Sunday, 12 January 2025

लोग हमारे चेहरे नहीं,शब्दों को याद रखते हैं : गुड़िया झा

लोग हमारे चेहरे नहीं,शब्दों को याद रखते हैं :  गुड़िया झा

हमारे बुजुर्गों ने भी कहा है सरस्वती सिर्फ किताबों में ही नहीं होती हैं, बल्कि हमारी जुबान पर भी होती हैं। इसलिए हमेशा शुभ बोलने को कहा जाता है।
वो कहते हैं ना कि थप्पड़ की मार जितना चोट नहीं पहुंचाती है, उससे कहीं ज्यादा तीखे शब्दों की चोट घाव करती है।
कई बार किसी के खराब शब्दों से हमारी मानसिक प्रतिक्रिया कुछ अजीब सी होती है जिससे कई दिनों तक हम परेशान रहते हैं। 
शब्द भी एक तरह का भोजन ही है। कब कौन सा शब्द परोसना है अगर यह समझ आ जाये, तो इससे अच्छा रसोइया और क्या हो सकता है। 
बाहरी सौंदर्य के लिए हम ब्रांडेड क्रीम, कपड़ों, घड़ी, पर्स, जूतों आदि का इस्तेमाल करते हैं। कभी-कभी हम यह भूल जाते हैं कि इन सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि बोलते समय हमारे शब्दों की मर्यादा कहीं ज्यादा जरूरी है। जो खराब शब्द हमें दुख पहुंचाते हैं, वो हम खराब शब्द या व्यवहार दूसरों को कैसे दे सकते हैं। 
"गौतम बुद्ध ने भी कहा है कि जहां जरूरत नहीं हो, वहां मौन सबसे ज्यादा अच्छा है। "
"शब्दों की खूबसूरती देखिए,
भला का उल्टा लाभ होता है
और दया का उल्टा याद होता है,
भला करके देखो हमेशा लाभ में रहोगे,
दया करके देखो,हमेशा याद रहोगे।"
अच्छे शब्द भी इंसान को बादशाह बना देते हैं।
संत कबीरदास जी ने भी अपने एक कथन में कहा है कि "पोथी पढ़ी-पढ़ी जग हुआ, पंडित भया न कोई, ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय"।
हमारी दिनचर्या में बहुत छोटी-छोटी बातें हैं, जिनका उपयोग कर हम बेवजह की उलझनों से बच सकते हैं।
1 लहजा (टोन)।
प्रत्येक शब्द सम्मानित है। बशर्तें की हमारे बोलने का लहजा कैसा है। बोलते समय हमारी भावना में नेकी, करूणा हो, तो बात चाहे कितनी भी सच क्यों न हो सामने वाले पर उसका अच्छा असर ही होगा। कई बार होता यह है कि अपना रूतबा, या अपने खानदान के अच्छे बैकग्राउंड की पहचान को बताने के लिए भी  हमारे बोलने के टोन में कड़वाहट होती है। कड़वाहट से बोलने से रूतबा कायम नहीं होता है, बल्कि हमारी इज्जत कम होती है। 
हम सामने वाले पर अपना गुस्सा उतार तो देते हैं,लेकिन कभी सामने वाले की मनोस्थिति को नहीं समझ पाते हैं। 
अपनी आवाज में तो कौआ भी बोलता है और कोयल भी बोलती है। फिर भी लोग कोयल की बोली को ही सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। 
जब भी मन क्रोधित हो, तो मौन सबसे बड़ी दवा है। यहां एक बात जान लेना भी जरूरी है कि क्रोध तब आवश्यक हो जाता है, जब हम अपने आसपास कुछ गलत होते देखते हैं।
2 शब्दों का चयन।
प्रत्येक शब्द कई तरीकों से बोले जाते हैं। सौम्य, शांत, स्थिर, क्रोधित आदि कई रूप में। अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम कौन से रूप को अपनाते हैं। शब्दों की गरिमा को बनाये रखना भी  हमारा काम है। कई बार होता यह है कि गलतफहमी या बदले की भावना में हम शब्दों के मायने बदल देते हैं। प्रकृति का एक नियम यह है कि जो हम देते हैं, वही हमें वापस मिलता भी है। फिर चाहे वह प्यार हो या सम्मान। क्रोध और तूफान को आने में समय नहीं लगता है और इन दोनों के शांत होने के बाद ही पता चलता है कि नुकसान कितना बड़ा हुआ है। 
कई बार मौन में इतनी शक्ति होती है कि सामने वाले को सोचने पर मजबूर कर देती है। तू-तू, मैं-मैं में कुछ नहीं रखा। थोड़ा रूकना, थोड़ा झुकना बेसुमार प्यार दिलाती है। जिस तरह से गाड़ी को अच्छे से चलाने के लिए अच्छी ड्रायविंग होनी जरूरी है,उसी तरह से लोगों के दिलों में जगह बनाने के लिए कुछ अच्छे शब्द ही काफी हैं और इसकी कोई कीमत भी नहीं लगती है।
3 शारीरिक हावभाव।
बोलते समय हमारा शारीरिक हावभाव कैसा है, यह भी काफी महत्वपूर्ण है। आंखों की चमक और चेहरे की सौम्यता हमारे शब्दों के सम्मान को और भी ज्यादा बढ़ा देते हैं। 
कभी-कभी हमारे बोलते समय चेहरे के हावभाव, आंखों के इशारे और हाथों का डायरेक्सन कुछ इस तरह से होता है कि सामने वाले को हमारे ऐसे व्यवहार से दुख पहुंचता है। जब भी हम बातचीत का सिलसिला जारी करें, तो अपनी पिछली शिकायतों को छोड़कर गर्मजोशी से अभिवादन करते हुए अपनी बात रखें। जब किसी बात पर आपत्ति हो, तो विनम्रतापूर्वक धीरे से ना कहना ज्यादा बेहतर होगा। इससे बात बढ़ेगी नहीं और आगे बात करने के अवसर भी मिलेंगे। हम जैसा बोलते हैं, हमारे आसपास भी उसी तरह का वातावरण बनता है।

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