"काश" और "मगर" से बाहर की दुनिया : गुड़िया झा
"कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कभी जमीं तो कभी आसमां नहीं मिलता"।
अपने जीवन में हम हमेशा यही चाहते हैं कि काश वो सबकुछ हमें मिल जाता जिसकी चाहत है। उसे पाने की चाहत में जब हम दिन-रात मेहनत करके एक कर देते हैं, फिर भी हमें वह सब नहीं मिल पाता है,तो निराशा होती है। यह सब हमारे भीतर की हलचल है, जो हमें जीवन का आनंद नहीं लेने देती है। अपने आसपास एक नजर दौड़ाएं तो पायेंगे कि बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो काफी संम्पन्न हैं। फिर भी वे काफी परेशान रहा करते हैं।
आधुनिकता के इस दौड़ में तकनीक ने काफी सुविधाएं भी दी हैं। सुविधाओं के आने से कार्य करने में भी काफी आसानी हुई है। एक के बाद दूसरी सुविधाओं पर हम आश्रित होते चले गये।
हमारे भीतर की परेशानी तब ज्यादा बढ़ जाती है, जब हम अपने से ज्यादा संपन्न लोगों को देखते हैं। यहां दोष हमारे नजरिये का है। अगर नजरिया सही होगा, तो अपने से कम सुविधा वाले लोगों को देखेंगे। इससे आत्मसंतुष्टि का भाव उत्पन्न होता है कि ईश्वर ने हमें ज्यादा अच्छी स्थिति में रखा है। हमने अपने जीवन को प्रतियोगिता बना लिया है कि सामने वाले से ज्यादा आगे निकलना है, उनकी गाड़ी से ज्यादा बड़ी गाड़ी लेनी है, उनके घर से ज्यादा बड़ा घर बनाने है। इसी प्रतियोगिता में हमने अपनी जिंदगी को झोंक दिया है और चेहरे की हंसी, मन का सुकून कहीं खो गया है।
"जीवन के सफर में गुजर जाते हैं जो मुकाम वो फिर नहीं आते "। हर एक पल सुखदायी है। इसका आनंद हम तभी ले सकते हैं जब अपने नजरिये को बदलेंगे। जो कि बहुत ज्यादा मुश्किल भी नहीं है।
1, उदास रहने के हजारों कारणों के बीच मुस्कुराने की एक वजह ही जिंदगी है।
जो समय आज हमारे पास है, हो सकता है कि कल हमारे पास नहीं हो। इस बात की क्या गारंटी है कि बहुत सी सुविधाओं के होने के बाद भी हम खुश रहें?
भोजन के लिए भूख और सोने के लिए गहरी नींद की आवश्कयता है। ये चीजें हम बाजारों से नहीं खरीद सकते हैं। जिनके बच्चे पास में हैं, हो सकता है कि एक समय के बाद वे पढाई या रोजगार की तलाश में बाहर चले जायें। क्या उनके साथ बिताये हुए बचपन को हम वापस ला सकते हैं? तो फिर क्यों न हम आज की दुनिया में जियें। हम चाह कर भी बीते हुए समय को वापस नहीं ला सकते हैं। जो प्राप्त है, वो पर्याप्त है।
2, सुविधाओं के साथ विचारों की भी प्रगति हो।
सुविधाओं का होना बुरी बात नहीं है। इनके साथ ही अपने विचारों में प्रगति भी लानी होगी। प्रगति भी ऐसी कि हमारे आसपास के लोगों को प्रोत्साहन मिले।
शिक्षा के स्वरूप में बदलाव, अपनी भारतीय संस्कृति को सुरक्षित रख कर समाज को मजबूत बनाने पर विशेष ध्यान, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता आदि। प्रगति के रास्ते सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि उन लोगों के लिए भी होने चाहिए जो अभी भी संघर्ष कर रहे हैं।
No comments:
Post a Comment