विकास की रोशनी से बहुत दूर मजबूर हैं आदिवासी : बंधु तिर्की
पलायन का दंश झेलते आदिवासी-मूलवासी.
सरकार संवेदनशीलता नहीं बरती तो हम सभी अपने-आपको कभी क्षमा नहीं कर पायेंगे.
रांची 3 जून. पूर्व मंत्री एवं झारखण्ड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने कहा है कि जिस जनजातीय समाज के लिए विशेष रूप से झारखण्ड का गठन किया गया था वह विकास की रोशनी से बहुत दूर हो चुका है और आवश्यकता इस बात की है कि सरकार अपनी संवेदनशीलता का परिचय देते हुए जनजातीय आदिवासी समाज के समग्र राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक एवं रोजगार के क्षेत्र में उसके विकास की ओर अपना ध्यान केंद्रित करें. श्री तिर्की ने जोर दिया कि आदिवासियों से सम्बंधित महत्वपूर्ण योजनाओं को जमीनी स्तर पर कार्यान्वित करने की जिम्मेदारी वैसे अधिकारियों को सौंपी जानी चाहिये जिनमें जनजातीय समाज से भावनात्मक लगाव है और वे वाकई में आदिवासियों का उत्थान चाहते हों.
श्री तिर्की ने इस बात पर रोष प्रकट किया कि, झारखण्ड गठन के बाद से ही अनेक अधिकारियों और नेताओं ने भी केवल अपने निजी स्वार्थ को सबसे ऊंचा स्थान देते हुए वैसे अनेक निर्णय लिये जो झारखण्ड के आदिवासियों के साथ ही पूरे झारखण्डी जनमानस और इस राज्य के खिलाफ थे. उन्होंने कहा कि, झारखण्ड की विशिष्ट आवश्यकतायें हैं जिसे नज़रअंदाज़ करना सभी के लिये आत्मघाती है.
वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा कि जल, जंगल और जमीन को सबसे अधिक ऊँचा स्थान देनेवाले झारखण्ड में जनजातीय समुदाय न केवल इन सबसे भावनात्मक एवं गहराई से जुड़ा है बल्कि वह संकोची भी है और अधिकारियों सहित अनेक नेताओं ने इस बात का भरपूर फायदा उठाया है. लेकिन किसी भी समाज को असीमित समय तक अंधेरे में नहीं रखा जा सकता. उन्होंने कहा कि झारखण्ड में आदिवासियों के ज़मीन का हित संरक्षित करने के लिये विशेष रूप से छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) एवं संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसएनपीटी) लागू तो है परन्तु अवांछित तत्वों द्वारा उसकी लगातार अवहेलना की जा रही है और झारखण्ड के परिप्रेक्ष्य में यह बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि जिन आदिवासियों के लिए झारखण्ड का गठन किया गया, वही आज विकास की परिभाषा में न केवल हासिये पर चले गये हैं बल्कि अब उनकी सांस्कृतिक-सामाजिक पहचान पर भी खतरा है.
श्री तिर्की ने कहा कि, विशेष रूप से पेशा कानून और झारखण्ड में पाँचवी अनुसूची को प्रभावी स्वरुप में लागू करना उन सभी के लिये बहुत ज़्यादा जरूरी है जो दिन-रात आदिवासी हित और आदिवासियत की बातें करते हैं.
श्री तिर्की ने कहा कि आदिवासियों के जीवन को गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिये यह आवश्यक है कि सरकार महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील अधिकारियों को इससे संबंधित जिम्मेदारी देकर ऑपरेशनल मोड में काम करे.
उन्होंने कहा कि, झारखण्ड में वर्तमान समय में 32 तरह की जनजातीय आबादी रहती है और आदिम जनजाति के अनेक समुदाय केवल उपेक्षा और अदूरदर्शिता के कारण विलुप्त होने के कगार पर हैं. उनके लिये सरकार द्वारा विशेष योजना तैयार करना बहुत जरूरी है.
श्री तिर्की ने कहा कि, झारखण्ड गठन के बाद सरकार के स्तर पर जरूरत के अनुरूप नयी योजनाओं की शुरुआत की जानी चाहिये थी लेकिन इस प्रदेश में तो वे योजनाएं भी पंगु साबित हुई है जो बहुत पहले से न केवल प्रदेश सरकार बल्कि केन्द्र सरकार के द्वारा भी लागू है लेकिन झारखण्ड में जमीनी स्तर पर वह पंगु साबित हुई है.
श्री तिर्की ने कहा कि, झारखण्ड के 15 अनुसूचित जिलों में वह जनजातीय उपयोजना (ट्राइबल सब प्लान या टीएसपी) लागू है जिसे कांग्रेस के शासनकाल में पांचवी पंचवर्षीय योजना के तहत
1976 में लागू किया गया था और जो विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिये है जहाँ जनजातीय आबादी 50 प्रतिशत से ज्यादा है. इस योजनाके दायरे में झारखण्ड के 50 प्रतिशत से अधिक प्रखण्ड आते हैं लेकिन उन सभी प्रखंडों और जिलों में इस योजना का हाल बेहाल है.
उन्होंने कहा कि आज 43 साल बाद भी यदि टीएसपी के अनेक प्रावधान जमीनी स्तर पर लागू नहीं है तो यह न केवल दुर्भाग्य की बात है बल्कि इसी की पृष्ठभूमि में इस सवाल का जवाब भी छुपा है कि आज सभी संसाधनों के होते हुए भी झारखण्ड के लोग गरीबी और पिछड़ेपन में उपेक्षा के साथ अपना जीवन गुजारने को क्यों विवश हैं?
श्री तिर्की ने कहा कि, जनजातीय परिवारों का जीवन स्तर ऊँचा उठाने तथा उन्हें शिक्षा एवं उनकी कुशलता के अनुरूप रोजगार उपलब्ध कराने के साथ ही उनके जीवन और जनजातीय समाज की विशेषताओं को कायम रखने के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकार ने अपनी योजनाएं तो चालू की हुई है लेकिन वह प्रभावी रूप में जमीनी स्तर पर लागू नहीं की जा रही है और यह सबसे अधिक तकलीफ की बात है. उन्होंने कहा कि प्रशासन द्वारा किसी भी योजना के कार्यान्वयन में न केवल सचिवालय बल्कि जिला एवं प्रखण्ड स्तर पर भी भ्रष्टाचार, लापरवाही एवं उपेक्षा का भाव सबसे बड़ी बाधा है.
श्री तिर्की ने विशेष रूप से वनाधिकार अधिनियम की चर्चा करते हुए कहा कि अब तक ना तो अधिकारियों को इस अधिनियम के पूरी जानकारी है और ना ही वे इसे लागू करवाने के प्रति ही समर्पित हैं, साथ ही इसके परिणाम स्वरुप ग्रामीणों एवं वन क्षेत्र में रहनेवाले आदिवासियों के बीच जागरूकता को बढ़ाकर इस क़ानून का प्रचार-प्रसार भी नहीं किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि यह सिर्फ एक उदाहरण है और इन सबके कारण सरकार के सभी संकल्प धरे के धरे रह जाते हैं.
श्री तिर्की ने कहा कि, आज झारखण्ड में अनेक अधिकारियों के साथ ही अनेक नेता भी सुविधाभोगी, स्वार्थी और भ्रष्ट आचरण के शिकार हैं और गरीब आदिवासियों के सामने जैसी समस्याएँ और चुनौतियाँ खड़ी है उसे वह नहीं समझ रहे. साथ ही दुर्भाग्य की बात यह भी है कि वे लोग शासन-प्रशासन में महत्वपूर्ण पदों पर पहुँच गये हैं जो झारखण्ड के वास्तविक दर्द से पूरी तरीके से अपरिचित हैं और उनमें इसके प्रति कोई भी दिलचस्पी या संवेदनशीलता नहीं बची थी कि वे आम लोगों के दुख-दर्द, तकलीफ को समझें और उसे दूर करने का प्रयास करें. उन्होंने कहा कि आदिवासियों की बड़ी संख्या भूख से त्रस्त हैं, बेहतर स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षा और रोजगार का अभाव है, परिणाम यह कि न केवल दूरदराज के गाँव-देहात बल्कि शहर के आसपास रहनेवाले आदिवासी एवं मूलवासियों को भी पलायन का दंश झेलना पड़ रहा है. श्री तिर्की ने जोर देकर कहा कि जब आदिवासी समाज अपने जानमाल की रक्षा नहीं कर पा रहा है तो उससे अपनी सांस्कृतिक एवं सामाजिक पहचान के प्रति जागरुक होने की अपेक्षा करना भी मूर्खता है.
वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा कि जनजातीय समाज के संदर्भ में जितनी भी योजनाएं राज्य में लागू है, उसका नियत अवधि में अपेक्षित परिणाम की प्राप्ति के लिये सरकार नियमित रूप से योजनाओं के कार्यान्वयन का मूल्यांकन करें और इस संबंध में समय-समय पर आवश्यक दिशा निर्देश दे.
श्री तिर्की ने मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन से अपील की है कि यदि सरकार ने अपनी संवेदनशीलता का परिचय देकर तत्काल प्रभावी कदम नहीं उठाये तो आनेवाले समय में इसका खामियाजा न केवल पूरे झारखण्ड को भुगतना पड़ेगा बल्कि देश पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और इस संपूर्ण कार्यप्रणाली के लिये हम अपने-आप को कभी भी क्षमा नहीं कर पायेंगे.