Saturday, 3 February 2024

फर्जी खरीद बिल पाए जाने पर आयकर अधिनियम में कठोर दंड और सजा का प्रावधान - सीए मेहुल ठक्कर

राची, झारखण्ड  | फरवरी  | 03, 2024 :: 
दी इंस्टिट्यूट ऑफ़ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ़ इंडिया, नई दिल्ली की प्रोफेशनल डेवलपमेंट कमिटी के द्वारा आज रैडिसन ब्लू होटल रांची में आयकर, बजट 2024 और जी एस टी लिटिगेशन पर एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया। अहमदाबाद के विशेषज्ञ सीए मेहुल ठक्कर ने आयकर अधिनियम में फर्जी क्रय बिल पाए जाने से सम्बंधित नियमो का विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि वर्त्तमान समय में तकनिकी के उपयोग के द्वारा किसी भी प्रकार के फर्जी क्रय बिल का पता आयकर अधिकारीयों को आसानी हो जाता है साथ ही जी एस टी लागू होने के बाद तो यह और भी आसानी से पकड़ में आ जाती है इस कारण हमें अपने क्लाइंट को यह सलाह देनी चाहिए कि वे टैक्स से बचने के लिए फर्जी क्रय बिल को अपने व्यवसाय में जोड़ने से बचें।  यदि असेसमेंट के समय यह पकड़ में आ जाये तो इसके लिए करदाता को भारी जुर्माना और साथ ही कारावास की सजा भी मिल सकती है।  सीए मेहुल ठक्कर ने फर्जी क्रय बिल से सम्बंधित बहुत से केस लॉ के बारे में विस्तार से अपने परिचर्चा में शामिल करते हुए इसके नुकसान के बारे में जानकारी दिया।  साथ ही उन्होंने बताया कि इस साल का केंद्रीय बजट लोकसभा चुनाव के कारण अंतरिम बजट था इस कारण इस बजट में टैक्स से सम्बंधित कुछ विशेष चर्चा के योग्य नहीं है लेकिन इस बजट के माध्यम से 2009-10 तक की अवधि के लिए ₹25000 और 2014-15 तक की अवधि के लिए ₹10000 तक की प्रत्यक्ष कर मांगों को वापस लेने से 1 करोड़ से ज्यादा करदाताओं को लाभ होगा। जो कि काफी महत्वपूर्ण है।  साथ ही देश के इंफ्रास्ट्रक्चर में भरी निवेश भी देश के आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण साबित होगी।

दूसरे तकनिकी सत्र में जीएसटी के अंतरगर्त डीआरसी - 1 और शो केस नोटिस बारे में विस्तार से बताते हुए वड़ोदरा के विशेषज्ञ सीए अभय देसाई ने कहा कि  डीआरसी - 1 और शो केस नोटिस जीएसटी से सम्बंधित त्रुटि या खातों में वित्तीय लेखांकन में गड़बड़ी होने पर जीएसटी अधिकारी के द्वारा जारी किया जाता है और ऐसे नोटिस के सम्बन्ध में हमें सम्बंधित अधिकारी से मिलकर उनके आपत्तियों को समझ कर उचित उत्तर देना चाहिए। सीए अभय देसाई ने आगे बताया कि जी एस टी से सम्बंधित अधिकतर विवाद गलत इनपुट क्रेडिट, गलत HSN और SAC कोड का प्रयोग, गलत टैक्स रेट से सम्बंधित होती है। इस कारण ऑडिट के समय इन सभी का सही से जाँच कर लेने से और आवश्यक सुधार के द्वारा जीएसटी से सम्बंधित लिटिगेशन से बचा जा सकता है।  उन्होंने बताया की सीजीएसटी अधिनियम की धारा 73 और 74 के अंतरगर्त  कारण बताओ नोटिस जारी किया जाता है जिनका समय सीमा जीएसटी की वार्षिक रिटर्न के क्रमश: 3 साल और 4 साल है। साथ ही एक नोटिस के जवाब के लिए डिपार्टमेंट कम से कम तीन बार तक करदाता के निवेदन पर स्थगन का आदेश देता है। साथ ही उन्होंने बताया की समयसीमा समाप्त होने के बाद कोई भी नोटिस जारी नहीं किया जा सकता है। सीए अभय देसाई ने विस्तार से विभिन्न नोटिसों के जवाब के बारे में जानकारी दिया।

इस एक दिवसीय सेमिनार के आरम्भ में अपने स्वागत सम्बोधन में इंस्टिट्यूट के रांची शाखा अध्यक्ष सीए पंकज मक्कड़ ने कहा कि देश के आर्थिक तरक्की के साथ- साथ बड़ी तेजी से व्यवसाय से सम्बंधित पुराने कानून बदलते जा रहे है इस कारण हम सीए प्रोफेशनल को हमेशा इन बदलावों के बारे में पूर्ण जानकारी होना आवश्यक है और आज का यह सेमिनार इस अंतरिम बजट के माध्यम से प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर में हुए बदलावों की जानकारी के लिए भी महत्वपूर्ण है।

इस सेमिनार का विषय प्रवेश रांची शाखा के सी पी इ कमिटी के अध्यक्ष सीए उमेश कुमार ने किया और मंच सञ्चालन सीए स्नेहा प्रिया ने की। इस एक दिवसीय सेमिनार का डायरेक्टर इंस्टिट्यूट की केंद्रीय परिषद् सदस्य सीए केमिशा सोनी और संजोजक सीए जे पी शर्मा थे।

इस सेमिनार के सफल आयोजन में रांची शाखा के उपाध्यक्ष सीए श्रद्धा बगला, सचिव सीए निशांत मोदी और कार्यकारिणी सदस्य सीए अभिषेक केडिया का महत्वपूर्ण योगदान था। इस सेमिनार में रांची और आस पास से 200 से ज्यादा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने भाग लिया।  

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