Friday 15 May 2020

परवरिश में हो बराबर का अधिकार : गुड़िया झा

रांची, झारखण्ड | मई | 15, 2020 :: समय के साथ साथ लोगों की सोच में भी काफी बदलाव आये हैं। ये बदलाव जन्म से लेकर परवरिश के साथ साथ पढ़ाई लिखाई और अन्य अधिकारों में भी मिले, तो निश्चय ही बेटियां भी हर क्षेत्र में अपनी काबिलियत में पीछे नहीं रहेंगी।
जी हां, शिक्षा ने हमारे भारतीय समाज की नीव को मजबूत तो बहुत ही किया है। लेकिन अभी भी छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों के लोग इसकी अहमियत से पूरी तरह से वाकिफ नहीं हुये हैं। इन क्षेत्रों में भी धीरे धीरे ही सही यदि बेटियों को भी जागरूक करने की मशाल जला दी जाये तो यकीनन हमारा देश भारत हर मामले में अग्रणी साबित होगा।

1, सोच में बदलाव।
ये बदलाव हमें सबसे पहले अपने भीतर लानी होगी कि बेटियों के जन्म के बाद भी उतनी ही अहमियत दें जितना कि बेटे के जन्म के बाद होती है। यहीं से की गयी नयी शुरुआत बेटी की परवरिश में भी एक मजबूत स्तम्भ की तरह हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगी। समय बीतने के साथ साथ हमें इसके अच्छे परिणाम भी देखने को मिलेंगे।
यही नहीं थोड़े बड़े होने के बाद बेटियों को भी घर के सभी बच्चों के साथ समान रूप से खेलने का अवसर दें। इससे उनके विकास में बढ़ोतरी होगी।

2, शिक्षा में अधिकार।
शिक्षा में आये मूलभूत परिवर्तन में बेटियों को भी समान रूप से अधिकार देनी चाहिए। उन्हें भी पढ़ने के लिए जब हम बेहतर अवसर देंगे, तो निश्चय ही वे भी कुछ अच्छा करके हमारे द्वारा उठाये गए कदमों से हर क्षेत्र में हमारा सर गर्व से ऊंचा कर देंगी।
कभी भी हमें अपने मन में ये भ्रम नहीं लानी चाहिए कि बेटियों को ज्यादा पढ़ाने से क्या फायदा। इन्हें तो एक दिन दूसरे घर जाना है। पराये धन की संज्ञा देकर हमें उनके वास्तविक अधिकारों से वंचित नहीं करना चाहिए। क्योंकि बेटी जब शिक्षा से परिपूर्ण होती है, तो वह शादी के बाद भी पूरे परिवार को शिक्षा के द्वारा आगे की ओर ले जाती है।
कभी भी बेटियों के मन में यह भाव ना डालें कि मायका उनका घर नहीं है। उन्हें तो अपने घर जाना है। इन विचारों से उनमें हीन भावना उत्पन्न होगी तथा असुरक्षा की भावना भी पनपेगी। क्योंकि हमेशा परायेपन का भाव उनके मन में डालकर उनके कोमल बचपन को छीनना उनके मन पर सीधा प्रहार करना है। इन प्रवित्तियों से हमें हमेशा ही बचना चाहिए। हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हम जैसी भावनाओं का बीज उनके दिमाग में डालेंगे, उसी तरह के परिणाम भी हमें देखने को मिलेंगे। बिता हुआ समय कभी वापस लौट कर नहीं आता है। इसलिए उन्हें अपने सपनों को साकार करने का मौका जरूर दें।

3, फैसले में भी करें शामिल।
फैसले छोटे हों या बड़े, किसी भी तरह के फैसले में बेटियों को जरूर शामिल करें। उन्हें अपने फैसले से अवगत कराते हुए उसके होने वाले परिणामों के बारे में भी बतायें। बेटियां कभी भी किसी भी मामले में कम नहीं होतीं। बस जरूरत है तो इस बात की कि हम उनकी भावनाओं को समझें। उनकी बातों को सुने की वे क्या कहना चाहती हैं। उनकी आवाज को दबायें नहीं। फिर देखिए बेटियां कैसे हमारा स्वाभिमान बन कर सभी के साथ ताल मेल बैठाते हुये कन्धे से कंधा मिलाकर चलते हुए इस देश की शान में चार चांद लगाती हैं।

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