राची, झारखण्ड | अगस्त | 08, 2023 :
शिवपुराण के कथा में पं रामदेव पाण्डेय ने आज पांचवें दिन की कथा सती शिव प्रसंग में कहा कि
द्वंद को ही हम शक या भ्रम भी कहते हैं, इस द्वंद्व में सती,सीता, ब्रह्मा, यशोदा और अर्जुन भी पड़े,यह द्वंद अपनों से ही होता है, कभी कभी यह द्वंद पारिवारिक सुख शांति को भी छिन्न-भिन्न कर देता है, इस द्वंद्व को शीघ्र ही समाप्त कर देना चाहिए, सती को द्वंद है राम परम ब्रह्म है या नहीं है तो ब्रह्म दाम्पत्य जीवन में रोता है तो फिर ब्रह्म क्यों रोता है ,इस द्वंद्व का समाधान शिव करते हैं पर शिव पर विश्वास नहीं कर राम का परीक्षा लेने जाती है, परिणाम शिव से दुर हजारों साल रहना पड़ा क्योंकि शिव सती के इस कृत्य से महासमाधि में चले गये और सती को स्वयं ही पिता के यज्ञ में जलकर मरना पड़ता है, और अब इस द्वंद्व का लाभ दुष्ट पड़ोसी उठाता है , तारकासुर ने फायदा उठाया कि अब शिव काम गृहस्थी से दुर है सती को माता का दर्जा दे चुके हैं तो तारकासुर ने ब्रह्मा से आशीर्वाद लिया की शिव का जैविक पुत्र से ही मरें या अमर रहें, इस द्वंद्व का परिणाम हुआ दक्ष के यज्ञ का विनाश क्यों कि दक्ष भी द्वंद में है शिव अकाल पुरुष, महाकाल, त्रिलोकी नहीं श्मशानी अघोरी है , इसे यज्ञ में क्यों आमंत्रण करें, यशोदा को द्वंद है यह कृष्ण देवकी बसुदेव का उद्धार कंस को मारकर पाएगा की नहीं , अर्जुन को द्वंद है यह कृष्ण मेरा फुफेरा भाई बहनोई और रथ चालक है यह कैसे भगवान विश्वात्मा हो सकता है, सीता को द्वंद है सोने का हिरण, सोने की लंका की पर हनुमान जी ने पृथ्वी के आकार का अपना सोने का शरीर बना लिया और सीता का भ्रम दुर किया यह काम तो राम का सेवक कर सकता है माता पिता तो विश्वात्मा है इसलिए घर , कार्यालय, समाज और राष्ट्र में द्वंद है तो शीघ्र दुर किजीए, यही कथा कहती हैं , जीवन में द्वंद को दुर किजीए,
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