कंफर्ट जोन से बाहर निकल कर हम मजबूत बन सकते हैं : गुड़िया झा
"जो चल रहा है,उसे चलने दो" इस मानसिकता को जब तक हम अपने मन से बाहर नहीं निकालेंगे तब तक आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पायेंगे। एक कोयले को कितना ज्यादा प्रेशर सहन करना पड़ता है,तभी वह जाकर हीरा का रूप लेता है।हम मनुष्यों के साथ भी यही बात लागू होती है।थोड़ा दबाव सहन कर हम भी निखरते हैं।भला आरामदायक क्षेत्र में रहना किसे अच्छा नहीं लगता।परिवर्तन संसार का एक ऐसा सत्य है जिसे आज तक कोई नहीं रोक पाया है।लेकिन हम उस बदलाव के विरोधी तब बन जाते हैं जब वह हमारे लिए थोड़ा सा भी संघर्षपूर्ण हो जाता है। संघर्ष कर दर्द सहन करने के डर से हम अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलना नहीं चाहते हैं जिसका नतीजा यह होता है कि दूसरों का विकास तो दूर की बात है, हम स्वयं अपना भी विकास नहीं कर पाते हैं। हम जिंदगी जीते तो हैं, लेकिन छोटे रिस्क भी नहीं ले पाते हैं।
इसका सबसे अच्छा उदाहरण हम उन पंक्षियों का भी ले सकते हैं जब वे अपने आरामदायक आवासों को पीछे छोड़कर आवश्यकतानुसार हजारों मील दूर उड़ जाते हैं।साल के बारह महीनों में हर तरह के मौसम आते हैं।इन बदलते मौसमों के माध्यम से प्रकृति हमें संदेश देती है कि बदलाव एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और यह हमारी क्षमता को दर्शाती है।
1,नजरिया बदलें।
असुविधाओं के प्रति अपना नजरिया बदल कर इसे एक अवसर के रूप में लेंगे,तो जाहिर सी बात है कि स्थितियों के बीच सामंजस्य स्थापित करने की हमारी क्षमता तो बढ़ेगी ही साथ ही हमारे मन को एक संतुष्टि भी मिलेगी कि हम किसी भी विषम परिस्थिति में खुद को मजबूत ढाल बनाकर आगे बढ़ सकते हैं।
हम यह काम नहीं कर सकते , हमसे यह नहीं हो पायेगा आदि बातों को अपने दिमाग में नहीं आने दें।क्योंकि जब ये बातें हमारे ऊपर हावी हो जाती हैं, तो हमें संघर्ष करने से रोकती हैं।
2, अपने डर को बाहर निकालें।
डर भी एक महत्वपूर्ण कारण है,जो हमें कंफर्ट जोन से बाहर नहीं निकलने देता है।क्योंकि 99% डर हमारे मन की उपज है जो हमें रोकता है आगे बढ़ने से कि पता नहीं क्या होगा?
जो हम सोचते हैं वो होता नहीं है। जब हम संघर्ष करते हैं, तो या जीतते हैं या फिर सीखते हैं।
अपने टालमटोल की आदतों को भी हमें छोड़ना होगा। जब हम अच्छे परिणामों के बारे में सोच कर अपने कार्य की गति को आगे बढाते हैं, तो इससे हमारा आत्मविश्वास भी बढ़ता है।शुरूआत भले ही छोटी हो लेकिन जरूर आगे बढ़ें।कीमत तो चुकानी पड़ती है।या तो आज हम कीमत दें,तो आगे आराम करें, या आज आराम करें तो बाद में कीमत चुकानी पड़ेगी।
3, अपनी क्षमताओं को पहचान कर फैसले लें।
कंफर्ट जोन से बाहर निकलने का यह मतलब नहीं है कि हम अपनी क्षमताओं को पहचाने बिना कोई भी फैसला लें।अपनी वास्तविक क्षमता को पहचान कर किसी अच्छे विशेषज्ञ से सलाह लेकर जब अपनी मंजिल के बारे में साफ-सुथरे फैसले लेते हैं, तो कंफर्ट जोन छोड़ना थोड़ा आसान भी हो जाता है। बिना सोचे समझे भीड़ के पीछे भागने से अच्छा है सही दिशा में धीरे-धीरे चलना।
4, मजबूत इच्छाशक्ति।
कई बार इच्छा शक्ति का अभाव भी सामने आता है। यह स्वाभाविक है।इस पर भी हमें विजय प्राप्त करनी है।क्योंकि कुछ किए बिना ही जय-जयकार नहीं होती।कंफर्ट जोन से बाहर निकलने में बहुत सी बाधाएं आयेंगी।उन बाधाओं को स्वीकार करते हुए जब हम आगे बढ़ते हैं, तो बर्दाश्त करने की हमारी क्षमता तो बढ़ती ही है साथ ही सफलता की राह में हम आगे भी निकलते जाते हैं।
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