संघर्षों से भी सीख मिलती है : गुड़िया झा
वक्त भी सिखाता है और शिक्षक भी। पर दोनों में अंतर सिर्फ इतना होता है कि शिक्षक सीखा कर इम्तिहान लेते हैं और वक्त इम्तिहान लेकर सिखाता है। दोनों ही स्थितियों में हम सीखते ही हैं। अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम कठिनाईयों को किस रूप में लेते हैं।
जीवन चक्र बदलते मौसम की तरह है। कभी धूप-तो कभी सर्द और गर्म। डरना, घबराना स्वाभाविक बात है। लेकिन क्या सिर्फ डरने और घबराने से या फिर हाथ पर हाथ रखने या अपने भाग्य को कोसने से समस्या का समाधान सम्भव हो जाएगा।
यही तो वह समय होता है जब हमारी सहनशीलता और काबिलियत की असली परीक्षा होती है।
1. हिम्मत न हारें डटे रहें।
चुनौतियों के सामने आंसू बहाने से उन्हें दूर नहीं किया जा सकता है। परिस्थितियों को अपनाएं कि यह सही है कि अभी हमारा समय प्रतिकूल चल रहा है और यह समय भी बहुत जल्द ही गुजर जायेगा। तो इससे मन को बहुत ही शांति मिलती है। इसका एक मनोवैज्ञानिक कारण यह भी है कि अगर हम सिर्फ समस्याओं के बारे में ही सोचेंगे तो आसपास हमेशा वही दिखाई देगी। जबकि मन को हल्का कर समाधान के बारे में रास्ते निकालने की सोचेंगे तो हमारा काम आसान हो जाता है।
अनुभवी लोगों से बाते करें। इससे हमारा काम आसान हो जाता है। चुनौतियों के बारे में कहा जाता है है कि यह कभी भी सूचना देकर नहीं आती हैं लेकिन यह जाती धीरे धीरे और अपने निर्धारित समय पर ही हैं। इस दौरान हमारा मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य भी बहुत ही प्रभावित होता है।
लेकिन जब हम इन सबसे बाहर निकलते हैं, तो हमें यह एहसास होता है कि चुनौतियां हमारे लिए सिर्फ समस्याएं लेकर नहीं आती हैं बल्कि हमें यह भी सिखाती हैं कि हमारे भीतर क्षमताओं की कमी नहीं है, बल्कि हम खुद अपनी क्षमताओं को पहचान नहीं पाते हैं।
2 आत्मविश्वास को बनाए रखें।
परिस्थितियां चाहे जैसी भी हो, अपने आत्मविश्वास को हमेशा बनाए रखें। अपनी सकारात्मक सोच से यह विश्वास रखें कि जो हो रहा है उसमें हमारे लिए जरूर ही कुछ अच्छा होगा। कुछ भी हमारे मन के मुताबिक नहीं होता है बल्कि हमें ही परिस्थितियों के अनुसार ढलना पड़ता है।
3 ध्यान का सहारा।
मन को शांति और सुकून देने के लिए कम से कम 30 मिनट का मेडिटेशन जरूर करें। ये हमें मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रदान करने के लिए भी बहुत उपयोगी है। बच्चों को भी इसके लिए प्रेरित करें।