Saturday, 13 May 2023

व्यक्तित्व के निर्माण में परिवार की भूमिका महत्वपूर्ण : गुड़िया झा


परिवार का महत्व और उसकी उपयोगिता प्रकट करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 15 मई को सम्पूर्ण विश्व में अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया जाता है।  प्रत्येक के जीवन में परिवार का भी अपना एक अलग ही महत्व है। प्रथम पाठशाला कहे जाने वाले परिवार में ही अच्छे आचरण के पाठ पढ़ाये जाते हैं। कहते हैं कि पिता से बड़ा कोई सलाहकार नहीं होता है, मां के आंचल से बड़ी कोई दुनिया नहीं, भाई से अच्छा कोई भागीदार नहीं, बहन से बड़ा कोई शुभचिंतक नहीं। इसलिए परिवार के बिना जीवन की कल्पना करना कठिन होता है
 किसी भी सशक्त देश के निर्माण में यह एक आधारभूत संस्था की भांति होता है जो अपने विकास कार्यक्रमों से दिनोंदिन प्रगति के नये सोपान तय करता है। कहने को तो मानव जगत में परिवार एक छोटी इकाई है। लेकिन इसकी मजबूती हमें हर बड़ी से बड़ी मुसीबत से बचाने में कारगर है। इससे ही समाज, राष्ट्र और विश्व का निर्माण होता है। 
बदलते परिवेश के कारण आज दूसरे शहरों में एकाकी परिवार रहते हैं। यह बात अलग है कि परिवार में बुजुर्गों के ज्ञान और अनुभव से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। साथ ही उत्तरदायित्व, अनुशासन व आदर का माहौल बना रहता है।
 उपभोक्तावादी संस्कृति,व्यक्तिगत आकांक्षा, आपसी मनमुटाव और सामंजस्य की कमी के कारण परिवार की संस्कृति खतरे में है।
हम अपनी ओर से कुछ बातों का ध्यान रख टूटते परिवार को जोड़ने की एक छोटी पहल तो जरूर कर सकते हैं।

1, अपेक्षाओं से दूर रहें।
हमारे दुःखी होने का सबसे बड़ा कारण दूसरों से अत्यधिक अपेक्षा  रखना है। जब हम अपने कर्तव्य के बदले दूसरों से भी वैसे ही व्यवहार की उम्मीद करते हैं और जब वह हमें नहीं मिलता है, तो एक या दो बार तो हम नजरअंदाज करते हैं लेकिन हर बार यह थोड़ा मुश्किल भी हो जाता है। धीरे-धीरे यह हमारे मन में जमा होता जाता है। यही रिश्तों में आपसी मनमुटाव का कारण बनता है।
जितना ज्यादा हो सके अपेक्षाओं से दूर रह कर खुद से जितना अच्छा हो अवश्य करें बिना यह सोचे कि सामने वाला भी हमारे साथ वैसा ही करेगा। अपनी अच्छाइयों को किसी दूसरे के कारण हम क्यों खराब करें। इसका हम दैनिक जीवन में जितना ज्यादा उपयोग करेंगे उतना ही ज्यादा हमारे व्यक्तित्व में निखार आयेगा।

2, अनावश्यक प्रतिक्रिया देने से बचें।
अधिकांश पारिवारिक विघटन का एक कारण अत्यधिक प्रतिक्रिया भी देना है। कहा जाता है कि मौन से बड़ी कोई दवा नहीं है। जहां पर बहुत जरूरी हो वहां पर अवश्य ही अपनी बात को सभ्य और स्पष्ट तरीके से कहें। कई बार अनावश्यक रूप से हम दोषारोपण के शिकार भी हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में आक्रोशित होने से अच्छा है कि मन को शांत रख कर अपने कार्य पर विशेष ध्यान दें। हम जितने ज्यादा व्यस्त रहेंगे उतने ही ज्यादा खुश भी रहेंगे।

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