झारखंड के वैद्यनाथ धाम में है बगलामुखी जी का धाम - पं रामदेव पाण्डेय
राची, झारखण्ड | अगस्त | 09, 2023 ::
• बगलामुखी के सामने बैठे हैं वैद्यनाथ
• दक्ष यज्ञ के पुर्व से है वैद्यनाथ धाम
हरिद्वार दक्ष यज्ञ में सती के शरीर योगाग्नि में जला और शिव कंधार ,चीन से माम्यार तक सती प्रेम में सती के जले शरीर को लेकर पागलों की भांति हजारों साल भटकते रहे तब संहार का क्रम रूक गया,इसे देखकर विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के जले हुए शरीर को एक सौ आठ खण्ड में बांट दिया वह सती का अंग एक-सौ आठ जगह पर गिरा तो इतना ही सिद्ध पीठ बना गया , पं रामदेव पाण्डेय ने राम-जानकी मन्दिर बरियातू में बाईसवें दिन की कथा में देवी भागवत सप्तम स्कंध अध्याय अड़तीस श्लोक चौदह गीता प्रेस गोरखपुर तथा खेमराज श्री कृष्ण दास कल्याण प्रेस के संस्करण को उद्धरित करते कहा कि स्वयं आदि शक्ति ने हिमालय राजा को बताया झारखंड में वैद्यनाथ धाम देवघर में मै बगलामुखी देवी के रुप में हूं, गया में मंगला के नाम से हूं, यह शास्त्रीय प्रमाण है, अर्थात बाबा मंदिर को पीछे बगलामुखी का स्थान वैदिक कालीन है , इसलिए बैद्यनाथ ज्योतिलिंग भी बगलामुखी देवी के सामने स्थित है, यह बगलामुखी दस महाविद्या में एक विद्या है, जब शिव सती विछोह में ब्रह्मांड को नष्ट करने चले तो दस दिशा से दस महाविद्या जो सती का ही स्वरूप था, प्रकट हुई और शिव को ब्रह्मांड को नष्ट करने से रोका, उसी विद्या में बगलामुखी देवी है जिसे पीताम्बरा देवी कहते हैं , जो सौराष्ट्र में हल्दी रंग के सागर में चतुर्दशी मंगलवार को राक्षसों के बध के लिए प्रकट हुई, इसके भैरव महाकाल, देवता वाराह है क्यों वाराह कल्प में प्रतिष्ठित हुई, मध्यप्रदेश के नलखेड़ा में बगलामुखी का मन्दिर महाभारत काल का है तो दतिया का बगलामुखी मंदिर इसी सदी का है एक बाबा ने नलखेड़ा से आकर अश्वत्थामा के पुण्य भूमि में बगलामुखी देवी का स्थापना किया , कामाख्या में सती का काम भाग गिरा जहां त्रिपुर भैरवी है तो जिह्वा चीन में जिसे नील सरस्वती या बौद्ध तारा देवी कहते हैं , तीन सिद्ध पीठ बंगला देश और माम्यार में भी है , पं रामदेव स्वयं भी बगलामुखी उपासक हैं जिन्होंने गहनता से इसकी खोज पुराणों से की है ,
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