Friday 15 May 2020

हमदर्दी और देखभाल है कोरोना से लड़ाई में हमारा साथी : प्रशांत दास यूनिसेफ

रांची, झारखण्ड | मई | 16, 2020 :: कोरोना महामारी के कारण पैदा हुई मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियां, शारीरिक चुनौतियों की तरह ही विविध तथा जटिल हंै।
घोर मानवीय पीड़ा की इस घड़ी में स्वास्थ्यकर्मियों पर अपने कर्तव्यों को पूरा करने का भारी दबाव है।
कई मौकों पर उन्हें जनता तथा खुद के पड़ोसियों तक का पर्याप्त सहयोग एवं सहानुभूति नहीं मिलता।
संगठित तथा असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कूशल एवं अकुशल कर्मियों के लिए भी अपनी आजीविका को खोना चिंता तथा तनाव का कारण बन गया है।
महामारी के कारण हुए लाॅकडाउन की वजह से घरेलू हिंसा में भी बढ़ोतरी देखी जाती है।
कई महिलाओं एवं बच्चों को घरेलू हिंसा के कारण डर के साये में जीना पड़ता है।
कोरोना महामारी ने कई मायनों में हमारे उपर एक मनोवैज्ञानिक असर डाला है, जिसके कारण मानसिक एवं भावनात्मक स्वास्थ्य की देखभाल करना काफी महत्वपूर्ण है।
खुद की देखभाल के प्रति एक सक्रिय दृष्टिकोण, संकट की इस घड़ी में चिंता एवं भय से उबरने के लिए आवश्यक है।

संकट के इस समय में मन को मजबूत रखना आवश्यक है।
इस समय का उपयोग हम अपने पुराने दोस्तों, परिवार के सदस्यों तथा संबंधियों के साथ अपने जुड़ाव को और मजबूत करने में कर सकते हैं।
इसके अलावा प्राणायाम एवं ध्यान के अभ्यास तथा अपनी रूचि एवं शौक को पुनर्जीवित कर तथा परिवार के साथ समय बीता कर भी इस घड़ी में हम खुद को मजबूत रख सकते हैं।
इसके अलावा अपनी भावनाओं को प्रकट करने के लिए ‘कृतज्ञता का एक जार’ रखने की आदत का उपयोग भी कर सकते हैं। इस जार में एक पर्ची पर प्रतिदिन उन चीजों के बारें में लिख कर डाल सकते हैं, जिनके प्रति हम खुद को कृतज्ञ अनुभव करते हैं।
आवश्यकता होने पर सरकार के द्वारा जारी की गई हेल्पलाइन नंबरों के माध्यम से पेशेवर परामर्शदाताओं तथा मनोविशेषज्ञों की सहायता प्राप्त की जा सकती है।
इस महामारी ने लाखों बच्चों को प्रभावित किया है, विशेषकर सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गाें के वंचित तथा दिव्यांग बच्चे इससे सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।
यह उन बच्चों के लिए भी संकट लेकर आया है, जो चाइल्ड केयर संस्थानों में रहते हैं।
इन संस्थाओं में रह रहे बच्चे इन दिनों घबड़ाहट, चिंता, घर जाने की उत्सुकता, लाॅकडाउन के खत्म होने का इंतजार, नींद न आने की समस्या तथा गुस्सा आदि परेशानियों से जुझ रहे हैं।
इस समय यह महत्वपूर्ण है कि हम बच्चों को आश्वस्त करते रहें और उन्हें अहसास दिलाते रहें कि हम उनकी सुरक्षा के प्रति सजग हैं, ताकि वे खुद को असुरक्षित न समझें।
बच्चों को सोशल डिस्टेंसिंग तथा हाथ धोने एवं स्वच्छता के अभ्यास के बारे में भी बताते रहना आवश्यक है, जो कि उन्हें सुरक्षित रखेगा।
इस समय जबकि चारों ओर सूचनाओं की भरमार है, यह भी जरूरी है कि बच्चों तक सही सूचनाएं पहुंचे वह भी सरल तरीके से। घर के अंदर खेले जाने वाले खेलों तथा संयुक्त गतिविधियांे के माध्यम से भी बच्चों को सहज बनाए रखा जा सकता है।
इससे बच्चों को अभिव्यक्ति का भी एक मंच मिलेगा, जो कि इस समय काफी जरूरी है।
संकटग्रस्त बच्चों की सहायता के लिए चाइल्ड लाइन नंबर 1098 पर काॅल कर सहायता प्राप्त की जा सकती हैै।
इसी प्रकार घरेलू हिंसा की स्थिति में महिला हेल्पलाइन 1091 या पुलिस हेल्पलाइन 100 पर काॅल किया जा सकता है।

बाल श्रम, बाल विवाह तथा तस्करी की घटनाओं में वृद्धि को रोकने के लिए ग्रामीण स्तर पर सतर्कता तथा सहयोग को बढ़ाने की आवश्यकता है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार यह आवश्यक है कि चाइल्ड केयर संस्थानों में रहने वाले बच्चों को कोरोना संक्रमण से सुरक्षित रखने के लिए उन्हें आवश्यक सुविधाएं प्राप्त हों साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि उनके साथ किसी प्रकार की हिंसा या दुव्र्यवहार न हो।
इस निर्देश के तहत संप्रेक्षण गृह में रह रहे सभी बच्चों को जमानत पर रिहा करने की बात भी कही गई है, केवल उन परिस्थितियों को छोड़कर जिसमें किशोर न्याय अधिनियम 2020 की धारा 12 के तहत आवेदन के कारण स्पष्ट नहीं हैं।
यूनिसेफ; चाइल्ड केयर संस्थानों में रहने वाले बच्चों, स्वास्थ्यकर्मियों तथा राज्य सरकार द्वारा प्रवासियों की सहायता के लिए स्थापित हेल्प डेस्क के वोलेंटियर्स के मानसिक स्वास्थ्य एवं मनो-सामाजिक व्यवहार को बेहतर बनाए रखने में विशेष सत्र के आयोजन के माध्यम से राज्य सरकार की सहायता कर रहा है।
हम केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान (सीआईपी) के साथ साझेदारी में अधिक से अधिक बच्चों, किशोर-किशोरियों, परिवारों तथा सरकार के अंदर एवं बाहर के सभी पदाधिकारियों के लिए यह सहयोग करना जारी रखेंगे।
मैं इस बात को दोहराना चाहता हूं कि दूसरों के साथ हमदर्दी का व्यवहार रखकर तथा अपने मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाकर ही हम इस संकट का मुकाबला कर सकते हैं।
यह स्वाभाविक है कि नियमित सामाजिक संवाद तथा आवश्यक सहयोग की कमी के कारण लोग खुद को अकेला महसूस कर रहे हैं।
आधुनिक तकनीक इसमें हमारी मदद कर सकता है। यह हमें उन लोगों तक पहुंचा सकता है, जिनसे हम नहीं मिल सकते।
वर्तमान चुनौती का मुकाबला आपसी सहयोग एवं हमदर्दी की भावना से ही हो सकता है। हममें से जो भी सक्षम हैं उन्हें इसके लिए कृतज्ञ होना चाहिए तथा उनकी मदद करनी चाहिए जिनके पास नहीं हैं।
आइए हम खुद को तथा आसपास के लोगों को खुश रखने में अपनी भूमिका निभाएं, खासकर उनलोगों के जीवन को खुशनुमा बनाने में योगदान दें, जिन्हें इसकी सर्वाधिक आवश्यकता है।


प्रशांत दास यूनिसेफ

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