योगविद्या के संरक्षक योगविभूति परमहँस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती नाशा के मार्गदर्शक हैं।
11 जनवरी को जनकल्याणार्थ स्वामी निरंजनानंद सरस्वती 55 वर्ष पूर्व मुंगेर में अपने गुरु सत्यानन्द सरस्वती से संन्यास की दीक्षा ग्रहण की थी।
स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के संन्यास दिवस पर आज डीएवी कपिलदेव राँची में मेडिटेशन वर्कशॉप का आयोजन आचार्य मुक्तरथ जी के मार्गदर्शन में सम्पन्न हुआ। डीएवी के सीनियर छात्रों और शिक्षकों को मुक्तरथ जी ने बिहार योग विद्यालय मुंगेर की विशेषता से परिचय कराया। योग विद्या, सत्यानन्द योग परंपरा जिसे बिहार योग के नाम से जानते हैं उसकी विश्व में लोकप्रियता पर विस्तार से बताया।
आज का प्रातःकालीन कार्यक्रम ज्यूडिशियल एकेडमी में योग सत्र हुआ जिसमें न्यायिक अधिकारी ने बिहार योग पद्धति के अनुसार योगाभ्यास किया।
मुक्तरथ जी अपने संबोधन में कहा कि पढ़ो या न पढ़ो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है, फर्क पड़ता है कि तुम्हारे भीतर किस प्रकार का गुण विकसित हो रहा है, तुम्हारे भीतर कैसे संस्कार बन रहे हैं। इस बात को बहुत अच्छे से समझना होगा कि राष्ट्र प्रमुख है। यदि राष्ट्र शक्तिशाली होगा तो हर घर में ज्योत जलेगी। और राष्ट्र शक्तिशाली तब होगा जब आप निज स्वार्थ से हट करके राष्ट्रभक्ति में समाज की सेवा में अपना योगदान करेंगे।
और ये जो योगदान करने वाले लोग हैं वही संन्यासी होते हैं। स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने विश्व के बिगड़ते हालात को देखते हुए योग को सुरक्षित और संरक्षित रखने का काम किये।
स्वामी मुक्तरथ जी के सानिध्य में डीएवी में सैकड़ो छात्र-छात्राओं ने ध्यान का अभ्यास किया।
प्राचार्य एम.के.सिन्हा ने कहा मुंगेर का योग प्राचीन और विज्ञानसम्मत है इसकी ख्याति दुनियाँ के कोने-कोने में व्याप्त है।
No comments:
Post a Comment