भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक मिथिलांचल का सामा चकेवा : गुड़िया झा
ये संस्कृति ही तो है जो रिश्तों को संजोना भी सिखाती है। भाई बहन के प्रेम को समर्पित सामा चकेवा बिहार के मिथिलांचल में कार्तिक पूर्णिमा के दिन धूमधाम से मनाया जाता है। इस बार यह 26 नवंबर को है।
कहने को तो सामा चकेवा कच्ची मिट्टी से बनाया जाता है, लेकिन इसमें भाई बहन के आपसी प्यार की महक वर्षों से महकती चली आ रही है।
1 इसकी तैयारी छठ से शुरू होती है।
सामा चकेवा बनाने की तैयारी छठ में खरना के दिन से शुरू होती है। उसी दिन मिट्टी को गूंथ कर उससे हर तरह की आकृतियां जैसे- रंग बिरंगी चिड़ियां, सिरी सामा, चुगला, छोटी-छोटी टोकरियां आदि बनाने का काम शुरू हो जाता है। रोज शाम को इसे आसमान से गिरने वाली ओस की बूंदों में थोड़ी देर रखा जाता है। उसके बाद सभी को धूप में अच्छी तरह सुखाने के बाद देवोत्थान (देवउठनी) एकादशी के दिन उन पर चावल के पेस्ट से सफेद रंग में रंग कर हर तरह के रंगों से उसे सजाया जाता है। इसमें नई फसल का चूड़ा, गुड़ और दही सामा को भोग लगाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन बहने रात्रि में कुल देवी-देवता के समक्ष प्रणाम कर पान के पत्तों को आंचल में रख कर सिरी सामा का एक दूसरे से आदान प्रदान करती हैं। उसके बाद जोते हुए खेत में चुगला को जलाने के बाद सभी मिलकर वहां सामा खेलती हैं तथा भाइयों को भी तोड़ने के लिए देती हैं।
इसमें सिरी सामा जहां पूजनीय है, वहीं चुगला विभाजनकारी शक्तियों का प्रतीक है। इसमें चुगला को जलाने का तात्पर्य यह है कि भाई बहन के आपसी प्रेम में तीसरा कोई अड़चन न आए।
2 पौराणिक मान्यता।
पौराणिक मान्यता के अनुसार सामा भगवान श्री कृष्ण की बेटी हैं। वे मुनि के आश्रम में रहती थीं। एक दिन वे बिना कुछ बताए आश्रम से चली गईं। शरद ऋतु के प्रारंभ होते ही बहुत सी रंग बिरंगी चिड़ियां मिथिलांचल की तरफ चली जाती हैं। सामा भी उन्हीं रंग बिरंगी चिड़ियों को देखने मिथिलांचल चली गईं। मुनि ने उन पर आरोप लगाया कि वे अच्छी प्रवृति की नहीं हैं, इसलिए बिना बताए चली गईं। मुनि ने उन्हें शाप दे दिया कि वे भी उन चिड़ियों के जैसी हो जाएंगी। मुनि के शाप से सामा चिड़ियां बन गईं। सामा के भाई ने मुनि के शाप से उन्हें मुक्त कराया। तभी तो महिलाएं जब सामा खेलती हैं तो कुछ सामा को तोड़ने के लिए अपने भाई को देती हैं।
3 सामा के गीतों में भी स्नेह की खुशबू आती है।
"गाम के अधिकारी हमर भैया हो, भैया हाथ दस पोखरी खुनाय दिअ, चंपा फूल लगायब हो"
बहन आज भी भाई से किसी कीमती चीज की मांग नहीं करती हैं। वे बस इतना कहती हैं कि आप गांव घर के अधिकारी हैं। आप मुझे दस हाथ की पोखरी यानी एक छोटा सा तालाब ही बनवा दीजिये। मैं उसमें चंपा फूल लगाउंगी।
" भैया लोढायब भौजो हार गांथब हे, सेहो हार पहिरत बहिनो, साम चकेवा खेलब"।
बहन को अपने भाई भाभी से इतना प्यार है कि वे कहती हैं कि भैया इस फूल को इकठ्ठा करेंगे और भाभी उनका हार यानी माला बनाएंगी। जिसे बहनें पहन कर सामा चकेवा खेलेंगी।
4 आपसी सामंजस्य का देता है संदेश।
यह त्योहार हमें यह संदेश देता है कि हम कितने ही व्यस्त क्यों न हों, अपने रिश्तों की बागडोर को मजबूती से थामे रखना है। रिश्तों में अगर आपसी सामंजस्य हो तो कोई भी अड़चन आपसी प्रेम को कम नहीं कर सकता। आज जब भाई-बहन दूर भी रहते हैं, तो यह पर्व उन्हें करीब लाता है।
No comments:
Post a Comment