हमारी धरोहर ही हमारी पहचान : गुड़िया झा
कई बार ऐसा देखा जाता है कि जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते जाते हैं अपनी पुरानी चीजों से दूरी बढ़ती जाती है। रोजगार की तलाश में हम घर से दूर शहरों में जाकर जीवन यापन करते हैं। भागदौड़ भरी जिंदगी में हमेशा दूसरों से आगे निकलने की होड़ ने हमें इतना व्यस्त कर दिया है कि कभी-कभी हम अपनी संस्कृति की बातें या तो भूल जाते हैं या फिर समय के अभाव के कारण इस ओर हमारा ध्यान ही नहीं जाता है।
ऐसे में इन सबके लिए थोड़ा सा समय निकालकर आने वाले समय में हम अपनी धरोहर को बचाये रख सकते हैं।
1 ग्रामीण जीवन से सीख।
पहले हमारे बुजुर्ग गांव में ही रहा करते थे। बहुत ही कड़ी मेहनत से उनके द्वारा बनाये हुए आशियाने की समय समय पर देखभाल की जरूरत है। जब भी अपने काम से छुट्टी मिले तभी वहां की खोज खबर लेने से हम वहां की गतिविधियों से परिचित होते हैं। इसका सबसे अच्छा तरीका यह भी है कि जब भी वहां कोई सामाजिक समारोह हो साथ ही जब भी अवसर मिले तो उसमें शामिल होने से कई अनुभवी बुजुर्ग और वहां की परंपराओं से हम अवगत होते हैं। अपनी परम्पराओं को बनाये रखना भी इसलिए आवश्यक है कि हमारी परंपराएं ही हमारी संस्कृति की शान हैं।
चकाचौंध भरी दुनिया में हमने अपना सुकून खो दिया है। थोड़े दिनों के लिए ही सही लेकिन गांव आने पर मन को कितनी शांति मिलती है इसका एहसास वहां जाने पर ही होता है। वो मिट्टी की खुश्बू , हरे-भरे खेत, बिना रसायनों के शुद्ध फसलें और उन फसलों को देख कर ग्रामीणों के चेहरे पर मुस्कान सब कुछ बयां कर देती है।
गांव में रह रहे अपने सगे संबंधियों की भी खबर लेते रहने से वहां से जुड़ाव बना रहता है। आखिर हमारे रिश्तों की शुरूआत भी यहीं से होती है। हम चाहे कितने ही दिनों के बाद अपने गांव क्यों न जायें, ये रिश्ते ही हमेशा अपनेपन का एहसास कराते हैं।
2 भाषा की पहचान।
भारत में कई प्रकार की भाषाएं भी बोली जाती हैं। अपनी मातृभाषा की पहचान को बनाये रखना भी एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। घर में अपनी मातृभाषा में बात करने से बच्चे भी उसके महत्व को समझ पाते हैं । भले ही हमें कितनी ही अच्छी अंग्रेजी क्यों न आती हो, इस ओर भी हमारा ध्यान आकर्षित होना चाहिए। साथ ही किसी भी पर्व त्योहार में अपनी संस्कृति के अनुसार ही उसका अनुकरण करने से इनकी गरिमा भी बनी रहती है और हमारी आने वाली भावी पीढ़ी भी उसे बचाने में अपनी भूमिका निभाती है।
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