Friday, 30 May 2025

आरकेडीएफल यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेकर सपने करें साकार 

राची, झारखण्ड  | मई |  30, 2025 ::

मैट्रिक और इंटर के परिणाम घोषित हो चुके हैं, और अब विद्यार्थियों के सामने अगला बड़ा कदम है सही विश्वविद्यालय का चयन. अक्सर देखा जाता है कि झारखंड के छात्र हायर एजुकेशन लिए दूसरे राज्यों का रुख करते हैं. लेकिन अब सवाल उठता है क्या वाकई बाहर जाना जरूरी है? या झारखंड में ही बेहतर और आधुनिक शिक्षा के विकल्प उपलब्ध हैं. इन्हीं सवालों का जवाब देते हुए आरकेडीएफ यूनिवर्सिटी रांची के रजिस्ट्रार अमित कुमार पांडे ने बताया कि अब झारखंड भी शैक्षणिक रूप से तेजी से आगे बढ़ रहा है और आरकेडीएफ यूनिवर्सिटी रांची छात्रों के लिए एक मजबूत और विश्वसनीय विकल्प बनकर उभरी है. 

पहचान की माेहताज नहीं आरकेडीएफ 
राजधानी रांची में स्थित आरकेडीएफ यूनिवर्सिटी आज किसी पहचान की मोहताज नहीं है. दिनो दिन यहां स्टूडेंट की संख्या में इजाफा हो रहा है. स्टडी के साथ-साथ यूनिवर्सिटी की ओर से प्लेसमेंट का भी खास ख्याल रखा जाता है. इस विवि से पढकर निकलने वाले छात्र- छात्राएं देश विदेश में सेटल्ड है और बेहतरीन पैकेज में जॉब कर रहे है. इस विवि में सभी स्ट्रीम की पढ़ाई होती है. 
थ्योरी के साथ-साथ प्रैक्टिकल पर विशेष ध्यान
यहां की खासियत है कि थ्योरी के साथ-साथ प्रैक्टिकल में विशेष ध्यान दिया जाता है. सबसे अच्छी बात तो यह है प्रेकटिकल के स्टूडेंट काे को माहौल भी उसी प्रकार दिया जाता है. जैसा उन्हें स्टडी के बाद फेस करना है. लॉ के प्रैक्टिकल के डिपार्टमेंट में ही एक कोर्ट रुम बनाया गया है, जहां सब कुछ प्रैक्टिकल करके स्टूडेंट को बताया और सिखाया जाता है. इसी प्रकार फार्माशिस्ट, बीेटेक, कम्यूटर साइंस आदि के लिए अलग-अलग प्रेक्टिकल रुम है.  

आरकेडीएफ यूनिवर्सिटी आधुनिक शिक्षा का केंद्र
आरकेडीएफ यूनिवर्सिटी न केवल शैक्षणिक गुणवत्ता के लिए जानी जाती है, बल्कि यह छात्रों को समग्र विकास के अवसर भी प्रदान करती है. विश्वविद्यालय का पाठ्यक्रम इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वह तीन प्रमुख क्षेत्रों को कवर करता है 

1. रिसर्च आधारित शिक्षाः
रिसर्च में रुचि रखने वाले छात्रों के लिए विश्वविद्यालय ने एक रिसर्च-ओरिएंटेड करिकुलम तैयार किया है जो आधुनिक आवश्यकताओं के अनुसार डिजाइन किया गया है. 
2. स्किल-बेस्ड प्लेसमेंट कार्यक्रमः
यदि छात्र प्लेसमेंट की तैयारी कर रहे हैं, तो उनके लिए स्किल-बेस्ड एजुकेशन सिस्टम उपलब्ध है, जिसे इंडस्ट्री पार्टनरशिप के साथ मिलकर तैयार किया गया है. 

3. कॉम्पिटिटिव एग्ज़ाम की तैयारीः
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के इच्छुक छात्रों के लिए विशेषज्ञों द्वारा समय-समय पर मार्गदर्शन दिया जाता है। इनमें वे लोग शामिल हैं जिन्होंने स्वयं विभिन्न राष्ट्रीय परीक्षाएं उत्तीर्ण की हैं. 

सभी स्ट्रीम्स के लिए हैं विकल्प
आरकेडीएफ यूनिवर्सिटी में सभी शैक्षणिक पृष्ठभूमियों वाले छात्रों के लिए उपयुक्त पाठ्यक्रम प्रदान करती है. साइंस के छात्र के लिए बी.एससी., इंजीनियरिंग, फार्मेसी, डिप्लोमा इन फार्मेसी उपलब्ध है. तो वहीं कॉमर्स स्टूडेंट यहां से बी.कॉम, एमबीए आदि कर सकते है. इसके अलावा कला के छात्र बीए, बीए-एलएलबी, बीबीए-एलएलबी, एलएलबी का कोर्स कर सकते है. इससे यह स्पष्ट होता है कि चाहे छात्र किसी भी स्ट्रीम से हों, आरकेडीएफ यूनिवर्सिटी उनके लिए एक बेहतर विकल्प है. 

स्कॉलरशिप की भी है सुविधा 
अक्सर लोग यह मानते हैं कि अच्छे कैंपस और सुविधाओं वाले कॉलेज महंगे होते हैं. लेकिन आरकेडीएफ यूनिवर्सिटी इससे अलग है. यह एक बजट-फ्रेंडली यूनिवर्सिटी है, जहां कम फीस में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाती है्. खास बात यह है कि विश्वविद्यालय में विभिन्न स्कॉलरशिप स्कीम्स उपलब्ध हैं.

मेरिट-बेस्ड स्कॉलरशिप
राज्य एवं भारत सरकार की स्कॉलरशिप योजनाएं
विशेष चांसलर स्कॉलरशिप
इससे आर्थिक रूप से कमजोर लेकिन मेधावी छात्रों को शिक्षा के अवसर मिलते हैं. 
ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीके से ले सकते है एडमिशन 
आरकेडीएफ यूनिवर्सिटी में प्रवेश की प्रक्रिया अत्यंत सरल है. छात्र उनके अभिभावक विश्वविद्यालय की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर आवेदन कर सकते हैं. वेबसाइट के जरिए रजिस्ट्रेशन, फॉर्म सबमिशन, और क्वेरी सबमिशन किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालय ने एक टोल-फ्री नंबर भी जारी किया है, जहां कॉल कर छात्र अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं. साथ ही यदि आप कैंपस विजिट करना चाहते हैं तो उनके लिए विश्वविद्यालय रांची के कटहल मोड़ के पास स्थित है. यहां बल्कि करियर काउंसलिंग की सुविधा भी कती है. करियर काउंसलर छात्रों को उनकी रुचि और योग्यता के अनुसार सही कोर्स चुनने में सहायता करते हैं. 
आरकेडीएफ यूनिवर्सिटी अब झारखंड के छात्रों के लिए केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि एक उज्जवल भविष्य की नींव बन चुकी है. यदि आप झारखंड में रहकर उच्च गुणवत्ता की शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं, तो आरकेडीएफ यूनिवर्सिटी आपके लिए एक बेहतर इंस्टीट्यूट साबित हो सकता है. यह विश्वविद्यालय न केवल शिक्षा प्रदान करता है, बल्कि आपके सपनों को साकार करने का प्लेटफार्म भी है.

Wednesday, 28 May 2025

खुद भी एक ब्रांड बनें : गुड़िया झा


जिन लोगों ने इतिहास रचा है उनका दिमाग उनके कंट्रोल में था। वे अपने दिमाग के कंट्रोल में नहीं थे। जीवन का सही आनंद लेने के लिए स्वस्थ मानसिकता का अपना एक अलग ही महत्वपूर्ण स्थान है। अगर हम स्वस्थ मानसिकता अपनाते हैं, तो जीवन के हर डिपार्टमेंट में हमारी बल्ले-बल्ले। अपने दिमाग का सही उपयोग करके हम अपने फील्ड के बादशाह बन सकते हैं। 
जिंदगी में सबसे अच्छी और सबसे बुरी बात का सबसे ज्यादा असर हमारे दिमाग पर पड़ता है। 
एक रिसर्च के अनुसार हमारे दिमाग पर सबसे ज्यादा असर रिश्तों का पड़ता है। 
थोड़ी सी सावधानी से हम भी स्वस्थ मानसिकता अपनाकर खुश रह सकते हैं।
1 खुश रहें यह सोचकर कि।
अक्सर  यह सोच कर परेशान रहते हैं कि हमारे पास  ये नहीं है, वो नहीं है। जबकि जो उपलब्ध है   उसकी तरफ हमारा ध्यान नहीं जाता है। हमेशा खुश रहें यह सोच कर कि जो हमारे पास है बहुत लोगों के पास वह भी नहीं है। अत्यधिक सुविधाएं आराम तो बहुत देती हैं। लेकिन जो नहीं हैं इसका मतलब यह नहीं कि उसके बिना हमारा जीवन अधूरा है। 
2 अपनी सोच के प्रोडक्ट बने।
हमारा सबसे बड़ा एकाउंट दिमाग है। इसमे हम जैसी सोच डालते हैं वैसा ही रिजल्ट भी हमें मिलता है। 
 इसलिए हमेशा अच्छा सोचें। इससे हम ऊर्जावान तो महसूस करते ही हैं साथ ही हमारे जीवन पर भी इसका अनुकूल प्रभाव पड़ता है। अपने आसपास चाहे कितनी भी नकारात्मकता क्यो न हो। अपने ऊपर कभी भी हावीं न होने दें। 
लोगों से खुले दिल से मिलें और बातों में भी दोस्ताना माहौल बनाये रखें। मजाक मस्ती भी करें जिससे हंसने के मौके मिलें। चिंता में बने रहने के हजार कारण हैं। उन्हें ढूंढना नहीं पड़ता है। हम जितने ज्यादा खुश रहेंगे उतने ही ज्यादा स्वस्थ भी रहेंगे। 

3 आध्यात्मिकता भी जरूरी।
आध्यात्मिकता के बिना तो हमारा जीवन अधूरा है। आध्यात्मिक शक्ति हमें गलत रास्ते पर जाने से रोकती है। इसके माध्यम से बड़ी से बड़ी परेशानियां भी आसानी से पार हो जाती हैं। अगर  अपने  हर कार्य के लिए हम समय निकाल सकते हैं, तो फिर थोड़ा समय ईश्वर की भक्ति के लिए भी सही।
4 खुद को  व्यस्त रखें।
एक पुरानी कहावत है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। किसी न किसी रचनात्मक कार्यों में खुद को व्यस्त रखें। इससे फालतू की बातें दिमाग में नहीं आएंगी और दूसरों के लिए भी प्रेरणादायक बन सकते हैं। उच्च विचार वाले लोग समाधान पर ज्यादा चर्चा करते हैं। औसत विचार वाले लोग समस्याओं पर ज्यादा चर्चा करते हैं और निम्न विचार वाले लोग दूसरे लोगों पर चर्चा करते हैं। अब हमें यह निर्णय लेना है कि हमें किस तरह बनना है।

Friday, 23 May 2025

रिश्तों में जिक्र नहीं फिक्र की एहमियत : गुड़िया झा

रिश्तों में  जिक्र नहीं फिक्र की एहमियत : 
गुड़िया झा
हम एक साथ कई रिश्तों में बंधे होते हैं। हर किसी का अपना एक अलग स्थान  और महत्व है। प्यार बांटना और पाना दोनों ही हमारे हाथों में है। क्योंकि प्रकृति का एक नियम है कि जो हम देते हैं वही हमें वापस मिलता भी है।
खुद को बार-बार साबित ना करना पड़े, जो सहज हो, सरल हो वास्तविक प्रेम की परिभाषा यही है। इसके लिए अपने मन की मजबूती भी उतनी ही आवश्यक है। प्रेम वह भाव है जो   दिल से जुड़ता है और एक-दूसरे से बांधे रखता है। लेकिन हर समय हमारे मन के अनुकूल हो यह कोई जरूरी तो नहीं। हर रिश्ते में सामंजस्य बना रहे इसके लिए जरूरी है थोड़ी सी सजगता।
1 अपेक्षाओं से दूर रहें।
अक्सर हमें कहने या सुनने में आता है कि उन लोगों से ऐसी उम्मीद नहीं थी। हर रिश्ते में कुछ अपेक्षाओं का होना स्वाभाविक है। लेकिन बहुत ज्यादा उम्मीद बनाये रखना खुद को खुशियों से दूर करना है। बल्कि खुद को दूसरों की उम्मीदों 
पर खड़े बनाये रखना ज्यादा खुशियां देता है। इससे काफी हद तक हम रिश्तों को संभाले रख सकते हैं।
2 खूबियों के साथ खामियों को अपनाना एक कला।
हर किसी में कुछ गुण और दोष दोनों ही होते हैं। हर कोई सर्वगुणसम्पन्न नहीं होता है। जब हाथों की पांचों उंगलियां भी एक जैसी नहीं होती हैं, तो फिर हम मनुष्यों का स्वभाव भी एक जैसे कैसे हो सकता है। 
इसलिए जो जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार कर अपना लें तो  रिश्तों के बीच खुद को सहज महसूस करते हैं साथ ही खुद के ऊपर कोई बोझ भी नहीं लगता। 
सामने वाले की अच्छाइयों को भी अपनाकर हम उनसे  बहुत कुछ  सीख भी सकते हैं। 

3 रिश्तों को भी सम्मान की एहमियत।
कोई भी रिश्ता यूं ही मजबूत नहीं होता है, बल्कि उसे कई तरह के पड़ाव से होकर गुजरना पड़ता है। उसके बाद उसमें स्थायित्व आता है।  वैसे कोई भी रिश्ता को  निभाना ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। एक बहुत व्यस्त है तो दूसरे की समझदारी से ही इसे बचाया जा सकता है। 
यहां सिर्फ अपनी खुशी के बारे में सोचना दूसरे को हमसे दूर करने लगता है। किसी से तुलना से भी संबंधों में दरार पैदा करती है। त्याग, समर्पण और भावनाओं को समझना रिश्तों की जड़ों को मज़बूत बनाती है।
किसी को अगर कुछ देना हो तो अपनी तरफ से सम्मान सबसे बड़ा गिफ्ट है। आपसी तालमेल बना रहे साथ ही एक दूसरे की बातों को गहराई से समझना भी जरूरी है। तभी तो इसे बचाया जा सकता है।

Wednesday, 30 April 2025

सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास का साथ : गुड़िया झा

सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास का साथ : गुड़िया झा
हम में से अधिकांश लोग किसी न किसी बात का पछतावा लेकर लंबे समय तक परेशान रहते है और अपनी वर्तमान खुशियों से दूर हो जाते हैं। बीते हुए अतीत की बातों को बार -बार याद कर हम परेशान और क्रोधित हो जाते हैं। जिसका नतीजा यह होता है कि हमें अपने आसपास सबकुछ नकारात्मक दिखाई पड़ने लगता है। लोगों से हमारे रिश्ते बिगड़ने लगते हैं। जिसके कारण हमारा सामाजिक दायरा छोटा होने लगता है।
इस बात को अगर हम मानसिक रूप से मान लें कि जो बीत गई सो बात गई। अब उसपर हमारा कंट्रोल नहीं है और उसके बारे में ज्यादा सोचना मतलब अपने आप को ज्यादा दुखी करना है। उसके बदले अभी और भी ज्यादा अच्छा हम कैसे कर सकते हैं। इस तरफ ध्यान देने से परिणाम भी बेहतर मिलने की संभावना बनी रहती है। 
1 समय की उपयोगिता।
ईश्वर ने  सभी के लिए समान रूप से एक दिन में 24 घण्टे का ही निर्धारण किया
है। अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है उन 24 घंटे का हम उपयोग किस रूप में करते हैं
 अनावश्यक गॉसिप, शिकायत और फिजूल की सोच पाल कर हम अपना अछिकांश समय इधर उधर ही बर्बाद कर देते हैं। 
जबकि इसके अनुकूल हम इस समय का सदुपयोग नई चीजें सीखने जिससे कि स्वयं के साथ दूसरों का भी भला हो।
इंटरनेट की जानकारी, अपनी आय बढ़ाने के स्रोत के बारे में जानकारी हासिल करना और उस दिशा में पूरी ईमानदारी के साथ आगे बढ़ना आदि ऐसे कई कार्य हैं जिससे हमारे जीवन को सही दिशा मिल सकती है। 
आज तक जितने भी सफल व्यक्ति हुए हैं उन्होंने इन 24 घंटों में ही अपनी सफलता की कहानी लिखी है। 
2 अपनी प्राथमिकताएं तय करना।
जीवन में खुश रहने के लिए हमें अपनी प्राथमिकता भी तय करनी होगी। कई बार ऐसा होता है कि जल्दबाजी और दिखावे के कारण  अपनी प्रथमिकताओं पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। जिसके कारण हमारी फिजूलखर्ची की आदतें बढ़ती जाती हैं। नतीजा धीरे धीरे हम खुद को कमजोर महसूस करते हैं। 
अपनी फिजूलखर्ची की आदतों पर अंकुश लगाकर हम प्रथमिकताओं पर ध्यान दें तो आने वाले समय में हमे परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा।
एक बात तो तय है कि पैसा हमारी बुनियादी जरूरतों को अवश्य ही पूरी करता है। लेकिन हर समय इसके खर्च की अधिकता हमारे बजट को भी बिगाड़ती है। कभी-कभी हम ऐसी चीजों की खरीदारी भी कर लेते हैं जिसकी हमें जरूरत नही होती है। जब हम इन सब बातों पर गौर करेंगे तो खुद को सुधारने का मौका भी मिलेंगा।
3 सकारात्मक सोच।
खुद को खुश रखने का सबसे  अच्छा तरीका यह है कि हमेशा सकारात्मक सोच बनाये रखें। भले ही आसपास का वातावरण दूषित क्यों न हो। आप भला तो जग भला। अगर हमारी सोच सही है तो तय माने कि आसपास का वातावरण कितना भी दूषित क्यों न हो, हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती है। 
सही समय पर भोजन और भरपूर नींद अवश्य लें। अच्छे लोगों की संगति और नकारात्मक लोगों से दूरी बनाते हुए  अपनी मंजिल की तरफ बढ़ सकते हैं।

Sunday, 27 April 2025

एक नजर अपनी भीतरी शक्तियों पर भी : गुड़िया झा

एक नजर अपनी भीतरी शक्तियों पर भी : गुड़िया झा

हमारी बाहरी ताकतें जितना मायने रखती हैं, उससे कहीं ज्यादा हमारे भीतर की ताकत महत्वपूर्ण है। जिंदगी बहुत खूबसूरत है। लेकिन इसमें उतार चढाव का होना भी स्वाभाविक है। इसमें हमारी भीतरी ताकत की असली परीक्षा होती है कि हम किस प्रकार से अपने जीवन में उन चुनौतियों का सामना करते हैं। 
समस्याओं पर ज्यादा बात करने से ज्यादा उसके समाधान पर जोर दिया जाए तो रास्ते भी अपने आप ही निकल जाते हैं। यही वह समय होता है जब हम घुटने टेकने के बजाय यदि डटकर मुकाबला करें तो हमारी असली ताकत की पहचान होती है। साथ ही इससे हम बहुत कुछ सीखते भी हैं। इसके लिए हमें खुद पर भरोसा रखना होगा और जिंदादिली के साथ आगे भी बढ़ना होगा।
1 प्रत्येक क्षण का आनंद लें।
हमारा अधिकांश समय इस बात की चिंता में ही बीत जाता है कि भविष्य में क्या होगा? इसी क्षण में हम इतने परेशान भी रहते हैं कि वर्तमान का सही से आनंद भी नहीं ले पाते हैं। जबकि इसके अनुकूल जब हम खुद को शांत रख कर लचीले बनते हैं तो वर्तमान में जीते भी हैं।
जरा सोचें क्या सिर्फ समस्याओं पर सोचने से समाधान संभव है। दुनिया में कई ऐसे लोग भी है जिन्हें हमसे ज्यादा समस्याएं हैं। तो फिर ऐसे लोग कैसे जिंदादिली से जीते भी हैं। इससे हमें हिम्मत मिलती है और मन से डरावने विचार बाहर भी निकलते हैं साथ  ही एक नई ऊर्जा का संचार भी होता है।     
2 स्वीकारने की कला।
हमारा जीवन विभिन्न प्रकार के रंगों से भरा हुआ है। कभी सुख तो कभी दुख। विपरीत परिस्थितियों में जल्दी विचलित होना स्वाभाविक है। कई बार हम सोचते हैं कि ऐसा हमारे साथ कैसे हो सकता है, ये नहीं होना चाहिए। 
जिन परिस्थितियों पर हमारा कंट्रोल नहीं है, उस पर विचलित होने पर परेशानी और भी बढ़ जाती है। इसलिए जब  हम चुनौतियों को पूरी तरह स्वीकारते हैं कि ठीक है अभी हमारे सामने चुनौतियां हैं तो संभव है कि हमें आगे के रास्ते भी मिलते हैं। 
भावनाओं के उतार चढ़ाव से हम खुद को बेहतर समझ सकते हैं। जो कठिनाई लगती है कि कभी खत्म नहीं होंगी उनका भी अंत होता है। सबसे पहले खुद की मदद करने की ताकत हमारे ही भीतर है।
3 जिम्मेदारी लेना।
जब सब कुछ हमारे साथ अच्छा होता है, तो उसकी जिम्मेदारी हम अपने ऊपर ही लेते हैं कि हमने काफी मेहनत की है। लेकिन जब चुनौतियों की बात आती है तो हम पीछे हट जाते हैं।  चुनौतियों का सामना करने से हमे अपनी वास्तविक क्षमता का पता भी चलता है। चुनौतियों की जिम्मेदारी भी अपने ऊपर ही लेकर उसमें सुधार का प्रयास करने से अनुभव के साथ बहुत कुछ सीखने को मिलता है।

Wednesday, 9 April 2025

कोई काम नहीं है मुश्किल, जब किया इरादा पक्का : गुड़िया झा

कोई काम नहीं है मुश्किल, जब किया इरादा पक्का : गुड़िया झा
ईश्वर ने हम सभी को बुद्धिमान बनाने के साथ भरपूर क्षमताओं से भी नवाजा है। यह बात अलग है कि कई बार हमें अपनी वास्तविक क्षमता का पता नहीं चलता है और हम गलत आदतों के शिकार हो जाते हैं। परिस्थितियां चाहे जो भी रही हों। जब तक हम नहीं चाहेंगे तब तक  किसी भी प्रकार की नकारात्मक बातें हमारे  भीतर प्रवेश नहीं कर सकती हैं। 

1 समुद्री जहाज से एक सीख। एक समुद्री जहाज को ही लें। समुद्र में सफर करते समय अरबो लीटर गैलन पानी उस जहाज को तब तक डुबो नहीं सकता जब तक कि जहाज उस पानी को अपने भीतर आने ना दें। 
लोग क्या सोचेंगे और बोलेंगे इतना टेंशन लेना  हमारा काम नहीं है। हमारा काम है कि हमसे कोई गलती ना हो । सच्चाई, मेहनत और ईमानदारी से काम करते हुए स्वयं और सबके हित का ध्यान रखते हुए आगे बढ़ना। 
जो कि ज्यादा मुश्किल भी नहीं है। इसके लिए हमें खुद ही प्रयत्न करना होगा।
2 मजबूत इच्छा शक्ति।
किसी भी गलत आदत को छोड़ने के लिए मजबूत इच्छा शक्ति का होना बहुत जरूरी है। जैसे- छोटी-छोटी बातों को दिल से लगाना, बेवजह गुस्सा करना, अपनी गलती स्वीकार नहीं करना , आलस्य आदि
जिस समस्या का समाधान बहुत ही आसानी से हो सकता है, उस पर आक्रोशित होकर काम करना क्या हमारे लिए फायदेमंद है? 
गुस्सा आना गलत बात नहीं है लेकिन यह भी जानना जरूरी है कि कहां पर हमें अपना गुस्सा जाहिर करना है और कहां पर नहीं।
अपनी गलत आदतों के जिम्मेदार हम खुद ही होते हैं। इससे किसी दूसरे का नहीं बल्कि हमारा खुद का ही नुकसान होता है। जब हम इसके फायदे पर ध्यान देंगे तो सम्भवतः हमें अपनी आदतों में सुधार के अवसर भी दिखाई देंगे। बेहतर होगा कि इसके बारे में परिजनों और दोस्तों की मदद लें। 
3  छोटी शुरूआत करें।
अपनी जिन आदतों को हम छोड़ना चाहते हैं और जब उन्हीं के अनुकूल माहौल में रहते हैं, तो उन्हें छोड़ना मुश्किल हो जाता है। 
जैसे- अपना वजन कम करने के इच्छुक व्यक्ति यदि घर में तमाम मीठी, तली-भुनी और सेहत के लिए हानिकारक चीजें रखते हैं, तो मन खाने को जरूर करेगा। इसी प्रकार नशा करने वाला व्यक्ति यदि वैसे ही लोगों के बीच उठता-बैठता रहेगा, तो अपनी आदतों से पीछा छुड़ाना थोड़ा मुश्किल है।
 इसलिए आदत डालने वाले माहौल में बदलाव बहुत जरूरी है।
स्वयं के आकलन से हम यह समझ पाते हैं कि गलती कहां हो रही है। इसका सबसे प्रभावशाली तरीका है खुद से कुछ सवाल पूछना। 
जैसे कई बार जब हम तनाव की स्थिति में होते हैं तो बाहर निकल कर हमारा मन खरीदारी का करता है। तो थोड़ा रूक कर पहले सोचें कि अमुक वस्तु की जरूरत हमें है भी या नहीं?
उसके अलावा हम कुछ भी ऐसा काम करें जिससे कि खुशी महसूस हो। जैसे - कहीं टहलने जाना, किसी से बातें करना आदि। इससे हम महसूस करेंगे कि हमारा तनाव भी दूर होता है। 
खुद में विश्वास भी बहुत जरूरी है।

Monday, 31 March 2025

जीवन के चार दोस्त ये भी : गुड़िया झा

जीवन के चार दोस्त ये भी : गुड़िया झा

वैसे तो हम जहां भी रहते हैं, वहां के माहौल में कुछ ही दिनों में घुलमिल भी जाते हैं। फिर उस हिसाब से खुद को ढालते भी हैं। बहुत कुछ हमारे ऊपर भी निर्भर करता है कि हम अपने आसपास के सही चीजों से तालमेल बैठाएं और गलत चीजों से किनारा कर लें। इस मामले में भावनाओं में नहीं बहना है बल्कि हमारे लिए जो सही है उस पर ध्यान देने की जरूरत है।  एक नजर अपने आसपास के इन चार दोस्तों पर।
1 संगति।
बात जब दोस्तों की आती है, तो इस मामले में हमें सतर्क रहने की जरूरत है। अच्छी संगति से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। अच्छे दोस्तों का साथ जीवन संवार देता है। जो दोस्त आपके द्वारा किये गए गलत कार्यों पर आपको तुरंत रोकटोक करे, वह दोस्त कभी भी आपको गलत रास्तों पर नहीं जाने देगा। भले ही कुछ समय के लिए हमें उसका विरोध अच्छा ना लगे। 
भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती का जवाब नहीं। एक ने दुख में कुछ मांगा भी नहीं और दूसरे ने बहुत कुछ देकर जताया भी नहीं। 
जब दोस्त दूर दूसरे शहर में भी हों, तो समय-समय पर उनसे हालचाल लेते रहें।
2 किताब।
चाहे हम घर मे अकेले हों या फिर सफर में। अच्छी किताबें हमें कभी भी अकेलेपन का एहसास नहीं होने देती हैं। ये हमारे मन और मस्तिष्क पर अच्छा प्रभाव डालती हैं। किताबों के बारे में एक कहावत यह है कि  ये किसी से कुछ कहती तो नहीं हैं लेकिन बिन कहे बहुत कुछ सिखाती भी हैं। यह मेरा अपना भी व्यक्तिगत अनुभव है। जब कभी भी मुझे नींद नहीं आती है, तो मैं किताबें पढ़ती हूं। 
जब कोई पंक्ति बहुत महत्वपूर्ण हो, तो उसे पेंसिल से अंडरलाइन कर लें ताकि जब भी आप उसे भूल जाएं, तो पन्नों को पलट कर देख सकते हैं और इसके बारे में लोगों को बता भी सकते हैं। 
किताबें हमें कभी भी गुमराह नहीं करती हैं।
3 रास्ता।
रास्ते पर तो गाड़ियां भी बहुत तेजी से चलती हैं। लेकिन उनकी दिशा और गति तभी कामयाब होती है जब वे अपने गंतव्य तक सही सलामत पहुंच जाती हैं। 
ठीक यही बात हम इंसान के साथ भी लागू होती है। गलत दिशा में भीड़ के पीछे चलने से कहीं ज्यादा अच्छा है कि सही दिशा में हम अकेले ही चलें। क्योंकि भीड़ में हम अक्सर अपने अस्तित्व को खो देते हैं। किसी के आसपास खड़े होने से किरदार नहीं बनते। बल्कि खुद अपनी मेहनत के बल पर अपनी पहचान बनानी पड़ती है। हर किसी को अपना दायरा पता होता है। इसलिए अपने दायरे में रह कर आगे बढ़ते जाएं।
4 सोच।
सबसे बड़ा खजाना हमारा दिमाग होता है। हम अपनी सोच के ही प्रोडक्ट हैं। गलत विचारों को अपने दिमाग में आने से पहले ही रोक दें। मेडिटेशन से मन शांत रहता है। 
खाली दिमाग शैतान का घर होता है। इसलिए जब कभी भी फुरसत में हों, तो खुद को व्यस्त रखें। इस क्षण में अपनी पसंद के कार्य करें। जैसे संगीत सुने, अपनी पसंद के मूवी देखे, फोन पर रिश्तेदारों से कुशलता पूछें, पौधों में पानी डालें,अपनी पसंद के डिश बनाएं आदि।

Friday, 28 March 2025

अकेले हैं तो क्या कम हैं : गुड़िया झा

अकेले हैं तो क्या कम हैं : गुड़िया झा

किसी ने क्या खूब कहा है कि किताब से सीखें तो नींद आती है और अगर जिंदगी सिखाए तो नींद उड़ जाती है। कई बार जीवन में ऐसे दौड़ भी आते हैं, जब हमें अकेले ही चलना होता है। इससे मन विचलित होता है और एक अजीब सी घबराहट का होना भी स्वाभाविक है। ऐसी स्थिति में सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि जो हमारे सबसे नजदीकी हैं उनसे हम परामर्श लें। उस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि हम जहां भी रहें वहां नकारात्मकता ना रहे। यही वह समय होता है जब हमें पूरे धैर्य के साथ सिर्फ अपने काम पर ही फोकस करना होता है। अपने काम से जितना ज्यादा प्यार करेंगे, उतने ही ज्यादा खुश रहेंगे। कभी ये सोच कर निराश ना हों कि अकेले हैं, बल्कि यह सोच कर डटे रहे कि अकेले हैं तो क्या कम हैं।

1 आत्मविश्वास बनाये रखें।
दुनिया में सबसे कीमती गहना हमारा परिश्रम है और सबसे अच्छा साथी अपना आत्मविश्वास। जिस दिन से हमने परिश्रम करना छोड़ दिया उस दिन से कई रास्ते भी बंद हो जाते हैं। जिस भी कार्य में निपुण हैं, उसी क्षेत्र में पूर्ण समर्पण के साथ लगे रहें। इससे धीरे-धीरे हमारे मन में आत्मविश्वास बढ़ता जाता है। फिर देखें चाहे परिस्थितियां कितनी ही विपरीत क्यों ना हो आप चट्टान की तरह खुद को मज़बूत पाएँगे। 
सुनाने वाले भी आपको बहुत कुछ सुनाएंगे पर ध्यान रहे कि हिम्मत नहीं तो प्रतिष्ठा नहीं और विरोधी नहीं तो प्रगति नहीं। बस, हाथी की चाल  चलते जाएं। 

2 जीतेंगे या फिर सीखेंगे।
जब भी यह विचार आये की हमने तो अपनी तरफ से पूरा परिश्रम किया फिर हमें अपने हिसाब से रिजल्ट क्यों नहीं मिल रहा है। तो यह तय मानें कि अगर हम जीत नहीं पाए, तो उससे बहुत कुछ सिख भी रहे हैं। जिंदगी जो सबक सिखाती है वह हमें किसी भी स्कूल और कॉलेजों में सीखने को नहीं मिलती है। 
अनुभवों से मिली सीख आगे किसी तरह की गलती ना करने की संकेत देती है और निरंतर सुधार की प्रक्रिया को आगे बढ़ाती है। इससे हमारे व्यक्तित्व में निखार भी आता है।

3 छोटी-छोटी रिस्क लें।
कई बार कुछ महत्वपूर्ण कार्य हमारे हाथों से इसलिए भी निकल जाते हैं कि हम जैसे हैं वैसे ही बने रहना चाहते हैं। थोड़ा सा भी रिस्क लेने से घबराते हैं। कंफर्ट जोन छोड़ना नहीं चाहते हैं। दिल कुछ कहता है और दिमाग कुछ और। 
पता नहीं क्या होगा? 
लोग क्या कहेंगे? कहीं कोई नाराज ना हो जाए? 
तो ध्यान रहे कि हर छोटे से  रिस्क में भी बड़ी संभावनाएं छिपी होती हैं। जब हम थोड़ा आगे बढ़ते हैं, तो कई कार्यों की संभावनाएं देखने को मिलती है।
जिंदगी भी एक परीक्षा ही है। यहां दूसरों की नकल करने से अच्छा यह है कि हमें यह ध्यान रहे कि इसमें सभी के पेपर अलग-अलग होते हैं।

Friday, 7 March 2025

महिला दिवस पर विशेष ::शान से कहें कि हम नारी हैं : गुड़िया झा

महिला दिवस पर विशेष ::शान से कहें कि हम नारी हैं : गुड़िया झा
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का दिन महिलाओं की उपलब्धियों को सलाम करने का दिन है। हर वर्ष 8 मार्च का दिन पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के तौर पर मनाया जाता है।
वैसे तो महिला प्रत्येक दिन ही सम्मान के लायक है। चाहे घर हो बाहर ऐसा कौन सा दिन है जहां महिलाएं अपना योगदान नहीं देती हैं। बेटी, बहन, पत्नी, मां और कई रिश्तों को निभाते हुए भी जब वो अपने चेहरे पर मुस्कान बनाए रखती है। इतना ही नहीं जब वो नौ महीने अपने गर्भ में रख कर बहुत सी शारीरिक समस्याओं से जूझते हुए बच्चे को जन्म देती है, तो वह महिला साधारण कैसे हो सकती है। बात जब महिलाओं की आती है, तो तनाव का सबसे ज्यादा बोझ उनके ऊपर ही आता है। ऐसे में यह जरूरी है कि वे भी खुल कर जिएं। अपने लिए समय निकालें।  अपनी दिनचर्या में छोटी छोटी बातों पर ध्यान देकर भी हम खुशियां पा सकते हैं।
1 सेहत पहली प्राथमिकता।
आमतौर पर कहा जाता है कि ये मेरा अपना है, वह मेरा अपना है।  वास्तव में हमारा सबसे सच्चा साथी हमारी सेहत है। जिस दिन सेहत ने साथ छोड़ा उस दिन से हम हर रिश्ते के लिए बोझ बन जायेंगे। जब हम खुद ही फिट रहेंगे, तभी जीवन का सही आनंद भी ले सकेंगे। जीवन है तो स्वाभाविक है कि जिम्मेदारियां होंगी। घर और बाहर की जिम्मेदारियों का अच्छी तरह से निर्वाहन करने के लिए स्वस्थ रहना अति आवश्यक है। यह भी  सही है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है। 
2 खुद से प्यार करें।
अक्सर हमारी यह धारणा होती है कि हम चाहे कितने भी सभी के प्रति जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभाएं फिर भी हमें कोई क्रेडिट नहीं देता। तो ध्यान रहे कि क्रेडिट लेने के चक्कर में हम खुद को ही दुखी करते हैं। खुद ही अपने आप को क्रेडिट दीजिए तो यह कि हमने अपनी जिम्मेदारी निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।  हम कितने सही हैं  ये सिर्फ अपनी अंतरात्मा और परमात्मा इन दो लोगों को ही ज्यादा पता होता है।
3 अपने शौक भी जरूरी।
कई बार जिम्मेदारियों के कारण हम खुद को जीना भूल जाते हैं। 
कभी ये सोच कर परेशान ना हों कि पहले कुछ नहीं किया तो अब क्या करें। जिंदगी जिंदादिली का नाम है। शौक छोटे ही सही जैसे कोई मैगजीन पढ़ना, अपनी पसंद के स्टाइल में फोटो खिंचवाना, खुद ही गाना, अपनी पसंद से तैयार होना, लिखना, पेंटिंग करना, आसपास घूमना, मूवी देखना आदि। इससे हमारे अंदर आत्मविश्वास आता है। खुद को खुश रखने का यह एक बेहतर तरीका है।
4 बदले की भावना से ऊपर उठें।
कभी कभी बिना गलती के भी हमें दूसरों के क्रोध का सामना करना पड़ता है । ऐसे में तुरंत प्रतिक्रिया देने के बजाय वहां से हट जाएं। हमारे हाथ में दूसरे को कन्ट्रोल  करना नहीं है बल्कि खुद को कन्ट्रोल करना है। हम जितना ज्यादा वाद विवाद से दूर रहेंगे उतने ही ज्यादा खुश रहेंगे। ऐसे में आप अपने सुनहरे पलों को याद करें कि इससे पहले आप कब और किन कारणों से खुश थे।

Thursday, 27 February 2025

केवल अंक नहीं हो सकता बच्चों की क्षमता के मूल्यांकन का आधार : गुड़िया झा

केवल अंक नहीं हो सकता बच्चों की क्षमता के मूल्यांकन का आधार  : गुड़िया झा

हम अधिकांश परीक्षा में आने वाले अच्छे नंबरों के आधार पर किसी भी बच्चे की क्षमता का आकलन बहुत ही आसानी से करते हैं। यह बात भी सत्य है कि वर्तमान समय में अच्छे नंबरों के आधार पर ही किसी अच्छे संस्थान में नामांकन प्रक्रिया में किसी तरह की कोई बाधा नहीं आती है। लेकिन केवल इससे किसी भी बच्चे की वास्तविक क्षमता का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। परीक्षाएं शैक्षणिक अवसरों को वितरित करने का एक आवश्यक और आसान तरीका मात्र है। छात्र की प्रतिभा उसकी परीक्षा में दिखाए गए प्रदर्शन से आगे जा सकती है। यदि हमारे पास कम नंबर है, तो हम हारे हुए बिल्कुल नहीं हैं।
प्रत्येक बच्चा स्वभावतः विजेता होता है। जब उसके आस पास के बुद्धिजीवी समझे जाने वाले लोग अपनी दृष्टि से या अपनी पूर्वाग्रहता से उसका मूल्याङ्कन करने लगते हैं तभी उसे हरा हुआ या कमज़ोर समझने लगते है।  जिस तरह से हाथों की सभी उंगलियां बराबर नहीं होती हैं, उसी तरह से सभी बच्चों की योग्यता और क्षमता भी अलग अलग होती है। स्कूल और कॉलेजों में जिन बच्चों के नंबर कम आते हैं इसका मतलब यह नहीं है कि ऐसे बच्चे आगे नहीं बढ़ सकते हैं। प्रत्येक बच्चों को अपना दायरा पता होता है। उसे प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। 
मान लिया कि एक ही क्लास के कुछ बच्चों का चयन आईआईटी में हुआ। वहीं कुछ बच्चों का चयन आईआईटी में नहीं हुआ। जिन बच्चों का चयन आईआईटी में नहीं हुआ, वैसे बच्चे दूसरे, तीसरे, चौथे या अन्य क्षेत्र जिसका हमें अपनी सीमित जानकारी के कारण ज्ञान नहीं है के लिए बेहतर हो सकते हैं। सामान्य वर्ग के छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं में ज्यादा नंबर अपनी कड़ी मेहनत से लाते हैं लेकिन उन्हें प्रवेश नहीं मिल पाता है क्योंकि आरक्षण के कारण कम अंक लाने वाला छात्र प्रवेश पा लेते है। इसका अर्थ यह नहीं कि हम सामान्य वर्ग उन छात्रों को नाकारा समझें जो आईआईटी में प्रवेश नहीं पा सके।  हर एक बच्चा अपनी योग्यता और क्षमता के आधार पर अपने मुकाम को हासिल कर सकता है।  
अगर सामान्य शिक्षा के साथ-साथ रूपांतरण शिक्षा पर भी यदि ध्यान दिया जाए तो बच्चों में व्यवहारिक शिक्षा भी विकसित होगी जिससे कि वो जीवन के हर क्षेत्र में और प्रत्येक परिस्थितियों में भी सामंजस्य स्थापित करते हुए एक नए  समाज और देश के निर्माण में अपना योगदान दे सकते हैं। रूपांतरण शिक्षा से तात्पर्य वासी व्यावहारिक शिक्षा से है जो आपके सोच में परिवर्तन लाकर आपको अपने पसंद के क्षेत्र में एक बड़ी हस्ती के रूप में स्थापित करने में मदद करता है। 
दरअसल अगर हम अंक प्राप्ति पर ध्यान देने के साथ साथ छात्रों में "कमिटमेंट" शक्ति विकसित करने पर भी जोड़ दें तो देश का कायाकल्प हो सकता है।  'कमिटमेंट' यानि 'सकारात्मक प्राण पूरा करने के लिए अपने सर्वस्व न्योछावर करने का जज्जबा।  वास्तव में हम प्रत्येक संस्थाओं और संगठनों में "प्रतिबद्धता" के लिए विशेष पुरस्कार रख सकते हैं। उदाहरण के लिए- "सर्वाधिक कमिटेड छात्र",  "सर्वाधिक कमिटेड शिक्षक"। यह पुरस्कार प्रत्येक संस्था, संगठन में प्रतिवर्ष दिया जा सकता है। यहां हमें सावधानी बरतने की भी जरूरत है। हमें परिणामों के लिए भी प्रतिबद्ध होना चाहिए। अगर हम हार जाते हैं,तो हम यह सहर्ष स्वीकार करें कि जीवन एक खेल है और यहां हार-जीत लगा रहता है।

Tuesday, 11 February 2025

भारतीय संस्कृति और उनका उद्देश्य : गुड़िया झा

भारतीय संस्कृति और उनका उद्देश्य : गुड़िया झा

संस्कृतियों के मामले में हमारा देश भारत पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनाये हुए है। ये संस्कृति ही है जो विदेशों में दूर बैठे अपने बच्चों और रिश्तेदारों को अपने देश खींच लाती है घरवालों से मिलने। इन संस्कृतियों को सहेज कर रखने का कार्य भी हमारे देश के लोगों की विशेषताओं को दर्शाती है। 
साल के बारह महीने हमेशा किसी न किसी त्योहार से आसपास आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता रहता है। त्योहार सिर्फ हमारी खुशियां ही नहीं बढाते हैं, बल्कि हमें यह भी एहसास कराते हैं कि कोई न कोई अदृश्य शक्ति है जो हर समय हम सभी की रक्षा करती है। भले ही इन शक्तियों को हम देख नहीं पाते हैं। लेकिन अध्यात्म का संदेश तो यही है कि पहले ईश्वर फिर विज्ञान । एक नजर इनके उद्देश्य पर भी।
1 हिन्दू नववर्ष।
ब्राहाण पुराण के अनुसार सृष्टि की रचना का कार्य विष्णु जी ने ब्रह्मा जी को सौंप कर रखा हुआ है और ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना जब की तो वह दिन चैत्र मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि थी। 
इसके पीछे का उद्देश्य यह है कि सभी लोग साल के पहले दिन को  एक साथ मिलकर खुशी से मनाएं और नए सिरे से शुरूआत करें अपने आने वाले बेहतर भविष्य के लिए।
2 महाशिवरात्रि।
ऐसी मान्यता है कि देवों के देव महादेव और माता पार्वती का विवाह फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को हुआ था। हर साल इस तिथि को महाशिवरात्रि बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि इससे वैवाहिक जीवन से संबंधित सभी परेशानियों से छुटकारा मिलता है साथ ही दाम्पत्य जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है। महाशिवरात्रि हमें यह भी संदेश देती है कि इस पृथ्वी पर सभी को एक समान रूप से सम्मान  मिले। तभी तो शिव जी की बारात में सभी वर्ग के लोग शामिल होते हैं।
3 होली।
यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस पर शिवजी, कामदेव और राजा लघु से जुड़ी मान्यताएं भी हैं जो होलिका दहन से जुड़ी हैं। 
यह त्योहार ऐसे समय पर आता है जब मौसम में बदलाव के कारण हम थोड़े आलसी भी होते हैं। शरीर की इस सुस्ती को दूर भगाने के लिए लोग इस मौसम में न केवल जोर से गाते हैं, बल्कि पूरे उत्साह में होते हैं।
4 अक्षय तृतीया।
मत्स्य पुराण के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन अक्षत, पुष्प, दीप आदि द्वारा भगवान विष्णु, शिव और मां पार्वती की आराधना करने से संतान भी अक्षय बनी रहती है साथ ही सौभाग्य भी प्राप्त होता है।
5 वट सावित्री व्रत।
सौभाग्य और संतान की प्राप्ति में  सहायक यह व्रत माना गया है।भारतीय संस्कृति में यह व्रत नारीत्व का प्रतीक बन चुका है। सुहागन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा अपने पति की लंबी उम्र के लिए करती हैं।
ऐसी मान्यता है कि वटवृक्ष के मूल में भगवान ब्रह्मा, मध्य में विष्णु, तथा अग्र भाग में महादेव का वास होता है। इस प्रकार वट वृक्ष के पेड़ में त्रिदेवों की दिव्य ऊर्जा का अक्षय भंडार उपलब्ध होता है।
6 रक्षा बंधन।
यह त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस भागदौड़ भरी जिंदगी में जहां सभी के पास समय का अभाव होता है। रक्षा बंधन के माध्यम से भाई बहन एक दूसरे के लिए समय निकालते हैं। इस दौरान बहनें भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधकर उनकी लंबे उम्र  की कामना करती हैं। 
वहीं भाई भी बहन के लिए सुरक्षा कवच बनकर तैयार रहते हैं।
7 हरितालिका तीज।
हिंदू परंपरा में हरितालिका तीज व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए कठोर व्रत का पालन करती हैं। 
इस दिन पूरे विधि विधान से भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा की जाती है।
8 अनंत चतुर्दशी।
अनंत चतुर्दशी का विशेष महत्व है। क्योंकि इसे भगवान विष्णु की अनंत शक्ति और उनकी निरंतरता का प्रतीक माना जाता है। 'अनंत' शब्द का अर्थ है 'जिसका कोई अंत नहीं है'।  
यह पर्व मुख्य रूप से जीवन में आने वाली कठिनाइयों और दुखों के निवारण के लिए मनाया जाता है। 
9 जितिया।
यह व्रत हर साल आशिन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस व्रत को माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और स्वस्थ जीवन की कामना के लिए करती हैं।
10 शारदीय नवरात्र। 
नवरात्र शब्द से विशेष रात्रि का बोध होता है। इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है। 'रात्रि ' शब्द सिद्धि का प्रतीक है।
भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है। इसलिए दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है। 
मनीषियों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान बनाया है। चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली तिथि) से 9 दिन अर्थात नवमी तक और इसी प्रकार ठीक 6 मास बाद आशिन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी अर्थात विजयादशमी के 1 दिन पूर्व तक।
 11 शरद पूर्णिमा।
आशिन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस तिथि पर चंद्रमा अपने पूर्ण कलाओं पर होता है। 
दूसरी मान्यता यह है कि इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी धरती पर आती हैं। पूर्णिमा पर खीर बनाने का विशेष महत्व है। 
12 दीपावली।
इसे दीपों का पर्व माना जाता है। जो अज्ञानता और नकारात्मकता  के अंधकार को दूर करने का प्रतीक है। दीपावली घर की सफाई के साथ आंतरिक शुद्धि का भी प्रतीक है, जो आत्मा की पवित्रता को दर्शाता है। 
माता लक्ष्मी की पूजा केवल भौतिक धन के लिए ही नहीं,बल्कि आत्मिक समृद्धि और शांति के लिए भी की जाती है।
13 गोवर्धन पूजा।
इस पर्व को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत की पूजा के कारण इसे गोवर्धन पूजा का नाम मिला। यह त्योहार दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है और उसका उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों की पूजा और संरक्षण का संदेश देना है।
14 भाईदूज।
भाईदूज कार्तिक मास के शुक्लपक्ष के द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला हिन्दू धर्म का पर्व है। जिसे यम द्वितीया भी कहते हैं। 
दिवाली उत्सव के अंतिम दिन आने वाला यह ऐसा पर्व है, जो भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करता है एवं बहनें अपने भाई की लंबी उम्र के लिए व्रत करती हैं और भाई भी अपनी बहन की रक्षा में सदैव आगे रहते हैं। 
15 छठ पूजा।
लोकआस्था का महापर्व छठ पूजा की तैयारी दिवाली के बाद से ही शुरू हो जाती है। धर्म शास्त्रों के अनुसार चार दिनों  तक चलने वाले उस महापर्व को परिवार और संतान की सुखद भविष्य के लिए की जाती है।
इस पर्व में प्रकृति से जुड़ी हर एक चीज जैसे- सूर्यदेव, नदी, तालाब,फल, फूल, बांस से बने सूप और डालियों में पूजन सामग्री को सजा कर छठी मईया की पूजा की जाती है। 
इस पर्व का मुख्य उद्देश्य सूर्य देवता की उपासना करना है, जो जीवनदायी ऊर्जा और प्रकाश का स्त्रोत माना जाता है। उनका पूजन हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि का संचार करता है।
इसमें पहले दिन शाम को डूबते सूर्य और दूसरे दिन सुबह उदयगामी सूर्य की उपासना की जाती है।
16 देवोत्थान एकादशी।
हमारे वेद पुराणों में मान्यता है कि दिवाली के बाद पड़ने वाले एकादशी पर देव उठ जाते हैं।यही कारण है कि इस दिन से शुभ कार्य जैसे- शादी विवाह, गृह प्रवेश आदि शुरू हो जाते हैं।भगवान विष्णु चार माह के लंबे समय के बाद योग निद्रा से जागते हैं। इसलिए इसे देवउठनी एकादशी भी कहते हैं। इसी दिन सायंकाल बेला में तुलसी विवाह का पुण्य लिया जाता है। सालीग्राम, तुलसी व शंख का पूजन होता है।
17 मकर संक्रांति।
मकर संक्रांति को फसल के मौसम की शुरूआत कहा जाता है और इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है।इसलिए मकर संक्रांति सूर्य के मकर राशि में गोचर राशि का प्रतीक है।  इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं और सर्दी घटना शुरू हो जाती है।

Saturday, 1 February 2025

Healthy mindset ; गुड़िया झा

Healthy mindset ; गुड़िया झा

अगर हमारा mind healthy  है तो जीवन के हर डिपार्टमेंट में हम    सक्रिय होते हैं। क्योंकि सारा खेल दिमाग का ही है। अपने दिमाग का सही उपयोग करके हम अपने फील्ड के बादशाह  बन सकते हैं। जिन लोगों ने इतिहास रचा है, उनका दिमाग उनके कंट्रोल में था। वे अपने दिमाग के कंट्रोल में नहीं थे। कहते हैं कि लाइट और साउंड की स्पीड सबसे तेज होती है। लेकिन दिमाग की स्पीड ने सबको पीछे छोड़ दिया है। कुछ चीजें आंखों से दूर होने के बाद भी सालों साल तक दिमाग में चलती रहती हैं। जीवन में सभी लड़ाइयां पहले दिमाग में चलती हैं, फिर मैदान में उतरती हैं। 
जिंदगी में सबसे अच्छी और सबसे बुरी बात का सबसे पहला असर हमारे दिमाग पर पड़ता है और दिमाग पर असर पड़ने से सीधा असर हमारे शरीर पर पड़ता है।  एक रिसर्च के अनुसार रिश्तों का हमारे दिमाग पर सबसे ज्यादा असर होता है। जिनके पास मजबूत रिश्ते हैं वे ज्यादा खुश रहते हैं। 
इसके अलावा कुछ झूठ इतनी शिद्दत से मान लिए जाते हैं कि वह सच लगने लगता है। फिर हमारा शरीर भी उसी तरह से काम करने लगता है। 
कुछ बातों का ध्यान रख कर हम अपनी सोच को एक मजबूत दिशा दे सकते हैं।
1 हर हाल में अच्छा सोचें।
हमारा सबसे बड़ा एकाउंट हमारा दिमाग है। इसमें हम जिस तरह की सोच डालते हैं, रिजल्ट भी उसी तरह से मिलता है। हम अपनी सोच के ही प्रोडक्ट हैं। तो क्यों न हम अच्छा ही सोचें। अपने आसपास चाहे लाख नकारात्मकता हो खुद सकारात्मक रहें। सकारात्मक लोग हमेशा ही ऊर्जावान होते हैं। वे हर बात का सशक्त अर्थ देते हैं।
2 अकेलेपन से बचें और हंसने का बहाना ढूंढें।
जहां तक संभव हो सके अपना सामाजिक दायरा बढाते रहें और हमेशा दोस्ताना माहौल बनाना भी जरूरी है। मजाक-मस्ती भी करें जिससे हंसने के मौके भी मिले। कहा जाता है कि प्रसन्नचित्त में ईश्वर का वास होता है। उदास और चिंता में बने रहने के हजार कारण है। उन्हें तलाशने की जरूरत नहीं होती है,जबकि हंसी के लिए माहौल बनाना पड़ता है। 
हम जितना ज्यादा खुश रहेंगे परेशानियां भी हमसे उतनी ही दूर रहेंगी। अपने दिमाग को कभी खाली नहीं रहने दें क्योंकि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। 
अगर किसी कारणवश अकेले रहना भी पड़े तो किताबों से दोस्ती करें।
3 अध्यात्म भी जरूरी।
अध्यात्म के बिना तो हमारा जीवन अधूरा है। आध्यात्मिक शक्ति हमें गलत रास्तों पर जाने से रोकती है। जीवन में अगर हर कार्य जरूरी है तो थोड़ा सा समय हम ईश्वर के ध्यान में लगा ही सकते हैं। इससे दिमाग को बहुत शांति मिलती है।

Saturday, 25 January 2025

एक बदलाव अपने लिए भी जरूरी : गुड़िया झा

एक बदलाव अपने लिए भी जरूरी : गुड़िया झा


जब बदलाव की बात आती है तो हम सबसे पहले इसे दूसरों में  देखना चाहते हैं। जबकि बदलाव की प्रक्रिया खुद से कर अपने व्यक्तित्व को निखारने के साथ हम दूसरों के लिए भी एक मिशाल बन सकते हैं। ध्यान रहे कि अभी तो सिर्फ साल बदला है। कैलेंडर की तारीखें बदली हैं। अपने भीतर बहुत कुछ बदलना है। बहुत सी कड़वी यादों को भूलना है। बहुत सी जरूरी सीखें याद करना है। अपनी गलतियों को ठीक कर उससे सबक लेना है। दूसरों की गलतियों को भूलना है। जिसे मदद की जरूरत है उसका हाथ थामना है। दूसरों से पहले खुद से प्रेम करना है। किसी को भी कड़वा बोलकर उसको कष्ट नहीं देना है। दिखावे से दूर वास्तविकता में जीना है। बहुत से प्यारे शौक जो इस भागदौड़ में पीछे छूट गए थे, उसे अब पूरा करना है। पैसों की अंधी दौड़ में भागने के बजाय कुछ देर शांति और संतुष्टि से जीना भी है।
1 माफ करने की कला।
बड़ी सोच वाले लोग छोटी-छोटी बातों को प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बनाते हैं। वे सिर्फ लोगों की अच्छाइयों पर ध्यान देते हैं और उनकी कमियों को नजरअंदाज कर आगे बढ़ते हैं। 
खुद भी अपनी गलती पर माफी मांगना  ऐसे लोगों की सबसे बड़ी विशेषता होती है।
2 भूल जाना।
हम इंसानों की एक अजीब सी फितरत होती है कि किसी के द्वारा किये गए अच्छे कार्यों को भूल जाते हैं और बुरी यादों को अपने दिलो-दिमाग में बिठाए रहते हैं। किसी के द्वारा समय पर किये गए मदद को हमेशा एक सुखद घटना समझ कर उनका धन्यवाद देना एक ऐसी प्रक्रिया है, जो हमारे आपसी संबंधों को और भी मजबूती प्रदान करती है। 
अतीत में हुई बुरी यादों को भूल जाना सबसे अच्छी बात है। क्योंकि जब तक हम उन यादों के साथ जीते हैं, सिर्फ तकलीफों के साये में ही रहते हैं और अपने मस्तिष्क में अच्छी बातों को जगह नहीं दे पाते हैं। इससे हमारा वर्तमान भी प्रभावित होता है।
3 विश्वास।
सबसे पहले तो विश्वास अपनी क्षमता, मेहनत और काबिलियत पर करें। मेहनत करते हुए ईश्वर पर विश्वास बनाये रखना हमें अपनी मंजिल के करीब लाती है।   हमारे हाथ में सिर्फ सही कर्म है। कई बार हम अपने नकारात्मक विचारों के कारण भी कुछ विश्वासपात्र लोगों पर भी शक करते हैं, इससे हमारे आपसी संबंधों में भी दरार आने की संभावना बनी रहती है। लोगों के दिलों में भी अपने लिए जगह बनाना हमारी सबसे बड़ी सफलता है।
4 वैराग्य।
वैराग्य हमें यही सिखाता है कि जब हमारा जन्म हुआ तो हम खाली हाथ ही आये थे और जाना भी खाली हाथ ही है। आने और जाने के बीच में जो जीवन की प्रक्रिया है, उसका आनंद हमें लेना है।
हम भारतीयों की एक आम धारणा होती है कि सामने वाले के घर से ज्यादा बड़ा घर बनाना है, बड़ी गाड़ी लेनी है। अपना रूतबा दिखाने के लिए दूसरों को नीचा भी दिखाना पड़े तो चलेगा।  इन सबके बीच हम यह भूल जाते हैं कि इससे हमारा ही नुकसान होता है। 
जो भी हमारे पास मौजूद है, उसमें हम खुश नहीं रह पाते हैं और जो नहीं है उसके लिए बेहद परेशान रहते हैं। 
एक पुरानी कहावत है कि इंसान बेशुमार दौलत पाने के लिए खूब भागदौड़ करता है और अपनी सेहत से समझौता कर लेता है। फिर सेहत को पाने के लिए अपनी पूरी दौलत गंवा देता है।
ईश्वर ने जो चीजें हमें फ्री में गिफ्ट दी हैं वो हैं हमारी सांसें।

Friday, 24 January 2025

महाकुंभ, वैज्ञानिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक घटना है : पं रामदेव पाण्डेय

महाकुंभ, वैज्ञानिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक घटना है : पं रामदेव पाण्डेय


महाकुंभ के नभ मण्डल के पात्र हैं बृहस्पति, सूर्य और चंद्र , राशि हैं वृष, सिंह, मकर और मेष जो यह ब्रह्मांड के तीस डिग्री के सुर्य के गोचर मे ही यह स्थिति बनती है , यह सुर्य की सक्रांति( एक माह) और गुरू के गोचर की आकाशीय घटनाक्रम है,
  स्थान - वृहस्पति - सुर्य - माह 
प्रयागराज- वृष - मकर - 14 जनवरी 
हरिद्वार- कुम्भ- मेष - 14  अप्रैल 
नासिक- सिंह - सिंह - 15  अगस्त
उज्जैन - सिंह - मेष - 14 अप्रैल 
सुर्य एक राशि पर एक माह रहता है यही माह मेला मे बदल जाता है , सुर्य के राशि पर जब चन्द्र ढाई दिन रहता है तब और सक्रांति के प्रारंभिक और अन्तिम दिन अमृत स्नान होता है , प्रयागराज और नासिक कुम्भ  भगवान शिव, सरस्वती( गुप्त नवरात्र) तथा सुर्य को समर्पित है तो हरिद्वार और उज्जैन का कुम्भ राम हनुमान (रामनवमी) और सुर्य को अर्पित है, अमावस  (पितरों) और पूर्णिमा( देवताओ) की तिथि महत्वपूर्ण है,  यंहा स्नान,दान, कल्पवास का महत्व है , इसमे नदियों का संरक्षण, संस्कृति का पोषण, अर्थ का संवर्धन( टेड फेयर), प्रकृति के संग चलन , पर्यटन का विकास, राष्ट्रवाद , एकात्मवाद के साथ-साथ शैव, वैष्णव और शाक्त , साकार- निराकार,  वर्ण,  जाति, पंथ आदि का महामिलन है , यही सहवास मोक्ष है, आत्मशान्ति,  आत्मशक्ति का अभिवृद्धि पुन: शुन्य मे समाहित होना  ही महाकुंभ है , 
●कुम्भ मे बृहस्पति का वैज्ञानिक महत्व:- 
बृहस्पति: प्रथम जायमानो महोज्योतिष :  परमे व्योमन्। ।
सप्तस्यास्तु विजातोरवेण विसप्त  रश्मिर धमत तमांसि ।। ऋग्वेद iv 50•4Av-xx88•4
Brispti when  1st  being born in the highest heaven of supreme light, seven mouthed multiform ( combind) with sound and seven rayed  has subdued darkness,    बृहस्पति सर्व प्रथम सौर मंडल मे प्रकाशमान हुआ और ब्रह्मांड के अन्धकार को सात किरणों से समाप्त कर दिया  ( इन सात किरणो का सवार सुर्य करता है) ।
बृहस्पति: प्रथमं जायमान स्तिष्यं नक्षत्रमभि    सम्वभूव: ।। तैतिरीय उपनिषद 3•1•1•5
बृहस्पति ग्रह पहले सौरमंडल मे त्रिष्क नक्षत्र मे आऐ,  शुक्र का पहचान भृगु पुत्र वेण ने किया ।
वैज्ञानिक कहते है आज से 14 अरब साल पहले बिगबैंग विस्फोट हुआ, सुर्य 5 अरब साल पहले बना  आज से 4.6 अरब साल पहले पृथ्वी बनी, पृथ्वी से 5 करोड  साल पहले बृहस्पति हिलीयम और हाईडोजन के संयोग से बना , यह संयोग है कि सुर्य और शनि मे भी हिलीयम और हाइडोजन है , बृहस्पति, सूर्य और शनि की राशि  संयोग कुम्भ मेला मे अनिवार्य  है मंगल(मेष) और शुक्र ( वृष)की राशि  चमत्कृत ग्रह की राशि है , सुर्य, शनि और बृहस्पति बडे तारे/ ग्रह है तो मंगल और शुक्र  चमत्कृत है , 
●बृहस्पति का गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र बडा और मजबूत है , क्षुद्र ग्रह बृहस्पति के उच्च गुरुत्वाकर्षण के कारण बृहस्पति मे समाहित हो जाते है , बृहस्पति पृथ्वी को क्षुद्र ग्रह और धुमकेतु से बचाता है , नही तो एक सुई भी अन्तरिक्ष से गिरकर  पृथ्वी को नष्ट कर सकती है , उल्कापिंड तो तबाही ला देते , डाइनासोर का विनाश का कारण उल्कापिंड का पृथ्वी पर गिरना ही है , 
बृहस्पति सौरमंडल का सफाई करता है , बृहस्पति पृथ्वी का उद्धारकर्ता है, बृहस्पति भगवान विष्णु का द्योतक है, विष्णु चराचर जगत के पालनहार है , बृहस्पति 11.86 साल मे सुर्य का चक्कर पुरा कर बारह राशि को पार कर  पुन: उसी राशि पर आता है , बृहस्पति जब जब वृष, सिंह और कुम्भ राशि पर आता है कुम्भ का मेला लगता है , सनातनी बृहस्पति के इसी संरक्षण के प्रति कृतज्ञ होकर कुम्भ स्नान करते है, ताकि डाइनासोर की तबाही की तरह बृहस्पति फिर  कोई भूल न कर दे , बृहस्पति देव गुरु है तो शुक्र राक्षस के गुरु है , वृष राशि पर गुरु का स्वागत शुक्र करते है और वृष राशि पर गुरू के आने पर प्रकृति, राजनैतिक,  सामाजिक  बदलाव भी होता है , 
●शनि:- बृहस्पति के बाद शनि हमारे ब्रह्मांड का बडा ग्रह है , शनि भी बृहस्पति की तरह पृथ्वी की रक्षा धूमकेतु से करता है , पृथ्वी पर शान्त वातावरण शनि के कारण है , हमारा आरामदायक तापमान का कारक शनि है , कुम्भ राशि का मालिक शनि है, कुम्भ राशि पर गुरुवार आने पल हरिद्वार मे अप्रैल म ई मे मेला लगता है,  
सुर्य, :- ऋग्वेद के अनुसार सूर्य संसार की आत्मा है , इसीलिए सुर्य पूजनीय है, ब्रह्मांड के बडे ग्रह का संग ही कुम्भ आयोजन कराता है , सुर्य संसार की आंख है , अन्न   जल , उर्जा का दाता सुर्य है , पृथ्वी के प्रणियो का रक्षक सुर्य और बृहस्पति है , इसलिए सनातनी  इनके विशेष स्थिति मे आने पर हर्ष उल्लास से वही उपस्थित होते है जहां गँगा त्रिपथगामिणी होकर त्रिवेणी हो गयी है , तीर्थ का राजा प्रयागराज है , 1575 ई मे अकबर ने किला बनवाया और आठ साल संगम पर गुजारा  था , 
●त्रिवेणी:- अमावस पूर्णिमा और सक्रांति को अमृत स्नान का महत्व है इस रात के ब्रह्म मुहूर्त मे देवता, सभी गोत्र के ऋषिगण , पितर , सातो चिरंजीवी संगम मे स्नान करने आते है, इस समय तारो को टूटकर गिरते त्रिवेणी मे देख सकते है ,गंगा यमुना का जल ओषधि से परिपूर्ण है तो सरस्वती पीतल का जल से स्नान कराती है , यह नदियां भारत की जीवन दायिनी है , हम इन नदी के प्रति भी कृतज्ञ होते है , यह ब्राह्मवर्त है , गंगा और सरस्वती विष्णु लोक से आई पर यमुना सुर्य लोक से आई, त्रिवेणी सभी तीर्थ का राजा है,  प्रयाग तीर्थ राज है,  
 ●भारद्वाज आश्रम  - ऋग्वेद, अथर्ववेद,  वायुपुराण और तैतिरीय ब्राह्मण मे वर्णित भारद्वाज ऋषि बृहस्पति और ममता के पुत्र और अंगिरा के पौत्र हैं, द्रोणाचार्य, गर्ग ( यदुवंश के आचार्य)पुत्र है तो कुबेर की माता और विश्रवा( रावण के पिता) की पत्नी  इडविडा पुत्री है ,दुसरी बेटी कात्यायनी  याज्ञवल्क्य की पत्नी हुई, 
प्रयागराज बसाकर गुरुकुल की स्थापना विश्वविद्यालय के तर्ज पर हुई, जंहा सर्व प्रथम सिविलाइजेशन आया है , यह विश्व की उर्जावान भुमि जिसे ब्रह्मवैवर्त , मध्यदेश, आर्यावर्त से जाना जाता है, भारद्वाज वैमानिक यांत्रिक, आयुर्वेद सहित अनेकों विद्या के आचार्य थे, राम सीता वन गमन के समय भारद्वाज आश्रम मे रुके और अग्नि विद्या सीखी थी, इसी विद्या से सीता को राम ने अग्नि प्रवेश कराया था,  
● नागाओं का रहस्य:- करोड़ नागा , अवधूत,अघोर, वैरागी,गृहस्थ  का आगमन यहां होता है , हिमालय, विन्ध्याचल, कामाख्या, गिरनार, महेन्द्र पर्वत,  नीलगिरी, अनमुडी आदि से महात्मा स्नान और कल्पवास के लिए आते और कुम्भ के बाद वापस लौट जाते है , कुछ महात्मा ,संत अपने अखाडे मे आ जाते है कुछ तीर्थाटन करते रहते है , साधु-संत वामपंथ और दक्षिण पंथ साकार और निराकार,  सगुण  -निर्गुण  शैव-वैष्णव और शाक्त सभी तरह के होते है , 
● परकाया प्रवेश:- यह जटिल योगक्रिया है , जो शंकराचार्य जी ने किया था , देवरहा बाबा भी तीन सौ साल पहले झारखंड के रामरेखा धाम, पालकोट (गुमला ) मे परकाया प्रवेश किया था, इसे चोला बदलना भी कहते है जैसे सांप , फोनिक्स अपना जीवन यौवन बढा लेते हैं,आत्मा को एक वृद्ध या अनैच्छिक शरीर से स्वस्थ शरीर मे डालकर हजारों-हजार साल इसी स्मरण शक्ति के साथ जीने की कला है, ऐसे संत कुम्भ मे आते है , 
● कैसे स्नान करे :- जो कुम्भ जा सकते है , जाकर स्नान करे , त्रिवेणी को प्रणाम,  दण्डवत, आचमन, कर गंगा मे उतरने से पहले क्षमा मांगे,  तब तीन डुबकी लगावे,  यज्ञोपवित, चन्दन करे , देवता ,ऋषि, सप्त चिरंजीव,  यम का तर्पण करे, मृत  सम्बन्धों , मित्र, गुरू का नाम लेकर तर्पण करे , फिर सुर्य को जल दे , इसके बाद दान ,हवन,  आचार्य, गुरु, नागा संत तथा गरीब दुखिया को अन्न,भोजन ,वस्त्र आदि का दान करे,  जो कुम्भ त्रिवेणी मे नही जा सकते है वे त्रिवेणी का जल लाकर उपरोक्त विधि से स्नान करे,
 



 

 

 

Monday, 20 January 2025

नेशनल योगासन प्रतियोगिता में डिवाइन योगा अकेडमी, झारखण्ड को मिले दो स्वर्ण सहित एक रजत एवं एक कांस्य पदक

राची, झारखण्ड  | जनवरी |  20, 2025 ::
बोलपुर, शांतिनिकेतन, पश्चिम बंगाल के विवेकानंद आश्रम में स्वामी विवेकानंद योग समिति और लीव इन फ़ीट के संयुक्त तत्वाधान में दो दिवसीय ओपन नेशनल योगासन प्रतियोगिता का आयोजन 18 एवं 19 जनवरी 2025 को किया गया.

प्रतियोगिता में डिवाइन योगा अकेडमी झारखंड के प्रतिभागियों को दो स्वर्ण एक रजत और एक कांस्य पदक प्राप्त हुआ।
टीम में जगदीश सिंह, प्रदीप कुंभकार, शत्रुघन कुमार एवं संदीप कुमार ठाकुर शामिल थे।
जगदीश सिंह टीम के कप्तान एवं कोच थे।
विजयी टीम के रांची वापस आने पर डिवाइन योगा अकेडमी की डायरेक्टर डॉ परिणीता सिंह ने रांची रेलवे स्टेशन में टीम का स्वागत किया और उन्हें ढेरो बधाईया दी और साथ ही साथ उनके उज्जवल भविष्य की कामना की

परिणाम
ग्रुप एफ
प्रदीप कुंभकार : प्रथम
शत्रुघन कुमार : द्वितीय
संदीप कुमार ठाकुर : तृतीय

ग्रुप जी
जगदीश सिंह : प्रथम

Saturday, 18 January 2025

महाकुंभ 2025 : अदाणी की महाकुंभ सेवा को मिला 101 साल पुराने संगठन का साथ

महाकुंभ 2025 : अदाणी की महाकुंभ सेवा को मिला 101 साल पुराने संगठन का साथ

प्रयागराज,
जहां एक और महाकुंभ 2025 श्रृद्धालुओं के उत्साह के मामले में नित नए रिकॉर्ड तोड़ रहा है वहीं देशभर के उद्योगपति भी कुंभ मेले में आने वाले श्रृद्धालुओं की सेवा में लगे हैं। ऐसा ही काम देश के अग्रणी उद्योगपति गौतम अदाणी 101 साल पुराने संगठन के साथ मिल कर कर रहे हैं। उस संगठन का नाम है गीता प्रेस। गीता प्रेस दुनियाभर में हिंदू धर्म से जुड़े साहित्य के प्रकाशन और प्रचार-प्रसार का सबसे बड़ा संगठन है। गीता प्रेस और अदाणी समहू मिल कर श्रृद्धालुओं को मुफ्त में आरती संग्रह उपहार स्वरूप दे रहे हैं। इस आरती संग्रह का वितरण महाकुंभ मेला क्षेत्र में अलग-अलग जगहों पर वैन और स्टॉल लगाकर किया जा रहा है। मेला क्षेत्र में 10 मोबाइल वैन आरती संग्रह वितरण के कार्य में लगी हैं।

गीता समूह और गौतम अदाणी आए साथ
साल 1923 में उर्दू बाजार गोरखपुर उत्तर प्रदेश में 10 रुपये महीने के किराए पर एक कमरा लिया गया और वहीं से शुरू हुआ गीता प्रेस का सफर गया। धीरे-धीरे गीताप्रेस का निर्माण हुआ और इसकी वजह से न सिर्फ हिंदू संस्कृति बल्कि पूरे विश्व में गोरखपुर को एक अलग पहचान मिली। 29 अप्रैल, 1955 को भारत के तत्कालीन व प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने गीताप्रेस भवन के मुख्य द्वार व लीला चित्र मंदिर का उद्घाटन किया था। चार जून, 2022 को तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने गीताप्रेस में शताब्दी वर्ष समारोह का शुभारंभ किया था।

गीता प्रेस के साथ आरती संग्रह वितरण की शुरुआत के साथ ही अदाणी समूह के अध्यक्ष गौतम अदाणी ने भारतीय आध्यात्मिकता के प्रचार-प्रसार का संकल्प लिया है। इस सांस्कृतिक यात्रा में इस संकल्प के तहत आरती संग्रह की 1 करोड़ प्रतियां बांटने का लक्ष्य रखा गया है। 
इस आरती संग्रह में देवी-देवताओं की 102 आरतियां शामिल हैं। इसमें वैदिक आरतियां, गणेश, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, लक्ष्मी-नारायण, दशावतार, श्रीराम, कृष्ण, दुर्गा आदि की आरती शामिल है गीताप्रेस तीन प्रकार की आरती संग्रह पुस्तकें प्रकाशित करता है। 

महाकुंभ में श्रृद्धालुओं की सेवा में लगा है अदाणी ग्रुप
महाकुंभ के सेक्टर-19 में अदाणी समूह ने इस्कॉन के साथ मिलकर 40 स्थानों पर महाप्रसाद वितरण की व्यवस्था की है। यहां हर दिन तकरीबन 1 लाख श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं। असहाय, दिव्यांग, बुजुर्ग और छोटे बच्चों वाली माताओं के लिए मुफ्त गोल्फ कार्ट सेवा भी उपलब्ध कराई गई है, जिससे श्रद्धालुओं को त्रिवेणी स्नान और धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल होने में आसानी हो रही है।



Thursday, 16 January 2025

सजने लगीं स्टॉल्स पर किताबों की दुनिया, विधित शुभारंभ 17 जनवरी को

 राची, झारखण्ड  | जनवरी |  16, 2025 ::
स्थानीय जिला स्कूल मैदान में समय इंडिया, नई दिल्ली एवं बिहार राज्य अभिलेखागार निदेशालय, पटना के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 10 दिवसीय राष्ट्रीय पुस्तक मेले में प्रकाशकों एवं पुस्तक विक्रेताओं के आने के साथ परिसर में गहमा–गहमी शुरू हो गई है । इसी के साथ 80 से अधिक स्टॉल्स पर सजने लगी है किताबों की खूबसूरत दुनिया । मेले का विधिवत शुभारंभ  मुख्य अतिथि राज्यसभा सांसद एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार महुआ माजी और विधायक सी.पी. सिंह के उद्बोधन से होगा । समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में जिला शिक्षा पदाधिकारी विनय कुमार उपस्थित रहेंगे । 
    शुभारंभ समारोह के साथ ही पुस्तक प्रेमियों के आने का सिलसिला शुरू होगा जो 26 जनवरी तक जारी रहेगा । यहाँ पुस्तक प्रेमी प्रतिदिन प्रात: 11:00 बजे से रात्रि 7:30 बजे तक पुस्तकों को उलट–पलट सकेंगे, अपनी पसंद की पुस्तकें चुन और खरीद सकेंगे । यह जानकारी समय इंडिया (रजि), नई दिल्ली के प्रबंध न्यासी चन्द्र भूषण ने दी ।
उन्होंने बताया कि पुस्तक मेले में आने वाले पुस्तक प्रेमियों को प्रवेश के लिए 10 रुपये की सहयोग राशि देनी होगी लेकिन स्कूल एवं कॉलेज के विद्यार्थियों को सोमवार से शुक्रवार, प्रात: 11 बजे से 2 बजे के बीच अपना आई कार्ड दिखाने पर निशुल्क प्रवेश मिलेगा । पुस्तक प्रेमियों के लिए पूरे मेला अवधि के लिए पास जारी करने की सुविधा भी उपलब्ध है ।  
अन्य भाग ले रही प्रमुख संस्थाएं :– श्री भूषण ने बताया कि जिन प्रकाशकों एवं पुस्तक विक्रेताओं की मेले में भागीदारी है उनमें राजपाल एण्ड संस, प्रकाशन संस्थान, समय प्रकाशन, यश प्रकाशन, लक्ष्मी प्रकाशन, नैय्यर बुक सर्विस, वर्मा बुक कम्पनी, रोहित बुक कम्पनी, विकल्प प्रकाशन, आर्यन बुक कम्पनी (नई दिल्ली), हिन्द युग्म (गौतम बुद्ध नगर), दिव्यांश प्रकाशन (लखनऊ), योगदा सत्संग सोसायटी ऑफ इंडिया, क्राउन पब्लिकेशन, झारखंड झरोखा, गीता प्रेस, रामकृष्ण मिशन आश्रम (रांची), श्री कबीर ज्ञान प्रकाशन केन्द्र (गिरिडीह), राज्य अभिलेखागार (पटना) आदि प्रमुख हैं । झारखंड झरोखा के स्टॉल पर ही राजकमल प्रकाशन, वाणी प्रकाशन, प्रतियोगिता संबंधी और झारखंड पर केन्द्रित पुस्तकें होंगी । रामकृष्ण मिशन आश्रम का स्टॉल स्वामी रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद साहित्य के प्रेमियों के लिए आकर्षण का केन्द्र होगा ।
पुस्तक मेले में दो महत्वपूर्ण कार्यक्रम : मेले में 18 जनवरी को सायं 4:00 बजे प्रसिद्ध नाटककार अनीश अंकुर की पुस्तक का लोकार्पण डॉ. विनोद कुमार की अध्यक्षता में सम्पन्न होगा । 19 जनवरी को हरिवंश जी से किताबों पर संवाद करेंगे प्रोफेसर विनय भरत । यह महत्वपूर्ण कार्यक्रम सायं 4:00 बजे होगा । इसमें नगर के विशिष्ट लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार शामिल होंगे । दोनों लेखकों की पुस्तकें प्रकाशन संस्थान ने प्रकाशित की हैं ।  
बच्चों पर केन्द्रित विविध कार्यक्रम :– मेले के दौरान स्कूली बच्चों के लिए कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम रखे गए हैं जिनमें कविता–सुनाओ कहानी लेखन प्रतियोगिता, बच्चों की चित्रकला प्रतियोगिता, बच्चों की लोक गीत/देशभक्ति गीत गायन प्रतियोगिता, बच्चों की नृत्य प्रतियोगिता, बच्चों की फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता, एकल नाट्य प्रतियोगिता आदि प्रमुख हैं । बच्चों की सभी प्रतियोगिताएँ एवं कार्यक्रम नि:शुल्क होंगे । 

Wednesday, 15 January 2025

रामगढ़ महाविद्यालय में एयर फोर्स भर्ती संबंधी जानकारी के लिए सेमिनार का आयोजन


राची, झारखण्ड  | जनवरी |  15, 2025 ::

रामगढ़ महाविद्यालय रामगढ़ में एयर फोर्स के अधिकारियों के सहयोग से एक सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार की अध्यक्षता प्राचार्या डॉ रत्ना पांडेय ने किया। उन्होने कहा कि अनुशासित जीवन ही कामयाब जीवन है। और अनुशासन का सर्व श्रेष्ठ उदाहरण सेना है। सेमिनार को एयर फोर्स के भर्ती अधिकारी श्री चिन्मय महापत्रा ने संबोधित करते हुए कहा कि एयर फोर्स में महिला पुरुष दोनों आवेदन कर सकते है जिसमें साढ़े सत्रह वर्ष से इक्कीस वर्ष तक के युवा युवती उम्मीदवार हो सकते हैं। न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता इंटर पास होता है उम्मीदवार को मैट्रिक या इंटर में अंग्रेजी में 50% से अधिक अंक प्राप्त होना आवश्यक है। भर्ती के दौरान अंग्रेजी में जवाब देना आवश्यक होता है अतः बच्चों को अंग्रेजी में बात करने की योग्यता रखनी चाहिए तब एयर फोर्स में जा सकते हैं। उन्होंने अपनी बात बताने के साथ एयर फोर्स से संबंधित कुछ प्रश्न भी किया जिसके जवाब विद्यार्थियों ने देने की कोशिश की। सबसे अच्छा जवाब देने का काम बी लिव साइंस की सृष्टि सिंह ने किया। अत: बी लिव साइंस की सृष्टि सिंह को सेना से जुड़े सामान्य ज्ञान का सही सही उत्तर देने पर उपहार से सम्मानित किया गया। सेमिनार को एयर फोर्स के भर्ती अधिकारी प्रवीण द्विवेदी, प्राचार्य डॉ रत्ना पांडेय, डॉ बख्शी ओम प्रकाश सिन्हा, डॉ राजेश कुमार उपाध्याय ने भी संबोधित किया। अंत में प्रो मोहित जैन ने धन्यवाद ज्ञापन किया। सेमिनार में मुख्य रूप से प्रो रोज उरांव, डॉ मालिनी डीन डॉ बलवंती मिंज, प्रो बीरबल महतो, प्रो साजिद हुसैन, डॉ शाहनवाज खान, मनोज नायक, उस्मानुद्दीन उपस्थित थे।

Sunday, 12 January 2025

लोग हमारे चेहरे नहीं,शब्दों को याद रखते हैं : गुड़िया झा

लोग हमारे चेहरे नहीं,शब्दों को याद रखते हैं :  गुड़िया झा

हमारे बुजुर्गों ने भी कहा है सरस्वती सिर्फ किताबों में ही नहीं होती हैं, बल्कि हमारी जुबान पर भी होती हैं। इसलिए हमेशा शुभ बोलने को कहा जाता है।
वो कहते हैं ना कि थप्पड़ की मार जितना चोट नहीं पहुंचाती है, उससे कहीं ज्यादा तीखे शब्दों की चोट घाव करती है।
कई बार किसी के खराब शब्दों से हमारी मानसिक प्रतिक्रिया कुछ अजीब सी होती है जिससे कई दिनों तक हम परेशान रहते हैं। 
शब्द भी एक तरह का भोजन ही है। कब कौन सा शब्द परोसना है अगर यह समझ आ जाये, तो इससे अच्छा रसोइया और क्या हो सकता है। 
बाहरी सौंदर्य के लिए हम ब्रांडेड क्रीम, कपड़ों, घड़ी, पर्स, जूतों आदि का इस्तेमाल करते हैं। कभी-कभी हम यह भूल जाते हैं कि इन सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि बोलते समय हमारे शब्दों की मर्यादा कहीं ज्यादा जरूरी है। जो खराब शब्द हमें दुख पहुंचाते हैं, वो हम खराब शब्द या व्यवहार दूसरों को कैसे दे सकते हैं। 
"गौतम बुद्ध ने भी कहा है कि जहां जरूरत नहीं हो, वहां मौन सबसे ज्यादा अच्छा है। "
"शब्दों की खूबसूरती देखिए,
भला का उल्टा लाभ होता है
और दया का उल्टा याद होता है,
भला करके देखो हमेशा लाभ में रहोगे,
दया करके देखो,हमेशा याद रहोगे।"
अच्छे शब्द भी इंसान को बादशाह बना देते हैं।
संत कबीरदास जी ने भी अपने एक कथन में कहा है कि "पोथी पढ़ी-पढ़ी जग हुआ, पंडित भया न कोई, ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय"।
हमारी दिनचर्या में बहुत छोटी-छोटी बातें हैं, जिनका उपयोग कर हम बेवजह की उलझनों से बच सकते हैं।
1 लहजा (टोन)।
प्रत्येक शब्द सम्मानित है। बशर्तें की हमारे बोलने का लहजा कैसा है। बोलते समय हमारी भावना में नेकी, करूणा हो, तो बात चाहे कितनी भी सच क्यों न हो सामने वाले पर उसका अच्छा असर ही होगा। कई बार होता यह है कि अपना रूतबा, या अपने खानदान के अच्छे बैकग्राउंड की पहचान को बताने के लिए भी  हमारे बोलने के टोन में कड़वाहट होती है। कड़वाहट से बोलने से रूतबा कायम नहीं होता है, बल्कि हमारी इज्जत कम होती है। 
हम सामने वाले पर अपना गुस्सा उतार तो देते हैं,लेकिन कभी सामने वाले की मनोस्थिति को नहीं समझ पाते हैं। 
अपनी आवाज में तो कौआ भी बोलता है और कोयल भी बोलती है। फिर भी लोग कोयल की बोली को ही सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। 
जब भी मन क्रोधित हो, तो मौन सबसे बड़ी दवा है। यहां एक बात जान लेना भी जरूरी है कि क्रोध तब आवश्यक हो जाता है, जब हम अपने आसपास कुछ गलत होते देखते हैं।
2 शब्दों का चयन।
प्रत्येक शब्द कई तरीकों से बोले जाते हैं। सौम्य, शांत, स्थिर, क्रोधित आदि कई रूप में। अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम कौन से रूप को अपनाते हैं। शब्दों की गरिमा को बनाये रखना भी  हमारा काम है। कई बार होता यह है कि गलतफहमी या बदले की भावना में हम शब्दों के मायने बदल देते हैं। प्रकृति का एक नियम यह है कि जो हम देते हैं, वही हमें वापस मिलता भी है। फिर चाहे वह प्यार हो या सम्मान। क्रोध और तूफान को आने में समय नहीं लगता है और इन दोनों के शांत होने के बाद ही पता चलता है कि नुकसान कितना बड़ा हुआ है। 
कई बार मौन में इतनी शक्ति होती है कि सामने वाले को सोचने पर मजबूर कर देती है। तू-तू, मैं-मैं में कुछ नहीं रखा। थोड़ा रूकना, थोड़ा झुकना बेसुमार प्यार दिलाती है। जिस तरह से गाड़ी को अच्छे से चलाने के लिए अच्छी ड्रायविंग होनी जरूरी है,उसी तरह से लोगों के दिलों में जगह बनाने के लिए कुछ अच्छे शब्द ही काफी हैं और इसकी कोई कीमत भी नहीं लगती है।
3 शारीरिक हावभाव।
बोलते समय हमारा शारीरिक हावभाव कैसा है, यह भी काफी महत्वपूर्ण है। आंखों की चमक और चेहरे की सौम्यता हमारे शब्दों के सम्मान को और भी ज्यादा बढ़ा देते हैं। 
कभी-कभी हमारे बोलते समय चेहरे के हावभाव, आंखों के इशारे और हाथों का डायरेक्सन कुछ इस तरह से होता है कि सामने वाले को हमारे ऐसे व्यवहार से दुख पहुंचता है। जब भी हम बातचीत का सिलसिला जारी करें, तो अपनी पिछली शिकायतों को छोड़कर गर्मजोशी से अभिवादन करते हुए अपनी बात रखें। जब किसी बात पर आपत्ति हो, तो विनम्रतापूर्वक धीरे से ना कहना ज्यादा बेहतर होगा। इससे बात बढ़ेगी नहीं और आगे बात करने के अवसर भी मिलेंगे। हम जैसा बोलते हैं, हमारे आसपास भी उसी तरह का वातावरण बनता है।