिक पगडंडियां प्रभात संगीत के सूर से सुगंधित हो उठता है।आजकल प्रभात संगीत एक नये घराने के रूप में लोकप्रिय हो रहा है ।

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