Tuesday, 11 February 2025

भारतीय संस्कृति और उनका उद्देश्य : गुड़िया झा

भारतीय संस्कृति और उनका उद्देश्य : गुड़िया झा

संस्कृतियों के मामले में हमारा देश भारत पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनाये हुए है। ये संस्कृति ही है जो विदेशों में दूर बैठे अपने बच्चों और रिश्तेदारों को अपने देश खींच लाती है घरवालों से मिलने। इन संस्कृतियों को सहेज कर रखने का कार्य भी हमारे देश के लोगों की विशेषताओं को दर्शाती है। 
साल के बारह महीने हमेशा किसी न किसी त्योहार से आसपास आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता रहता है। त्योहार सिर्फ हमारी खुशियां ही नहीं बढाते हैं, बल्कि हमें यह भी एहसास कराते हैं कि कोई न कोई अदृश्य शक्ति है जो हर समय हम सभी की रक्षा करती है। भले ही इन शक्तियों को हम देख नहीं पाते हैं। लेकिन अध्यात्म का संदेश तो यही है कि पहले ईश्वर फिर विज्ञान । एक नजर इनके उद्देश्य पर भी।
1 हिन्दू नववर्ष।
ब्राहाण पुराण के अनुसार सृष्टि की रचना का कार्य विष्णु जी ने ब्रह्मा जी को सौंप कर रखा हुआ है और ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना जब की तो वह दिन चैत्र मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि थी। 
इसके पीछे का उद्देश्य यह है कि सभी लोग साल के पहले दिन को  एक साथ मिलकर खुशी से मनाएं और नए सिरे से शुरूआत करें अपने आने वाले बेहतर भविष्य के लिए।
2 महाशिवरात्रि।
ऐसी मान्यता है कि देवों के देव महादेव और माता पार्वती का विवाह फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को हुआ था। हर साल इस तिथि को महाशिवरात्रि बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि इससे वैवाहिक जीवन से संबंधित सभी परेशानियों से छुटकारा मिलता है साथ ही दाम्पत्य जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है। महाशिवरात्रि हमें यह भी संदेश देती है कि इस पृथ्वी पर सभी को एक समान रूप से सम्मान  मिले। तभी तो शिव जी की बारात में सभी वर्ग के लोग शामिल होते हैं।
3 होली।
यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस पर शिवजी, कामदेव और राजा लघु से जुड़ी मान्यताएं भी हैं जो होलिका दहन से जुड़ी हैं। 
यह त्योहार ऐसे समय पर आता है जब मौसम में बदलाव के कारण हम थोड़े आलसी भी होते हैं। शरीर की इस सुस्ती को दूर भगाने के लिए लोग इस मौसम में न केवल जोर से गाते हैं, बल्कि पूरे उत्साह में होते हैं।
4 अक्षय तृतीया।
मत्स्य पुराण के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन अक्षत, पुष्प, दीप आदि द्वारा भगवान विष्णु, शिव और मां पार्वती की आराधना करने से संतान भी अक्षय बनी रहती है साथ ही सौभाग्य भी प्राप्त होता है।
5 वट सावित्री व्रत।
सौभाग्य और संतान की प्राप्ति में  सहायक यह व्रत माना गया है।भारतीय संस्कृति में यह व्रत नारीत्व का प्रतीक बन चुका है। सुहागन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा अपने पति की लंबी उम्र के लिए करती हैं।
ऐसी मान्यता है कि वटवृक्ष के मूल में भगवान ब्रह्मा, मध्य में विष्णु, तथा अग्र भाग में महादेव का वास होता है। इस प्रकार वट वृक्ष के पेड़ में त्रिदेवों की दिव्य ऊर्जा का अक्षय भंडार उपलब्ध होता है।
6 रक्षा बंधन।
यह त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस भागदौड़ भरी जिंदगी में जहां सभी के पास समय का अभाव होता है। रक्षा बंधन के माध्यम से भाई बहन एक दूसरे के लिए समय निकालते हैं। इस दौरान बहनें भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधकर उनकी लंबे उम्र  की कामना करती हैं। 
वहीं भाई भी बहन के लिए सुरक्षा कवच बनकर तैयार रहते हैं।
7 हरितालिका तीज।
हिंदू परंपरा में हरितालिका तीज व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए कठोर व्रत का पालन करती हैं। 
इस दिन पूरे विधि विधान से भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा की जाती है।
8 अनंत चतुर्दशी।
अनंत चतुर्दशी का विशेष महत्व है। क्योंकि इसे भगवान विष्णु की अनंत शक्ति और उनकी निरंतरता का प्रतीक माना जाता है। 'अनंत' शब्द का अर्थ है 'जिसका कोई अंत नहीं है'।  
यह पर्व मुख्य रूप से जीवन में आने वाली कठिनाइयों और दुखों के निवारण के लिए मनाया जाता है। 
9 जितिया।
यह व्रत हर साल आशिन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस व्रत को माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और स्वस्थ जीवन की कामना के लिए करती हैं।
10 शारदीय नवरात्र। 
नवरात्र शब्द से विशेष रात्रि का बोध होता है। इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है। 'रात्रि ' शब्द सिद्धि का प्रतीक है।
भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है। इसलिए दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है। 
मनीषियों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान बनाया है। चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली तिथि) से 9 दिन अर्थात नवमी तक और इसी प्रकार ठीक 6 मास बाद आशिन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी अर्थात विजयादशमी के 1 दिन पूर्व तक।
 11 शरद पूर्णिमा।
आशिन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस तिथि पर चंद्रमा अपने पूर्ण कलाओं पर होता है। 
दूसरी मान्यता यह है कि इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी धरती पर आती हैं। पूर्णिमा पर खीर बनाने का विशेष महत्व है। 
12 दीपावली।
इसे दीपों का पर्व माना जाता है। जो अज्ञानता और नकारात्मकता  के अंधकार को दूर करने का प्रतीक है। दीपावली घर की सफाई के साथ आंतरिक शुद्धि का भी प्रतीक है, जो आत्मा की पवित्रता को दर्शाता है। 
माता लक्ष्मी की पूजा केवल भौतिक धन के लिए ही नहीं,बल्कि आत्मिक समृद्धि और शांति के लिए भी की जाती है।
13 गोवर्धन पूजा।
इस पर्व को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत की पूजा के कारण इसे गोवर्धन पूजा का नाम मिला। यह त्योहार दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है और उसका उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों की पूजा और संरक्षण का संदेश देना है।
14 भाईदूज।
भाईदूज कार्तिक मास के शुक्लपक्ष के द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला हिन्दू धर्म का पर्व है। जिसे यम द्वितीया भी कहते हैं। 
दिवाली उत्सव के अंतिम दिन आने वाला यह ऐसा पर्व है, जो भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करता है एवं बहनें अपने भाई की लंबी उम्र के लिए व्रत करती हैं और भाई भी अपनी बहन की रक्षा में सदैव आगे रहते हैं। 
15 छठ पूजा।
लोकआस्था का महापर्व छठ पूजा की तैयारी दिवाली के बाद से ही शुरू हो जाती है। धर्म शास्त्रों के अनुसार चार दिनों  तक चलने वाले उस महापर्व को परिवार और संतान की सुखद भविष्य के लिए की जाती है।
इस पर्व में प्रकृति से जुड़ी हर एक चीज जैसे- सूर्यदेव, नदी, तालाब,फल, फूल, बांस से बने सूप और डालियों में पूजन सामग्री को सजा कर छठी मईया की पूजा की जाती है। 
इस पर्व का मुख्य उद्देश्य सूर्य देवता की उपासना करना है, जो जीवनदायी ऊर्जा और प्रकाश का स्त्रोत माना जाता है। उनका पूजन हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि का संचार करता है।
इसमें पहले दिन शाम को डूबते सूर्य और दूसरे दिन सुबह उदयगामी सूर्य की उपासना की जाती है।
16 देवोत्थान एकादशी।
हमारे वेद पुराणों में मान्यता है कि दिवाली के बाद पड़ने वाले एकादशी पर देव उठ जाते हैं।यही कारण है कि इस दिन से शुभ कार्य जैसे- शादी विवाह, गृह प्रवेश आदि शुरू हो जाते हैं।भगवान विष्णु चार माह के लंबे समय के बाद योग निद्रा से जागते हैं। इसलिए इसे देवउठनी एकादशी भी कहते हैं। इसी दिन सायंकाल बेला में तुलसी विवाह का पुण्य लिया जाता है। सालीग्राम, तुलसी व शंख का पूजन होता है।
17 मकर संक्रांति।
मकर संक्रांति को फसल के मौसम की शुरूआत कहा जाता है और इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है।इसलिए मकर संक्रांति सूर्य के मकर राशि में गोचर राशि का प्रतीक है।  इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं और सर्दी घटना शुरू हो जाती है।

Saturday, 1 February 2025

Healthy mindset ; गुड़िया झा

Healthy mindset ; गुड़िया झा

अगर हमारा mind healthy  है तो जीवन के हर डिपार्टमेंट में हम    सक्रिय होते हैं। क्योंकि सारा खेल दिमाग का ही है। अपने दिमाग का सही उपयोग करके हम अपने फील्ड के बादशाह  बन सकते हैं। जिन लोगों ने इतिहास रचा है, उनका दिमाग उनके कंट्रोल में था। वे अपने दिमाग के कंट्रोल में नहीं थे। कहते हैं कि लाइट और साउंड की स्पीड सबसे तेज होती है। लेकिन दिमाग की स्पीड ने सबको पीछे छोड़ दिया है। कुछ चीजें आंखों से दूर होने के बाद भी सालों साल तक दिमाग में चलती रहती हैं। जीवन में सभी लड़ाइयां पहले दिमाग में चलती हैं, फिर मैदान में उतरती हैं। 
जिंदगी में सबसे अच्छी और सबसे बुरी बात का सबसे पहला असर हमारे दिमाग पर पड़ता है और दिमाग पर असर पड़ने से सीधा असर हमारे शरीर पर पड़ता है।  एक रिसर्च के अनुसार रिश्तों का हमारे दिमाग पर सबसे ज्यादा असर होता है। जिनके पास मजबूत रिश्ते हैं वे ज्यादा खुश रहते हैं। 
इसके अलावा कुछ झूठ इतनी शिद्दत से मान लिए जाते हैं कि वह सच लगने लगता है। फिर हमारा शरीर भी उसी तरह से काम करने लगता है। 
कुछ बातों का ध्यान रख कर हम अपनी सोच को एक मजबूत दिशा दे सकते हैं।
1 हर हाल में अच्छा सोचें।
हमारा सबसे बड़ा एकाउंट हमारा दिमाग है। इसमें हम जिस तरह की सोच डालते हैं, रिजल्ट भी उसी तरह से मिलता है। हम अपनी सोच के ही प्रोडक्ट हैं। तो क्यों न हम अच्छा ही सोचें। अपने आसपास चाहे लाख नकारात्मकता हो खुद सकारात्मक रहें। सकारात्मक लोग हमेशा ही ऊर्जावान होते हैं। वे हर बात का सशक्त अर्थ देते हैं।
2 अकेलेपन से बचें और हंसने का बहाना ढूंढें।
जहां तक संभव हो सके अपना सामाजिक दायरा बढाते रहें और हमेशा दोस्ताना माहौल बनाना भी जरूरी है। मजाक-मस्ती भी करें जिससे हंसने के मौके भी मिले। कहा जाता है कि प्रसन्नचित्त में ईश्वर का वास होता है। उदास और चिंता में बने रहने के हजार कारण है। उन्हें तलाशने की जरूरत नहीं होती है,जबकि हंसी के लिए माहौल बनाना पड़ता है। 
हम जितना ज्यादा खुश रहेंगे परेशानियां भी हमसे उतनी ही दूर रहेंगी। अपने दिमाग को कभी खाली नहीं रहने दें क्योंकि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। 
अगर किसी कारणवश अकेले रहना भी पड़े तो किताबों से दोस्ती करें।
3 अध्यात्म भी जरूरी।
अध्यात्म के बिना तो हमारा जीवन अधूरा है। आध्यात्मिक शक्ति हमें गलत रास्तों पर जाने से रोकती है। जीवन में अगर हर कार्य जरूरी है तो थोड़ा सा समय हम ईश्वर के ध्यान में लगा ही सकते हैं। इससे दिमाग को बहुत शांति मिलती है।

Saturday, 25 January 2025

एक बदलाव अपने लिए भी जरूरी : गुड़िया झा

एक बदलाव अपने लिए भी जरूरी : गुड़िया झा


जब बदलाव की बात आती है तो हम सबसे पहले इसे दूसरों में  देखना चाहते हैं। जबकि बदलाव की प्रक्रिया खुद से कर अपने व्यक्तित्व को निखारने के साथ हम दूसरों के लिए भी एक मिशाल बन सकते हैं। ध्यान रहे कि अभी तो सिर्फ साल बदला है। कैलेंडर की तारीखें बदली हैं। अपने भीतर बहुत कुछ बदलना है। बहुत सी कड़वी यादों को भूलना है। बहुत सी जरूरी सीखें याद करना है। अपनी गलतियों को ठीक कर उससे सबक लेना है। दूसरों की गलतियों को भूलना है। जिसे मदद की जरूरत है उसका हाथ थामना है। दूसरों से पहले खुद से प्रेम करना है। किसी को भी कड़वा बोलकर उसको कष्ट नहीं देना है। दिखावे से दूर वास्तविकता में जीना है। बहुत से प्यारे शौक जो इस भागदौड़ में पीछे छूट गए थे, उसे अब पूरा करना है। पैसों की अंधी दौड़ में भागने के बजाय कुछ देर शांति और संतुष्टि से जीना भी है।
1 माफ करने की कला।
बड़ी सोच वाले लोग छोटी-छोटी बातों को प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बनाते हैं। वे सिर्फ लोगों की अच्छाइयों पर ध्यान देते हैं और उनकी कमियों को नजरअंदाज कर आगे बढ़ते हैं। 
खुद भी अपनी गलती पर माफी मांगना  ऐसे लोगों की सबसे बड़ी विशेषता होती है।
2 भूल जाना।
हम इंसानों की एक अजीब सी फितरत होती है कि किसी के द्वारा किये गए अच्छे कार्यों को भूल जाते हैं और बुरी यादों को अपने दिलो-दिमाग में बिठाए रहते हैं। किसी के द्वारा समय पर किये गए मदद को हमेशा एक सुखद घटना समझ कर उनका धन्यवाद देना एक ऐसी प्रक्रिया है, जो हमारे आपसी संबंधों को और भी मजबूती प्रदान करती है। 
अतीत में हुई बुरी यादों को भूल जाना सबसे अच्छी बात है। क्योंकि जब तक हम उन यादों के साथ जीते हैं, सिर्फ तकलीफों के साये में ही रहते हैं और अपने मस्तिष्क में अच्छी बातों को जगह नहीं दे पाते हैं। इससे हमारा वर्तमान भी प्रभावित होता है।
3 विश्वास।
सबसे पहले तो विश्वास अपनी क्षमता, मेहनत और काबिलियत पर करें। मेहनत करते हुए ईश्वर पर विश्वास बनाये रखना हमें अपनी मंजिल के करीब लाती है।   हमारे हाथ में सिर्फ सही कर्म है। कई बार हम अपने नकारात्मक विचारों के कारण भी कुछ विश्वासपात्र लोगों पर भी शक करते हैं, इससे हमारे आपसी संबंधों में भी दरार आने की संभावना बनी रहती है। लोगों के दिलों में भी अपने लिए जगह बनाना हमारी सबसे बड़ी सफलता है।
4 वैराग्य।
वैराग्य हमें यही सिखाता है कि जब हमारा जन्म हुआ तो हम खाली हाथ ही आये थे और जाना भी खाली हाथ ही है। आने और जाने के बीच में जो जीवन की प्रक्रिया है, उसका आनंद हमें लेना है।
हम भारतीयों की एक आम धारणा होती है कि सामने वाले के घर से ज्यादा बड़ा घर बनाना है, बड़ी गाड़ी लेनी है। अपना रूतबा दिखाने के लिए दूसरों को नीचा भी दिखाना पड़े तो चलेगा।  इन सबके बीच हम यह भूल जाते हैं कि इससे हमारा ही नुकसान होता है। 
जो भी हमारे पास मौजूद है, उसमें हम खुश नहीं रह पाते हैं और जो नहीं है उसके लिए बेहद परेशान रहते हैं। 
एक पुरानी कहावत है कि इंसान बेशुमार दौलत पाने के लिए खूब भागदौड़ करता है और अपनी सेहत से समझौता कर लेता है। फिर सेहत को पाने के लिए अपनी पूरी दौलत गंवा देता है।
ईश्वर ने जो चीजें हमें फ्री में गिफ्ट दी हैं वो हैं हमारी सांसें।

Friday, 24 January 2025

महाकुंभ, वैज्ञानिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक घटना है : पं रामदेव पाण्डेय

महाकुंभ, वैज्ञानिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक घटना है : पं रामदेव पाण्डेय


महाकुंभ के नभ मण्डल के पात्र हैं बृहस्पति, सूर्य और चंद्र , राशि हैं वृष, सिंह, मकर और मेष जो यह ब्रह्मांड के तीस डिग्री के सुर्य के गोचर मे ही यह स्थिति बनती है , यह सुर्य की सक्रांति( एक माह) और गुरू के गोचर की आकाशीय घटनाक्रम है,
  स्थान - वृहस्पति - सुर्य - माह 
प्रयागराज- वृष - मकर - 14 जनवरी 
हरिद्वार- कुम्भ- मेष - 14  अप्रैल 
नासिक- सिंह - सिंह - 15  अगस्त
उज्जैन - सिंह - मेष - 14 अप्रैल 
सुर्य एक राशि पर एक माह रहता है यही माह मेला मे बदल जाता है , सुर्य के राशि पर जब चन्द्र ढाई दिन रहता है तब और सक्रांति के प्रारंभिक और अन्तिम दिन अमृत स्नान होता है , प्रयागराज और नासिक कुम्भ  भगवान शिव, सरस्वती( गुप्त नवरात्र) तथा सुर्य को समर्पित है तो हरिद्वार और उज्जैन का कुम्भ राम हनुमान (रामनवमी) और सुर्य को अर्पित है, अमावस  (पितरों) और पूर्णिमा( देवताओ) की तिथि महत्वपूर्ण है,  यंहा स्नान,दान, कल्पवास का महत्व है , इसमे नदियों का संरक्षण, संस्कृति का पोषण, अर्थ का संवर्धन( टेड फेयर), प्रकृति के संग चलन , पर्यटन का विकास, राष्ट्रवाद , एकात्मवाद के साथ-साथ शैव, वैष्णव और शाक्त , साकार- निराकार,  वर्ण,  जाति, पंथ आदि का महामिलन है , यही सहवास मोक्ष है, आत्मशान्ति,  आत्मशक्ति का अभिवृद्धि पुन: शुन्य मे समाहित होना  ही महाकुंभ है , 
●कुम्भ मे बृहस्पति का वैज्ञानिक महत्व:- 
बृहस्पति: प्रथम जायमानो महोज्योतिष :  परमे व्योमन्। ।
सप्तस्यास्तु विजातोरवेण विसप्त  रश्मिर धमत तमांसि ।। ऋग्वेद iv 50•4Av-xx88•4
Brispti when  1st  being born in the highest heaven of supreme light, seven mouthed multiform ( combind) with sound and seven rayed  has subdued darkness,    बृहस्पति सर्व प्रथम सौर मंडल मे प्रकाशमान हुआ और ब्रह्मांड के अन्धकार को सात किरणों से समाप्त कर दिया  ( इन सात किरणो का सवार सुर्य करता है) ।
बृहस्पति: प्रथमं जायमान स्तिष्यं नक्षत्रमभि    सम्वभूव: ।। तैतिरीय उपनिषद 3•1•1•5
बृहस्पति ग्रह पहले सौरमंडल मे त्रिष्क नक्षत्र मे आऐ,  शुक्र का पहचान भृगु पुत्र वेण ने किया ।
वैज्ञानिक कहते है आज से 14 अरब साल पहले बिगबैंग विस्फोट हुआ, सुर्य 5 अरब साल पहले बना  आज से 4.6 अरब साल पहले पृथ्वी बनी, पृथ्वी से 5 करोड  साल पहले बृहस्पति हिलीयम और हाईडोजन के संयोग से बना , यह संयोग है कि सुर्य और शनि मे भी हिलीयम और हाइडोजन है , बृहस्पति, सूर्य और शनि की राशि  संयोग कुम्भ मेला मे अनिवार्य  है मंगल(मेष) और शुक्र ( वृष)की राशि  चमत्कृत ग्रह की राशि है , सुर्य, शनि और बृहस्पति बडे तारे/ ग्रह है तो मंगल और शुक्र  चमत्कृत है , 
●बृहस्पति का गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र बडा और मजबूत है , क्षुद्र ग्रह बृहस्पति के उच्च गुरुत्वाकर्षण के कारण बृहस्पति मे समाहित हो जाते है , बृहस्पति पृथ्वी को क्षुद्र ग्रह और धुमकेतु से बचाता है , नही तो एक सुई भी अन्तरिक्ष से गिरकर  पृथ्वी को नष्ट कर सकती है , उल्कापिंड तो तबाही ला देते , डाइनासोर का विनाश का कारण उल्कापिंड का पृथ्वी पर गिरना ही है , 
बृहस्पति सौरमंडल का सफाई करता है , बृहस्पति पृथ्वी का उद्धारकर्ता है, बृहस्पति भगवान विष्णु का द्योतक है, विष्णु चराचर जगत के पालनहार है , बृहस्पति 11.86 साल मे सुर्य का चक्कर पुरा कर बारह राशि को पार कर  पुन: उसी राशि पर आता है , बृहस्पति जब जब वृष, सिंह और कुम्भ राशि पर आता है कुम्भ का मेला लगता है , सनातनी बृहस्पति के इसी संरक्षण के प्रति कृतज्ञ होकर कुम्भ स्नान करते है, ताकि डाइनासोर की तबाही की तरह बृहस्पति फिर  कोई भूल न कर दे , बृहस्पति देव गुरु है तो शुक्र राक्षस के गुरु है , वृष राशि पर गुरु का स्वागत शुक्र करते है और वृष राशि पर गुरू के आने पर प्रकृति, राजनैतिक,  सामाजिक  बदलाव भी होता है , 
●शनि:- बृहस्पति के बाद शनि हमारे ब्रह्मांड का बडा ग्रह है , शनि भी बृहस्पति की तरह पृथ्वी की रक्षा धूमकेतु से करता है , पृथ्वी पर शान्त वातावरण शनि के कारण है , हमारा आरामदायक तापमान का कारक शनि है , कुम्भ राशि का मालिक शनि है, कुम्भ राशि पर गुरुवार आने पल हरिद्वार मे अप्रैल म ई मे मेला लगता है,  
सुर्य, :- ऋग्वेद के अनुसार सूर्य संसार की आत्मा है , इसीलिए सुर्य पूजनीय है, ब्रह्मांड के बडे ग्रह का संग ही कुम्भ आयोजन कराता है , सुर्य संसार की आंख है , अन्न   जल , उर्जा का दाता सुर्य है , पृथ्वी के प्रणियो का रक्षक सुर्य और बृहस्पति है , इसलिए सनातनी  इनके विशेष स्थिति मे आने पर हर्ष उल्लास से वही उपस्थित होते है जहां गँगा त्रिपथगामिणी होकर त्रिवेणी हो गयी है , तीर्थ का राजा प्रयागराज है , 1575 ई मे अकबर ने किला बनवाया और आठ साल संगम पर गुजारा  था , 
●त्रिवेणी:- अमावस पूर्णिमा और सक्रांति को अमृत स्नान का महत्व है इस रात के ब्रह्म मुहूर्त मे देवता, सभी गोत्र के ऋषिगण , पितर , सातो चिरंजीवी संगम मे स्नान करने आते है, इस समय तारो को टूटकर गिरते त्रिवेणी मे देख सकते है ,गंगा यमुना का जल ओषधि से परिपूर्ण है तो सरस्वती पीतल का जल से स्नान कराती है , यह नदियां भारत की जीवन दायिनी है , हम इन नदी के प्रति भी कृतज्ञ होते है , यह ब्राह्मवर्त है , गंगा और सरस्वती विष्णु लोक से आई पर यमुना सुर्य लोक से आई, त्रिवेणी सभी तीर्थ का राजा है,  प्रयाग तीर्थ राज है,  
 ●भारद्वाज आश्रम  - ऋग्वेद, अथर्ववेद,  वायुपुराण और तैतिरीय ब्राह्मण मे वर्णित भारद्वाज ऋषि बृहस्पति और ममता के पुत्र और अंगिरा के पौत्र हैं, द्रोणाचार्य, गर्ग ( यदुवंश के आचार्य)पुत्र है तो कुबेर की माता और विश्रवा( रावण के पिता) की पत्नी  इडविडा पुत्री है ,दुसरी बेटी कात्यायनी  याज्ञवल्क्य की पत्नी हुई, 
प्रयागराज बसाकर गुरुकुल की स्थापना विश्वविद्यालय के तर्ज पर हुई, जंहा सर्व प्रथम सिविलाइजेशन आया है , यह विश्व की उर्जावान भुमि जिसे ब्रह्मवैवर्त , मध्यदेश, आर्यावर्त से जाना जाता है, भारद्वाज वैमानिक यांत्रिक, आयुर्वेद सहित अनेकों विद्या के आचार्य थे, राम सीता वन गमन के समय भारद्वाज आश्रम मे रुके और अग्नि विद्या सीखी थी, इसी विद्या से सीता को राम ने अग्नि प्रवेश कराया था,  
● नागाओं का रहस्य:- करोड़ नागा , अवधूत,अघोर, वैरागी,गृहस्थ  का आगमन यहां होता है , हिमालय, विन्ध्याचल, कामाख्या, गिरनार, महेन्द्र पर्वत,  नीलगिरी, अनमुडी आदि से महात्मा स्नान और कल्पवास के लिए आते और कुम्भ के बाद वापस लौट जाते है , कुछ महात्मा ,संत अपने अखाडे मे आ जाते है कुछ तीर्थाटन करते रहते है , साधु-संत वामपंथ और दक्षिण पंथ साकार और निराकार,  सगुण  -निर्गुण  शैव-वैष्णव और शाक्त सभी तरह के होते है , 
● परकाया प्रवेश:- यह जटिल योगक्रिया है , जो शंकराचार्य जी ने किया था , देवरहा बाबा भी तीन सौ साल पहले झारखंड के रामरेखा धाम, पालकोट (गुमला ) मे परकाया प्रवेश किया था, इसे चोला बदलना भी कहते है जैसे सांप , फोनिक्स अपना जीवन यौवन बढा लेते हैं,आत्मा को एक वृद्ध या अनैच्छिक शरीर से स्वस्थ शरीर मे डालकर हजारों-हजार साल इसी स्मरण शक्ति के साथ जीने की कला है, ऐसे संत कुम्भ मे आते है , 
● कैसे स्नान करे :- जो कुम्भ जा सकते है , जाकर स्नान करे , त्रिवेणी को प्रणाम,  दण्डवत, आचमन, कर गंगा मे उतरने से पहले क्षमा मांगे,  तब तीन डुबकी लगावे,  यज्ञोपवित, चन्दन करे , देवता ,ऋषि, सप्त चिरंजीव,  यम का तर्पण करे, मृत  सम्बन्धों , मित्र, गुरू का नाम लेकर तर्पण करे , फिर सुर्य को जल दे , इसके बाद दान ,हवन,  आचार्य, गुरु, नागा संत तथा गरीब दुखिया को अन्न,भोजन ,वस्त्र आदि का दान करे,  जो कुम्भ त्रिवेणी मे नही जा सकते है वे त्रिवेणी का जल लाकर उपरोक्त विधि से स्नान करे,
 



 

 

 

Monday, 20 January 2025

नेशनल योगासन प्रतियोगिता में डिवाइन योगा अकेडमी, झारखण्ड को मिले दो स्वर्ण सहित एक रजत एवं एक कांस्य पदक

राची, झारखण्ड  | जनवरी |  20, 2025 ::
बोलपुर, शांतिनिकेतन, पश्चिम बंगाल के विवेकानंद आश्रम में स्वामी विवेकानंद योग समिति और लीव इन फ़ीट के संयुक्त तत्वाधान में दो दिवसीय ओपन नेशनल योगासन प्रतियोगिता का आयोजन 18 एवं 19 जनवरी 2025 को किया गया.

प्रतियोगिता में डिवाइन योगा अकेडमी झारखंड के प्रतिभागियों को दो स्वर्ण एक रजत और एक कांस्य पदक प्राप्त हुआ।
टीम में जगदीश सिंह, प्रदीप कुंभकार, शत्रुघन कुमार एवं संदीप कुमार ठाकुर शामिल थे।
जगदीश सिंह टीम के कप्तान एवं कोच थे।
विजयी टीम के रांची वापस आने पर डिवाइन योगा अकेडमी की डायरेक्टर डॉ परिणीता सिंह ने रांची रेलवे स्टेशन में टीम का स्वागत किया और उन्हें ढेरो बधाईया दी और साथ ही साथ उनके उज्जवल भविष्य की कामना की

परिणाम
ग्रुप एफ
प्रदीप कुंभकार : प्रथम
शत्रुघन कुमार : द्वितीय
संदीप कुमार ठाकुर : तृतीय

ग्रुप जी
जगदीश सिंह : प्रथम

Saturday, 18 January 2025

महाकुंभ 2025 : अदाणी की महाकुंभ सेवा को मिला 101 साल पुराने संगठन का साथ

महाकुंभ 2025 : अदाणी की महाकुंभ सेवा को मिला 101 साल पुराने संगठन का साथ

प्रयागराज,
जहां एक और महाकुंभ 2025 श्रृद्धालुओं के उत्साह के मामले में नित नए रिकॉर्ड तोड़ रहा है वहीं देशभर के उद्योगपति भी कुंभ मेले में आने वाले श्रृद्धालुओं की सेवा में लगे हैं। ऐसा ही काम देश के अग्रणी उद्योगपति गौतम अदाणी 101 साल पुराने संगठन के साथ मिल कर कर रहे हैं। उस संगठन का नाम है गीता प्रेस। गीता प्रेस दुनियाभर में हिंदू धर्म से जुड़े साहित्य के प्रकाशन और प्रचार-प्रसार का सबसे बड़ा संगठन है। गीता प्रेस और अदाणी समहू मिल कर श्रृद्धालुओं को मुफ्त में आरती संग्रह उपहार स्वरूप दे रहे हैं। इस आरती संग्रह का वितरण महाकुंभ मेला क्षेत्र में अलग-अलग जगहों पर वैन और स्टॉल लगाकर किया जा रहा है। मेला क्षेत्र में 10 मोबाइल वैन आरती संग्रह वितरण के कार्य में लगी हैं।

गीता समूह और गौतम अदाणी आए साथ
साल 1923 में उर्दू बाजार गोरखपुर उत्तर प्रदेश में 10 रुपये महीने के किराए पर एक कमरा लिया गया और वहीं से शुरू हुआ गीता प्रेस का सफर गया। धीरे-धीरे गीताप्रेस का निर्माण हुआ और इसकी वजह से न सिर्फ हिंदू संस्कृति बल्कि पूरे विश्व में गोरखपुर को एक अलग पहचान मिली। 29 अप्रैल, 1955 को भारत के तत्कालीन व प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने गीताप्रेस भवन के मुख्य द्वार व लीला चित्र मंदिर का उद्घाटन किया था। चार जून, 2022 को तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने गीताप्रेस में शताब्दी वर्ष समारोह का शुभारंभ किया था।

गीता प्रेस के साथ आरती संग्रह वितरण की शुरुआत के साथ ही अदाणी समूह के अध्यक्ष गौतम अदाणी ने भारतीय आध्यात्मिकता के प्रचार-प्रसार का संकल्प लिया है। इस सांस्कृतिक यात्रा में इस संकल्प के तहत आरती संग्रह की 1 करोड़ प्रतियां बांटने का लक्ष्य रखा गया है। 
इस आरती संग्रह में देवी-देवताओं की 102 आरतियां शामिल हैं। इसमें वैदिक आरतियां, गणेश, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, लक्ष्मी-नारायण, दशावतार, श्रीराम, कृष्ण, दुर्गा आदि की आरती शामिल है गीताप्रेस तीन प्रकार की आरती संग्रह पुस्तकें प्रकाशित करता है। 

महाकुंभ में श्रृद्धालुओं की सेवा में लगा है अदाणी ग्रुप
महाकुंभ के सेक्टर-19 में अदाणी समूह ने इस्कॉन के साथ मिलकर 40 स्थानों पर महाप्रसाद वितरण की व्यवस्था की है। यहां हर दिन तकरीबन 1 लाख श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं। असहाय, दिव्यांग, बुजुर्ग और छोटे बच्चों वाली माताओं के लिए मुफ्त गोल्फ कार्ट सेवा भी उपलब्ध कराई गई है, जिससे श्रद्धालुओं को त्रिवेणी स्नान और धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल होने में आसानी हो रही है।



Thursday, 16 January 2025

सजने लगीं स्टॉल्स पर किताबों की दुनिया, विधित शुभारंभ 17 जनवरी को

 राची, झारखण्ड  | जनवरी |  16, 2025 ::
स्थानीय जिला स्कूल मैदान में समय इंडिया, नई दिल्ली एवं बिहार राज्य अभिलेखागार निदेशालय, पटना के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 10 दिवसीय राष्ट्रीय पुस्तक मेले में प्रकाशकों एवं पुस्तक विक्रेताओं के आने के साथ परिसर में गहमा–गहमी शुरू हो गई है । इसी के साथ 80 से अधिक स्टॉल्स पर सजने लगी है किताबों की खूबसूरत दुनिया । मेले का विधिवत शुभारंभ  मुख्य अतिथि राज्यसभा सांसद एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार महुआ माजी और विधायक सी.पी. सिंह के उद्बोधन से होगा । समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में जिला शिक्षा पदाधिकारी विनय कुमार उपस्थित रहेंगे । 
    शुभारंभ समारोह के साथ ही पुस्तक प्रेमियों के आने का सिलसिला शुरू होगा जो 26 जनवरी तक जारी रहेगा । यहाँ पुस्तक प्रेमी प्रतिदिन प्रात: 11:00 बजे से रात्रि 7:30 बजे तक पुस्तकों को उलट–पलट सकेंगे, अपनी पसंद की पुस्तकें चुन और खरीद सकेंगे । यह जानकारी समय इंडिया (रजि), नई दिल्ली के प्रबंध न्यासी चन्द्र भूषण ने दी ।
उन्होंने बताया कि पुस्तक मेले में आने वाले पुस्तक प्रेमियों को प्रवेश के लिए 10 रुपये की सहयोग राशि देनी होगी लेकिन स्कूल एवं कॉलेज के विद्यार्थियों को सोमवार से शुक्रवार, प्रात: 11 बजे से 2 बजे के बीच अपना आई कार्ड दिखाने पर निशुल्क प्रवेश मिलेगा । पुस्तक प्रेमियों के लिए पूरे मेला अवधि के लिए पास जारी करने की सुविधा भी उपलब्ध है ।  
अन्य भाग ले रही प्रमुख संस्थाएं :– श्री भूषण ने बताया कि जिन प्रकाशकों एवं पुस्तक विक्रेताओं की मेले में भागीदारी है उनमें राजपाल एण्ड संस, प्रकाशन संस्थान, समय प्रकाशन, यश प्रकाशन, लक्ष्मी प्रकाशन, नैय्यर बुक सर्विस, वर्मा बुक कम्पनी, रोहित बुक कम्पनी, विकल्प प्रकाशन, आर्यन बुक कम्पनी (नई दिल्ली), हिन्द युग्म (गौतम बुद्ध नगर), दिव्यांश प्रकाशन (लखनऊ), योगदा सत्संग सोसायटी ऑफ इंडिया, क्राउन पब्लिकेशन, झारखंड झरोखा, गीता प्रेस, रामकृष्ण मिशन आश्रम (रांची), श्री कबीर ज्ञान प्रकाशन केन्द्र (गिरिडीह), राज्य अभिलेखागार (पटना) आदि प्रमुख हैं । झारखंड झरोखा के स्टॉल पर ही राजकमल प्रकाशन, वाणी प्रकाशन, प्रतियोगिता संबंधी और झारखंड पर केन्द्रित पुस्तकें होंगी । रामकृष्ण मिशन आश्रम का स्टॉल स्वामी रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद साहित्य के प्रेमियों के लिए आकर्षण का केन्द्र होगा ।
पुस्तक मेले में दो महत्वपूर्ण कार्यक्रम : मेले में 18 जनवरी को सायं 4:00 बजे प्रसिद्ध नाटककार अनीश अंकुर की पुस्तक का लोकार्पण डॉ. विनोद कुमार की अध्यक्षता में सम्पन्न होगा । 19 जनवरी को हरिवंश जी से किताबों पर संवाद करेंगे प्रोफेसर विनय भरत । यह महत्वपूर्ण कार्यक्रम सायं 4:00 बजे होगा । इसमें नगर के विशिष्ट लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार शामिल होंगे । दोनों लेखकों की पुस्तकें प्रकाशन संस्थान ने प्रकाशित की हैं ।  
बच्चों पर केन्द्रित विविध कार्यक्रम :– मेले के दौरान स्कूली बच्चों के लिए कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम रखे गए हैं जिनमें कविता–सुनाओ कहानी लेखन प्रतियोगिता, बच्चों की चित्रकला प्रतियोगिता, बच्चों की लोक गीत/देशभक्ति गीत गायन प्रतियोगिता, बच्चों की नृत्य प्रतियोगिता, बच्चों की फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता, एकल नाट्य प्रतियोगिता आदि प्रमुख हैं । बच्चों की सभी प्रतियोगिताएँ एवं कार्यक्रम नि:शुल्क होंगे । 

Wednesday, 15 January 2025

रामगढ़ महाविद्यालय में एयर फोर्स भर्ती संबंधी जानकारी के लिए सेमिनार का आयोजन


राची, झारखण्ड  | जनवरी |  15, 2025 ::

रामगढ़ महाविद्यालय रामगढ़ में एयर फोर्स के अधिकारियों के सहयोग से एक सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार की अध्यक्षता प्राचार्या डॉ रत्ना पांडेय ने किया। उन्होने कहा कि अनुशासित जीवन ही कामयाब जीवन है। और अनुशासन का सर्व श्रेष्ठ उदाहरण सेना है। सेमिनार को एयर फोर्स के भर्ती अधिकारी श्री चिन्मय महापत्रा ने संबोधित करते हुए कहा कि एयर फोर्स में महिला पुरुष दोनों आवेदन कर सकते है जिसमें साढ़े सत्रह वर्ष से इक्कीस वर्ष तक के युवा युवती उम्मीदवार हो सकते हैं। न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता इंटर पास होता है उम्मीदवार को मैट्रिक या इंटर में अंग्रेजी में 50% से अधिक अंक प्राप्त होना आवश्यक है। भर्ती के दौरान अंग्रेजी में जवाब देना आवश्यक होता है अतः बच्चों को अंग्रेजी में बात करने की योग्यता रखनी चाहिए तब एयर फोर्स में जा सकते हैं। उन्होंने अपनी बात बताने के साथ एयर फोर्स से संबंधित कुछ प्रश्न भी किया जिसके जवाब विद्यार्थियों ने देने की कोशिश की। सबसे अच्छा जवाब देने का काम बी लिव साइंस की सृष्टि सिंह ने किया। अत: बी लिव साइंस की सृष्टि सिंह को सेना से जुड़े सामान्य ज्ञान का सही सही उत्तर देने पर उपहार से सम्मानित किया गया। सेमिनार को एयर फोर्स के भर्ती अधिकारी प्रवीण द्विवेदी, प्राचार्य डॉ रत्ना पांडेय, डॉ बख्शी ओम प्रकाश सिन्हा, डॉ राजेश कुमार उपाध्याय ने भी संबोधित किया। अंत में प्रो मोहित जैन ने धन्यवाद ज्ञापन किया। सेमिनार में मुख्य रूप से प्रो रोज उरांव, डॉ मालिनी डीन डॉ बलवंती मिंज, प्रो बीरबल महतो, प्रो साजिद हुसैन, डॉ शाहनवाज खान, मनोज नायक, उस्मानुद्दीन उपस्थित थे।

Sunday, 12 January 2025

लोग हमारे चेहरे नहीं,शब्दों को याद रखते हैं : गुड़िया झा

लोग हमारे चेहरे नहीं,शब्दों को याद रखते हैं :  गुड़िया झा

हमारे बुजुर्गों ने भी कहा है सरस्वती सिर्फ किताबों में ही नहीं होती हैं, बल्कि हमारी जुबान पर भी होती हैं। इसलिए हमेशा शुभ बोलने को कहा जाता है।
वो कहते हैं ना कि थप्पड़ की मार जितना चोट नहीं पहुंचाती है, उससे कहीं ज्यादा तीखे शब्दों की चोट घाव करती है।
कई बार किसी के खराब शब्दों से हमारी मानसिक प्रतिक्रिया कुछ अजीब सी होती है जिससे कई दिनों तक हम परेशान रहते हैं। 
शब्द भी एक तरह का भोजन ही है। कब कौन सा शब्द परोसना है अगर यह समझ आ जाये, तो इससे अच्छा रसोइया और क्या हो सकता है। 
बाहरी सौंदर्य के लिए हम ब्रांडेड क्रीम, कपड़ों, घड़ी, पर्स, जूतों आदि का इस्तेमाल करते हैं। कभी-कभी हम यह भूल जाते हैं कि इन सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि बोलते समय हमारे शब्दों की मर्यादा कहीं ज्यादा जरूरी है। जो खराब शब्द हमें दुख पहुंचाते हैं, वो हम खराब शब्द या व्यवहार दूसरों को कैसे दे सकते हैं। 
"गौतम बुद्ध ने भी कहा है कि जहां जरूरत नहीं हो, वहां मौन सबसे ज्यादा अच्छा है। "
"शब्दों की खूबसूरती देखिए,
भला का उल्टा लाभ होता है
और दया का उल्टा याद होता है,
भला करके देखो हमेशा लाभ में रहोगे,
दया करके देखो,हमेशा याद रहोगे।"
अच्छे शब्द भी इंसान को बादशाह बना देते हैं।
संत कबीरदास जी ने भी अपने एक कथन में कहा है कि "पोथी पढ़ी-पढ़ी जग हुआ, पंडित भया न कोई, ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय"।
हमारी दिनचर्या में बहुत छोटी-छोटी बातें हैं, जिनका उपयोग कर हम बेवजह की उलझनों से बच सकते हैं।
1 लहजा (टोन)।
प्रत्येक शब्द सम्मानित है। बशर्तें की हमारे बोलने का लहजा कैसा है। बोलते समय हमारी भावना में नेकी, करूणा हो, तो बात चाहे कितनी भी सच क्यों न हो सामने वाले पर उसका अच्छा असर ही होगा। कई बार होता यह है कि अपना रूतबा, या अपने खानदान के अच्छे बैकग्राउंड की पहचान को बताने के लिए भी  हमारे बोलने के टोन में कड़वाहट होती है। कड़वाहट से बोलने से रूतबा कायम नहीं होता है, बल्कि हमारी इज्जत कम होती है। 
हम सामने वाले पर अपना गुस्सा उतार तो देते हैं,लेकिन कभी सामने वाले की मनोस्थिति को नहीं समझ पाते हैं। 
अपनी आवाज में तो कौआ भी बोलता है और कोयल भी बोलती है। फिर भी लोग कोयल की बोली को ही सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। 
जब भी मन क्रोधित हो, तो मौन सबसे बड़ी दवा है। यहां एक बात जान लेना भी जरूरी है कि क्रोध तब आवश्यक हो जाता है, जब हम अपने आसपास कुछ गलत होते देखते हैं।
2 शब्दों का चयन।
प्रत्येक शब्द कई तरीकों से बोले जाते हैं। सौम्य, शांत, स्थिर, क्रोधित आदि कई रूप में। अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम कौन से रूप को अपनाते हैं। शब्दों की गरिमा को बनाये रखना भी  हमारा काम है। कई बार होता यह है कि गलतफहमी या बदले की भावना में हम शब्दों के मायने बदल देते हैं। प्रकृति का एक नियम यह है कि जो हम देते हैं, वही हमें वापस मिलता भी है। फिर चाहे वह प्यार हो या सम्मान। क्रोध और तूफान को आने में समय नहीं लगता है और इन दोनों के शांत होने के बाद ही पता चलता है कि नुकसान कितना बड़ा हुआ है। 
कई बार मौन में इतनी शक्ति होती है कि सामने वाले को सोचने पर मजबूर कर देती है। तू-तू, मैं-मैं में कुछ नहीं रखा। थोड़ा रूकना, थोड़ा झुकना बेसुमार प्यार दिलाती है। जिस तरह से गाड़ी को अच्छे से चलाने के लिए अच्छी ड्रायविंग होनी जरूरी है,उसी तरह से लोगों के दिलों में जगह बनाने के लिए कुछ अच्छे शब्द ही काफी हैं और इसकी कोई कीमत भी नहीं लगती है।
3 शारीरिक हावभाव।
बोलते समय हमारा शारीरिक हावभाव कैसा है, यह भी काफी महत्वपूर्ण है। आंखों की चमक और चेहरे की सौम्यता हमारे शब्दों के सम्मान को और भी ज्यादा बढ़ा देते हैं। 
कभी-कभी हमारे बोलते समय चेहरे के हावभाव, आंखों के इशारे और हाथों का डायरेक्सन कुछ इस तरह से होता है कि सामने वाले को हमारे ऐसे व्यवहार से दुख पहुंचता है। जब भी हम बातचीत का सिलसिला जारी करें, तो अपनी पिछली शिकायतों को छोड़कर गर्मजोशी से अभिवादन करते हुए अपनी बात रखें। जब किसी बात पर आपत्ति हो, तो विनम्रतापूर्वक धीरे से ना कहना ज्यादा बेहतर होगा। इससे बात बढ़ेगी नहीं और आगे बात करने के अवसर भी मिलेंगे। हम जैसा बोलते हैं, हमारे आसपास भी उसी तरह का वातावरण बनता है।