असंभव कुछ भी नहीं : गुड़िया झा
कुछ भी बनना, करना और पाना संभव है। अगर हम अपनी इच्छा शक्ति को मजबूत करें। हम अपने आप में ही बड़े आलोचक हो गए हैं। किसी भी कार्य को करने से पहले ही हार मान जाते हैं। बाहरी उपलब्धियों और दिखावे को बहुत अधिक महत्व देने लगते हैं। यदि हम अपनी आंतरिक और स्वाभाविक शक्तियों को पहचान कर पूरी योजना और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ेंगे तो निश्चित ही अपनी मंजिल को पा सकेंगे। जब तक आप खुद से हार नहीं जाते तब तक आपको कोई भी हरा नहीं सकता।
नवनिर्माण का अर्थ है अगर हमें एक नए अवसर का अविष्कार करने और चुनौतियों का सामना करने वक्त यह भरोसा हो कि कुछ भी संभव है तो फिर यह सोच एक नए जीवन को जीने का मार्ग प्रशस्त करता है। यह वास्तविकता में कार्य में जुट जाने के लिए हमें प्रेरित करती है। यदि संभावनाओं के संसार में जीना हमारा ढंग हो जाता है तो हम कह सकते हैं कि हम एक पूरी तरह से नया जीवन जी रहे हैं।
अपने जीवन में कुछ आदतों को हमें छोड़नी होगी जो बहुत मुश्किल भी नहीं है।
1 झूठे दिखावे की आदत।
आमतौर पर हम भारतीयों की कमजोरी यह होती है कि हम झूठे दिखावे के जाल में अक्सर फंसे रहते हैं। हम जो नहीं हैं वही दिखाते हैं। हम खुश होने का ढोंग करते हैं, हांलाकि हम भीतर से दुखी होते हैं। यह निश्चित रूप से जरूरी है कि हम इससे बाहर निकलें। यदि हम हीन भावना और हमारे पास बहुत अभाव है कि सोच से बाहर निकलें और ईमानदारी से नए रास्ते की खोज करें तो हमारी इस खुशी का जवाब नहीं।
2 अतीत को छोड़ आगे बढ़ें।
हमारा अधिकांश समय अतीत की बाध्यताओं या भविष्य की चिंताओं में ही बीत जाता है। जिसके कारण हम अपने वर्तमान को भी पूरी तरह से जी नहीं पाते हैं। अतीत की घटनाओं को बार- बार याद कर हम अपने भविष्य की गति को भी रोक देते हैं। जबकि भविष्य तो हमारा बिल्कुल ही खाली है। इसे हम अपनी अच्छी सोच और कार्य के माध्यम से भी भर सकते हैं। अपने सुनहरे भविष्य की कल्पना कर जब हम वर्तमान में पूरी तरह से अपने लक्ष्य की ओर ध्यान केंद्रित करेंगे तो इसमें जरा भी संदेह नहीं कि हमारा भविष्य उज्जवल ना हो। उदाहरण- जब एक गर्भवती मां अपने गर्भ से जन्म देने वाले बच्चे के जन्म की खुशी की कल्पना करती है तो वह वर्तमान में प्रसव पीड़ा को सहन करने की हिम्मत जुटा लेती है।
3 लक्ष्य के अनुसार कार्य हो।
हर किसी की अपनी अलग योग्यता और क्षमता होती है। अपनी वास्तविक क्षमता को पहचान कर लक्ष्य निर्धारित करें। हम बड़े सपने तो देखते हैं लेकिन उस ओर हमारे कार्य नहीं होते हैं। सामान्यत हमारी प्रवृति शॉर्ट करने की होती है और इसलिए हम अपने सपनों की ओर अग्रसर नहीं होते हैं।
हम जो सोचते हैं, कहते हैं और करते हैं उसके बीच के अंतर को समझना होगा। एक बार जब हम प्रामाणिक हो जाते हैं तो नई संभावनाओं का निर्माण होता है।
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