Monday, 9 December 2024

जीना इसी का नाम है : गुड़िया झा

जीना इसी का नाम है : गुड़िया झा

एक पुरानी कहावत है कि चैन से जीने के लिए लग्जरी जीवन की आवश्यकता नहीं होती है जबकि बेचैन से जीने के लिए बहुत सी संपत्ति भी कम पड़ जाती है। सामने वाले के घर से ज्यादा बड़ा घर बनाना है, ज्यादा बड़ी गाड़ी लेनी है, ज्यादा संपत्ति अर्जित कर भविष्य के लिए निश्चिंत हो जाना है। यह सोच हम भारतीयों की आम बात है। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि इन भागदौड़ के बीच हम अपने जीवन के सुकून को खोते जा रहे हैं। यह हमारे भीतर ही मौजूद है। जीवन के हर पल का आनंद लेने के लिए सबसे कीमती हमारी सांसें हैं। जिसे ईश्वर ने हमें फ्री में गिफ्ट दिया है। इसकी कीमत हम नहीं समझ पाते हैं और जो बाजारों में बहुत महंगी है उसके पीछे परेशान हैं।  

1 दोषारोपण करने से बचें
दुनिया का सबसे आसान काम है दोषारोपण करना। कई बार हम यह भूल जाते हैं कि जब अपने हाथ की एक अंगुली हम दूसरों की तरफ दिखाते हैं तो बाकी सभी उंगलियां हमारी तरफ ही होती हैं। दोषारोपण कर हम आराम से बैठ जाते हैं।  यह सोच कर कि इससे हमारी वर्तमान समस्याएं समाप्त हो जाएंगी। जबकि ऐसा है नहीं। परिस्थितियां हमेशा एक जैसी नहीं होती हैं। जैसे रात के अंधेरे के बाद हम सुबह का उजाला भी देखते हैं। हमेशा अपने भीतर जोश और जुनून के उत्साह को बरकरार रखें। जब हम उत्साहित रहेंगे तो सामने वाले पर भी इसका अच्छा असर देखने को मिलेगा और हम आने वाले समय में नए भारत के निर्माण में अपना योगदान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

2 मुश्किल वक्त कमांडो सख्त
विपरीत परिस्थितियों में बहुत सारे निर्णय हमें सख्ती से भी लेने पड़ते हैं। ये समय भावनाओं में बहने का नहीं होता है। इस समय में जल्दबाजी में लिया गया कोई भी फैसला सही नहीं होता है। खुद और जनकल्याण के हित में जो सही है  उससे समझौता नहीं करें और ना ही अनावश्यक दबाव में रहें। अपने अंतरात्मा की आवाज अवश्य सुनें। सबकी अपनी सोच अलग होती है। गलत दिशा में भीड़ के पीछे चलने से अच्छा है कि हम सही दिशा में अकेले ही चलें। हमेशा सकारात्मक रहें और संगति भी ऐसे ही लोगों की रखें क्योंकि काफी हद तक हमारे मन और मस्तिष्क पर संगति का भी असर होता है।

3 बेवजह की बातों से दूर रहें
अक्सर हम देखते हैं कि कई बार हमारा ध्यान अनावश्यक बातों में उलझ जाता है। छोटी छोटी बातों को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाने से बचें।   हर किसी की परिस्थितियां एक जैसी नहीं होती हैं। हम जितना ज्यादा दूसरों से तुलना करते हैं उतना ही ज्यादा अपनी खुशियों से दूर होते जाते हैं। अनावश्यक तनाव मानसिक स्वास्थ्य के साथ साथ शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है।

Friday, 29 November 2024

हमारी ही मुठ्ठी में आकाश सारा" : गुड़िया झा

"हमारी ही मुठ्ठी में आकाश सारा" : गुड़िया झा

प्रत्येक बच्चा जन्म से ही विजेता होता है। वह अपने कुछ विशेष गुणों के साथ जन्म लेता है। थोड़े बड़े होने के बाद उसके सॉफ्टवेयर में छेड़छाड़ या तो घर में की जाती है या फिर स्कूल में। जब वह एक साल का होता है तो हम उसे एक-एक शब्द बोलना सिखाते हैं कि बेटा बोलो। लेकिन जब वह थोड़ा बड़ा होकर अपने मन की बात बोलना चाहता है, तो हम कहते हैं कि चुपचाप बैठो। तो फिर उसे बोलना क्यों सिखाया?   हर बार उसके कानों में यही बोला जाता है कि यह तुमसे नहीं होगा, तुम नहीं कर पाओगे। उसे उठने, बैठने और सांस लेने के लिए भी हमारे परमिशन की जरूरत होती है। नतीजा यह होता है कि हम भी उनकी क्षमताओं को पहचानना भूल जाते हैं। हर बार नकारात्मकता बच्चे के दिमाग में अपना घर बना लेती है।
अगर उनके लिए अनुशासन जरूरी है, तो खुलकर जीना भी जरूरी है। 

1 मित्रवत बने रहें।
परिवार बच्चों की पहली पाठशाला होती है और अभिभावक पहले गुरू। सबसे पहले तो बच्चे हमारे पास खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। उनके समुचित विकास के लिए यह जरूरी है कि हम उनके दोस्त भी बने रहें। इससे वो अपनी हर छोटी-बड़ी समस्याएं हमें बताएंगे।  जिसका समय रहते हम समाधान भी कर सकते हैं। क्योंकि जब हम बच्चों से मित्रवत नहीं होंगे, तो वे अपनी बातों को हमसे छुपायेंगे। बाहर उनके साथ जब बड़ी समस्या होगी, तो हमारे खुद और बच्चों के लिए भी बड़ी परेशानी बन सकती है।

2 काम की बात पर टिके रहें।
बच्चे को अगर स्वतंत्रता जरूरी है, तो उसे खुद के प्रति जिम्मेदार बनाना भी जरूरी है। इसी से वे बहुत कुछ सीख भी पाएंगे। उन्हें उनकी उम्र के हिसाब से छोटे कार्य जैसे- अपनी पुस्तकें और कॉपियों को संभालकर रखना, अगले दिन स्कूल के लिए रूटीन के हिसाब से बैग तैयार करना, पानी लेना, जूतों में पॉलिश करना, छुट्टी के दिनों में घर के कामों में भी थोड़ी मदद करना, सबसे मिलकर रहना आदि ऐसे कार्य हैं जो बच्चों को सिखाते हैं कि शिक्षा के साथ-साथ व्यवहारिक शिक्षा भी जीवन में उतनी ही ज्यादा आवश्यक है।

3 जबरदस्ती सजा मत दें।
जब भी हमारे ऊपर घर या बाहर का तनाव होता है, तो अनावश्यक रूप से अपना गुस्सा बच्चों पर निकाल देते हैं। जबकि इसमें उस मासूम का कोई दोष नहीं होता है।  इतना ही नहीं एक मामूली सी गलती पर भी उसे कड़ी फटकार लगाते हैं। इससे उनके कोमल मन पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है।  इसकी जगह हम उन्हें उनकी गलतियों से सीखना समझाएंगे, तो इससे उनपर अनुकूल प्रभाव होगा। बच्चे सजा से नहीं प्यार से हमारे करीब होते हैं।

Sunday, 24 November 2024

जो रहेगा व्यस्त वह स्वस्थ और मस्त भी : गुड़िया झा

जो रहेगा व्यस्त वह स्वस्थ और मस्त भी : गुड़िया झा

कहा जाता है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। इसलिए व्यस्त रहना भी जरूरी है। खाली बैठने से कई अनावश्यक बातें दिलों-दिमाग में आने लगती हैं। जिससे कई प्रकार की चिंताएं उत्पन्न होती हैं। इसके कारण कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इन सबका सबसे ज्यादा असर व्यक्ति के स्वास्थ्य पर पड़ता है। स्वास्थ्य प्रभावित होने का मतलब है कई प्रकार की बीमारियों को आमंत्रित करना। जब हमारा स्वास्थ्य ही ठीक नहीं रहेगा तो हम अपनी जिंदगी को जिंदादिली से कैसे जी सकते हैं।

1 रूचियों को जगाएं 
जिनको जिस कार्य में रूचि है, उसे वह पूरी तन्मयता के साथ संपन्न करें। इसका परिणाम यह होगा कि हमारे भीतर अपने काम के प्रति समर्पण की भावना उत्पन्न होगी तथा मस्तिष्क अनावश्यक बातों में उलझने के बजाय आवश्यक बातों में व्यस्त रहेगा। बच्चे, युवक, बुजुर्ग सभी को अपनी रूचि और क्षमता के अनुसार अपनी दिनचर्या तय करनी चाहिए।

2 छोटे-मोटे कामों में व्यस्त हों।
बच्चों को छोटे-छोटे कार्यों की जिम्मेदारी दी जा सकती है। जैसे- स्कूल बैग को रूटीन के अनुसार व्यवस्थित रूप से रखना, कपड़े फोल्ड कर एक जगह करना आदि।
घर में जो अनावश्यक चीजें हैं, उन्हें एक-एक कर हटा दें। घर के बाहर कहीं छोटी सी जगह में भी क्यारी बनाकर फूलों के पौधे लगाए जा सकते हैं। पेंटिंग बनाना, क्राफ्ट बनाना, लिखना, संगीत सीखना, अपनी पसंद की किताबें पढ़ना आदि कई ऐसे कार्य हैं जिनमें रूचि के साथ रोजगार के भी पर्याप्त साधन हैं।

3 बुजुर्गों के लिए।
रिटायरमेंट के बाद और बच्चों के बाहर रहने के कारण अधिकांश बुजुर्ग खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं। अनावश्यक सोचने से भी उन्हें कई तरह की शारीरिक परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है। उनके लिए यह बेहतर है कि वे अपने आसपास के पार्क में थोड़ी देर टहलें। इससे वहां उनकी उम्र के भी कई साथी भी मिल सकते हैं। वे चाहें तो किशोरों को पढ़ाई से संबंधित और अपने जीवन के अनुभवों से अवगत कराकर उन्हें भी प्रेरित कर सकते हैं। खाली समय में अपनी डायरी और कुछ किताबें भी लिख सकते हैं। भजन, गजल, और अपनी पसंद की फिल्मों का भी आनंद लिया जा सकता है।

Thursday, 14 November 2024

भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक मिथिलांचल का सामा चकेवा : गुड़िया झा

भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक मिथिलांचल का सामा चकेवा : गुड़िया झा

भाई-बहन के परस्पर प्रेम को समर्पित सामा चकेवा बिहार के मिथिलांचल में कार्तिक पूर्णिमा के दिन धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्योहार को मनाने के पीछे यह भावना है कि भाई हर परेशानी में कवच बनकर बहन की रक्षा के लिए आगे आएंगे।  
कहने को तो सामा चकेवा कच्ची मिट्टी से बनाया जाता है, लेकिन इसमें भाई-बहन के स्नेह की खुशबू वर्षों से महकती चली आ रही है।
1 छठ से शुरू होती है तैयारी।
सामा चकेवा बनाने की तैयारी छठ में खरना के दिन से शुरू होती है। उसी दिन मिट्टी को गूंथ कर उससे हर तरह की आकृतियां जैसे- रंग-बिरंगी चिड़ियां, सिरी सामा, चुगला, छोटी-छोटी टोकरियां आदि बनाने का काम शुरू हो जाता है। रोज शाम को इसे आसमान से गिरने वाली ओस की बूंदों में थोड़ी देर रखा जाता है। उसके बाद सभी को धूप में अच्छी तरह सुखाने के बाद देवउठनी एकादशी के दिन उन पर चावल के आंटे से सफेद रंग में रंग कर तरह-तरह के रंग चढ़ाए जाते हैं। इसमें नई फसल का चूरा और गुर सामा को भोग लगाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन बहनें रात्रि में कुल देवी-देवता के समक्ष प्रणाम कर पान के पत्तों को आंचल में रख कर सिरी सामा का एक-दूसरे से आदान-प्रदान करती हैं। उसके बाद जोते हुए खेत में चुगला को जलाने के बाद सभी मिलकर वहां सामा खेलती हैं तथा भाइयों को भी तोड़ने के लिए देती हैं। 
इसमें सिरी सामा जहां पूजनीय हैं, वही चुगला विभाजनकारी शक्तियों का प्रतीक है। इसमें चुगला को जलाने का तात्पर्य यह है कि भाई-बहन के आपसी प्रेम में तीसरा कोई अड़चन ना आये।
2 पौराणिक मान्यता।
सामा भगवान श्री कृष्ण की बेटी है। वे मुनि के आश्रम में रहती थीं। एक दिन वे बिना किसी को कुछ बताए आश्रम से चली गईं।शरद ऋतु के आरंभ होते ही बहुत सी रंग-बिरंगी चिड़ियां मिथिलांचल की तरफ चली जाती  हैं। सामा भी उन्हीं रंग-बिरंगी चिड़ियों को देखने के लिए मिथिलांचल चली गईं। मुनि ने उन पर आरोप लगाया कि वे अच्छी चरित्र की नहीं हैं। इसलिए बिना बताए ही चली गईं। मुनि ने उन्हें शाप दे दिया कि वे भी उन चिड़ियों के जैसी हो जाएंगी। मुनि के शाप से सामा चिड़ियां बन गईं। सामा के भाई ने मुनि के शाप से उन्हें मुक्त कराया। तभी तो महिलाएं जब सामा खेलती हैं, तो कुछ सामा को तोड़ने के लिए अपने भाइयों को देती हैं।
खेतों में अभिनय की यह प्रक्रिया सम्पन्न होने का तात्पर्य है- उपज में बढ़ोतरी।
3 सामा के गीतों में स्नेह की खुशबू आती है।

"गाम के अधिकारी हमर भैया हो,
 भैया हाथ दस पोखरी खनाय दिअ,चंपा फूल लगायब हो"
बहन आज भी भाई से किसी कीमती चीज की मांग नहीं करती। वे बस इतना कहती हैं कि आप गांव घर के अधिकारी हैं। आप मुझे दस हाथ की पोखरी यानी एक छोटा सा तालाब ही बनवा दीजिये। मैं उसमें चंपा फूल लगाउंगी।
"भैया लोढायब भौजो हार गांथू हे, सेहो हार पहिरत बहिनों, साम चकेवा खेलब"
बहन को अपने भाई-भाभी से इतना प्यार है कि वे कहती हैं कि भैया इस फूल को इकट्ठा करेंगे और भाभी उनका हार यानी माला बनाएंगी। जिसे बहनें पहन कर सामा चकेवा खेलेंगी।

Wednesday, 30 October 2024

स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन : गुड़िया झा

स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन : गुड़िया झा
अक्सर हम अपने आसपास शारीरिक स्वास्थ्य के विषय में बातें करते हैं। लेकिन उन चर्चाओं में हम शायद ही अपनी मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बातें करते हों। जब हम इस ओर भी थोड़ा ध्यान देंगे,तो खुद के साथ दूसरों के विचारों में भी परिवर्तन ला सकेंगे। हमारी एक छोटी सी शुरूआत एक नये समाज और देश के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है।

1, उत्तम शारीरिक स्वास्थ्य।
कहा जाता है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है।इसलिए हमारी पहली प्राथमिकता शारीरिक सेहत को दुरूस्त रखने की होती है। अपने खाने की थाली में हर तरह के फलों और सब्जियों को शामिल करने से शरीर को सभी प्रकार के पोषक तत्वों की प्राप्ति होती है। सही समय पर नाश्ता, खाना,तेल,मसाले का सीमित उपयोग साथ ही चाय और कॉफी के अत्यधिक सेवन से बचाव भी होना चाहिये।
शारीरिक रूप से भी हमेशा सक्रिय रहना अच्छे स्वास्थ्य की निशानी है।

2, कार्य की योजना।
मानसिक स्वास्थ्य को फिट रखने में अपने कार्यों की योजना का भी महत्वपूर्ण स्थान है। योजना के अनुसार कार्य करने से एक ओर जहां हम समय का सही सदुपयोग करते हैं, वहीं दूसरी ओर जल्दीबाजी और तनाव से भी बचते हैं।
 हमें अपने कार्यों के बारे में खुद ही आकलन करना होगा कि कौन से कार्य पहले जरूरी हैं और कौन से बाद में। कई बार ऐसा भी होता है कि अनावश्यक कार्यों को भी जल्दी समाप्त करने की चाहत हमें लगातार थकान की ओर ले जाती है। जिसका नतीजा यह होता है कि हम मानसिक रूप से परेशान हो जाते हैं।

3, सोचने का तरीका।
सबकी अपनी अलग सोच होती है । हमारी सोच का भी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हमेशा अच्छा सोचना,संतुष्टि का भाव,किसी के भी प्रति शिकायतें नहीं रखना आदि ऐसी बातें हैं जो कहने को तो बहुत छोटी हैं लेकिन हमें खुश रखने में इनका भी अपना एक अलग योगदान है। मनोवैज्ञानिकों का भी कहना है कि जैसा हम सोचते हैं वैसा ही प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है।

4, सामाजिक परिवेश और रिश्ते।
 हमारे आसपास का वातावरण और लोगों से हमारे रिश्ते कैसे हैं इसका भी प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। यह कोई जरूरी नहीं कि हमारे विचारों से ही लोगों के विचार मेल खाते हों। इसके बावजूद भी हमें अपनी मन की स्थिति को हर हाल में मजबूत बनाना है। सबकुछ हमारे मन के अनुकूल नहीं हो सकता है। इसका सबसे अच्छा तरीका यह है कि जो जिस रूप में है उसे उसी रूप में स्वीकार कर हम आगे बढ़ें। आक्रोश में प्रतिक्रिया देने से अच्छा है कि कुछ देर मौन रह कर  रिश्तों को संभलने का मौका दिया जाये।

Monday, 21 October 2024

इको-फ्रेंडली दिवाली और पर्यावरण का साथ : गुड़िया झा

इको-फ्रेंडली दिवाली और पर्यावरण का साथ : गुड़िया झा

दीपों का त्योहार हमेशा सबके लिए खुशियां लेकर आता है। ये खुशी यूं ही बनी रहे, इसलिए बदलते परिवेश में इको-फ्रेंडली दीवाली मनाने का तात्पर्य हमारा पर्यावरणीय  स्थिरता को प्राथमिकता देना है। वास्तव में पृथ्वी का सम्मान बढ़ाने का यह अनोखा तरीका आनंददायक अवसर सुनिश्चित करता है। जिसमें पेड़-पौधे सबकी दीवाली शामिल है। 
इससे हम भविष्य में पीढ़ियों के लिए भी एक सकारात्मक संदेश दे सकते हैं। 
इस बार हम सभी पर्यावरण अनुकूलता के साथ दिवाली मनाने की कोशिश करें और स्वस्थ एवं हरित दुनिया में अपना योगदान दें।

1 वन्य जीवों की रक्षा।
बाजारों में बहुत ही तेज आवाज वाले पटाखों का चलन है। इससे वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास में बाधा पहुंचती है। ध्वनि प्रदूषण को कम करके हम प्राकृतिक वातावरण और इसके निवासियों की सुरक्षा कर सकते हैं। 
किसी भी त्योहार को स्वस्थ तरीके से मनाने के पीछे सबके हित की भावना समाहित होती है। 

2 मिट्टी के दीपों का उपयोग।
दिवाली में बिजली और डिस्पोजेबल सामग्री का अत्यधिक मात्रा में उपयोग करने से प्राकृतिक संसाधन खाली होते हैं। 
इसके अनुकूल कम बिजली का प्रयोग करने वाली लाइटिंग का उपयोग करके और बार-बार उपयोग किए जाने वाले या रीसाइकिल योग्य आइटम चुनकर हम संसाधनों को संरक्षित कर सकते हैं। मिट्टी के दीपों का जवाब नहीं। इससे पर्यावरण की रक्षा तो होती ही है साथ ही हमारे आसपास मिट्टी के दीपों को बनाने वाले लोगों को भी रोजगार का एक सुनहरा अवसर मिलता है।

3 हैंडमेड गिफ्ट का चुनाव उपयोगी।
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और प्लास्टिक से बने गिफ्ट देने की बजाय कपड़े या जुट जैसे कुदरती सामानों से बना कोई उपयोगी गिफ्ट का चुनाव ज्यादा अच्छा रहता है। साथ ही गिफ्ट को उन चमकदार प्लास्टिक से बंद ना करें क्योंकि प्लास्टिक को रीसाइकिल करना मुश्किल होता है। इसकी जगह अखबारों का चुनाव कर सकते हैं।

4 रंगोली में कुदरती चीजों का उपयोग।
मां लक्ष्मी के आगमन के लिए रंगोली हर घर में बनाई जाती है। क्यों न इस दीवाली रंगोली केमिकल रंगों की जगह कुदरत से दी गई चीजों से बनाएं। 
जैसे- गुलाब, गेंदे, गुलदाउदी सहित कई तरह के फूलों और पत्तियों के साथ बनाएं। इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाने के लिए हल्दी, कुमकुम और कॉफी पाउडर का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। 

5 पटाखे भी इको-फ्रेंडली उपयोगी।
सभी तैयारी के बाद अगर दिवाली के पटाखे भी इको-फ्रेंडली हों तो क्या कहना। बच्चे ज्यादा आवाज वाले पटाखे पसंद करते हैं। उन्हें समझाना भी हमारा ही काम है। इन पटाखों को रीसाइकल पेपर से बनाया जाता है।

6 पुरानी चीजों का सही उपयोग।
घर की सफाई करते समय कुछ ऐसी चीजों को भी हम फेंक देते हैं, जो दूसरों के लिए उपयोगी होती हैं। अगर हम उन चीजों को अपने आसपास के किसी जरूरतमंद को दें, तो वे चीजें फिर से इस्तेमाल होने लगेंगी।
अपनी तरफ से कुछ फल, मिठाइयां और पटाखे देकर भी अपनी खुशी के साथ दूसरों के खुशी को भी हम बढ़ा सकते हैं।

Wednesday, 9 October 2024

नौ गुणों से सम्पूर्ण दुर्गा आप भी : गुड़िया झा

नौ गुणों से सम्पूर्ण दुर्गा आप भी : गुड़िया झा 

माता के आगमन से चारो तरफ श्रद्धा और उल्लास का माहौल है।  हर कोई अपनी तरफ से कुछ भी कमी नहीं छोड़ना चाहता मां के स्वागत में। क्योंकि जगतजननी अपने साथ बहुत सी खुशियां तो लाती ही हैं साथ ही ढ़ेरो आशीर्वाद अपने भक्तों को देकर जाती हैं। 
लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि प्रत्येक नारी मां दुर्गा का ही दूसरा रूप है। मां ने जितनी क्षमताओं से हमें बनाया है,उसका आकलन शायद हम ठीक से कर भी नहीं पाते हैं। इस नवरात्रि मां दुर्गा द्वारा दी गई अपने भीतर छिपी हुई शक्तियों पर एक नजर।
1 शक्ति
नारी होना आसान नहीं है। जरा सोचें कि एक साथ कई रिश्तों को निभाते हैं हम। सबकी कसौटियों पर खड़ा उतरते हुए हमेशा कर्मशील बने रहना, यही तो है वह अंदरूनी शक्ति जो हर समय हमें अपने कर्तव्य का बोध कराती है। अपनी शक्ति पर गर्व करें कि आप बहुत खास हैं। अपनी शक्ति को बनाये रखने के लिए प्रयासरत रहें।
2 अनुशासन
पूरे घर में अनुशासन सभी के कारण होती है। लेकिन इसका अधिकांश श्रेय नारी को ही जाता है। वो खुद भी अनुशासित रहती है और आसपास के माहौल को भी व्यवस्थित कर उनमें एक नई जान डालती है। 
चाहे वह कितनी भी थकी हुई और तनाव में क्यों न हो, अपने चेहरे पर फिर भी सुकून रख कर हर एक चीज पर बहुत ही पैनी नजर रखती है।
3 सकारात्मकता
सकारात्मकता से परिपूर्ण नारी जब किसी भी कार्य को अपने हाथ में लेती है, तो उसे पूरा करके ही दम लेती है। परिस्थिति चाहे अनुकूल हो या प्रतिकूल हर परिवेश में खुद को ढ़ालना और चुनौतियों में भी संभावनाएं उत्पन्न करना नारी को सर्वश्रेष्ठ बनाता है।
4 सफलता
सफलता खुद की हो या परिवार की इसका श्रेय भी नारी को ही जाता है। सभी की जिम्मेदारी को अपने ऊपर लेकर निभाना और सबको यह बोलकर निश्चिंत कर देना कि "मैं हूं ना"। तो हम कह सकते हैं कि नारी एक सड़क की तरह कार्य करती है, जो कि परिवार के सदस्यों को अपने मंजिल तक पहुंचाती है।
5 विश्वास
जहां पर अधिकांश लोगों का विश्वास जवाब देता है, वहां से नारी का विश्वास शुरू होता है। विश्वास होता है अपने अच्छे कर्मों, काबिलियत, दूसरों में गुणों को पहचानने की। विश्वास होता है अंधकार में भी रौशनी तलाशने की, विश्वास होता है अपनी दुआओं पर, विश्वास होता है एक साथ सबको जोड़कर रखने की, विश्वास होता है अपने आशियाने पर।
6 एकाग्रता
छोटी से छोटी बातों और कार्यों पर एकाग्रता बनाकर उसे अपने जीवन में लागू कर आगे बढ़ना नारी की महत्ता को दर्शाता है। एक साथ कई कार्यों को अपने हाथ में लेने के बाद भी एकाग्रता बनाते हुए कर्मपथ पर चलना नारी की विशेषता है।
7 दृढ़संकल्प
असंभव को भी संभव बनाना नारी को आता है। कौन सा ऐसा कार्य है जो नारी नहीं कर सकती है। जब वो किसी नये जीवन को नौ माह गर्भ में रख कर खुद की जान जोखिम में डाल कर उसे इस दुनिया में ला सकती है, तो नारी कुछ भी कर सकती है।
8 भक्ति
नारी की भक्ति का जवाब नहीं। दूसरे की बलाओं को अपने ऊपर लेना, सबकी सुख, समृद्धि की कामना करना, साल में होने वाले अधिकांश त्योहारों में व्रत रख कर सबकी देखभाल करना नारी की भक्ति ही तो है जिससे परिवार की खुशियां बनी रहती हैं।
9 निरंतरता
समय और अवसर को देखते हुए लागातार हर उस बात में निरंतरता बनाये रखना, जिसमें जनकल्याण की भावना समाहित हो, नारी का यह विशेष गुण है। 
जिम्मेदारियों का निर्वाहन खुशी-खुशी करना, सामने आने वाली बाधाओं को भी आत्मविश्वास से पार करना, यही तो नारी की पहचान है। वास्तव में नारी तू महान है।

Friday, 20 September 2024

चाय : एक एहसास : डॉ विक्रम सिंह

चाय : एक एहसास : डॉ विक्रम सिंह

इक चाह, 
एक चाय की, 
एक कड़क चाय की, 
जिंदगी साथ तेरे 
हमेशा रही है बाकी, 

वो बारिश, बाढ़ का हो समां, वो तूफ़ान हो, 
वो बर्ड के साथ जंगल में कहीं,
वो समां, काश वही ठहर जाता। 

इक मुकम्मल जीवन था वो अपने आप में ,
जी लेता हूँ फिर से पल वो,
इक एहसास के साथ,
कि हाथ में जब भी आती है इक प्याली चाय 
और याद तेरी। 
तन्हाई में रही है साथ मेरे ये इक प्याला चाय,
जैसी तेरी याद रही है संग मेरे हर पल तन्हाई में। 

इक चुस्की के साथ, बहुत कुछ निगल लेता हूँ  
कि निगल लेता हूँ,
कुछ गम, कुछ अनकही बातें, 
कुछ लम्हे जो रह गए सिर्फ यादों में। 
इस तरह कुछ समेत लेती है ये भीतर अपने,
मेरे उन एहसासो को, जो जीवंत ना हुए कभी संग तेरे। 

मिठास कम है जिंदगी में तुम बिन,
फीकी सी चाय ये अब एहसास दिलाती है,
कुछ दूध गायब है हुआ अब चाय से मेरी,
मिठास जिंदगी के साथ अब,
चाय में भी हुई है कम,
तेरी याद में चाय भी अब काली ही सुहाती है। 

संग तेरे इक चाय की चाहत,
साथ मेरे, तेरी याद के साथ कही बाकी है खवाबों में अभी,
कि हर एक दिन मेरा, साल बराबर गुजरा है बिन तेरे। 
जो कभी साल भी पलक झपकते गुजर जाते थे संग तेरे। 

मैंने अकेले कभी चाय पी ही नहीं। 
कि एक ही कप में, इक सिप 
तेरे नाम का साथ में पीया है हमेशा। 
तेरा संग होने का एहसास यूँ,
हर घूंट ने मुझे दिलाया है बार-बार। 

कि कभी देखा ही नहीं मैंने अच्छा और ख़राब मौसम,
बस चाहा है तुम्हे हमेशा अपने चाय से इश्क की तरह।।

डॉ विक्रम सिंह
न्यू दिल्ली

Monday, 16 September 2024

विश्वकर्मा पूजा पर विशेष : थोड़ी देखभाल इनके लिए भी जरूरी : गुड़िया झा

विश्वकर्मा पूजा पर विशेष : थोड़ी देखभाल इनके लिए भी जरूरी :  गुड़िया झा

हम इंसानों को किसी भी वस्तु मशीन हो या वाहन को खरीदने का शौक बहुत होता है। खरीदने के कुछ दिनों तक हम उसकी देखभाल भी अच्छे से करते हैं। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता है हम उसकी देखभाल में थोड़े लापरवाह भी हो जाते हैं। विशेष रूप से इनके प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए ही प्रत्येक वर्ष 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा का आयोजन किया जाता है।
क्या हमने कभी सोचा है कि जो चीजें समय पर हमारी जरूरतें पूरा करती हैं उसकी विशेष रूप से देखभाल करना भी हमारी ही जिम्मेदारी है। तो क्यों न हम जैसे अपनी देखभाल करते हैं, ठीक उसी प्रकार से अपने दैनिक जीवन के उपयोग में आने वाले वस्तुओं को भी उतनी ही सुरक्षा प्रदान करें।

1, क्षमता के अनुसार कार्य लें।
किसी भी चीज की अपनी एक क्षमता होती है। जब हम उसका उपयोग क्षमता से अधिक करते हैं, तो जाहिर सी बात है कि कहीं न कहीं उसके कार्य करने में बाधा उत्पन्न होती है। 
उदाहरण- जिस दिन हम स्वयं ही अपनी क्षमता से अधिक कार्य करते हैं, तो दूसरे दिन हमें काफी थकान महसूस होती है और हमारे शरीर को आराम की जरूरत होती है जिससे कि हमारे भीतर नई ऊर्जा का संचार होता है जो हमें फिर से बेहतर तरीके से अगले दिन कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।
ठीक उसी प्रकार से मशीनों और वाहनों की भी यही स्थिति है। कुछ दिनों के अंतराल पर इन्हें सर्विसिंग सेंटर में ले जाकर जांच कराते रहने की जरूरत है। जिससे कि यह पता चल सके कि इनमें कोई आंतरिक खराबी तो नहीं है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि थोड़ी सी खराबी होने पर इसे कम बजट में भी ठीक किया जा सकता है और दूसरा यह कि जब हमें कभी इनकी बहुत ज्यादा जरूरत होगी, तो समय पर ये हमारे बहुत काम आयेंगे। इससे हमें मानसिक तनाव और समय दोनों की ही बचत होगी।

2, उपयोग के समय सावधानी।
जब हम किसी भी वस्तु का उपयोग करते हैं, तो उसके कुछ नियम भी होते हैं। जब हम उसके नियमों के अनुसार उसका इस्तेमाल करते हैं, तो उसके साथ हमारी भी सुरक्षा बनी रहती है।
आये दिन तेज रफ्तार के कारण भी कई दुर्घटनाएं होती हैं। सबसे आगे निकलने की जिद कई समस्याओं को सामने लाकर खड़ी करती है। हम खुद ही समय के पाबंद नहीं होते हैं लेकिन सड़क पर गाड़ी चलाते समय जल्दीबाजी में रहते हैं।
 जब तय सीमा के भीतर गाड़ी की रफ्तार होती है, तो हमारी भी जिंदगी सुरक्षित रहती है साथ ही सीट बेल्ट लगाना भी हमारी सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है। आगे और पीछे दोनों  ही सीटों पर सीट बेल्ट लगाकर हम अपने साथ कई लोगों को सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं। 
 दो पहिया  वाहनों पर भी हेल्मेट की अनिवार्यता को नियमित रूप से लागू कर दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है।
सड़क दुर्घटनाओं के प्रमुख कारणों में गलत दिशा में गाड़ी चलाना, तेज रफ्तार, सीट बेल्ट नहीं लगाना, हेल्मेट का कम उपयोग, सड़कों पर एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़, नशे की हालत में गाड़ी चलाना आदि शामिल है। इन सभी पर नियंत्रण रख कर हम अपने साथ दूसरों के अनमोल जीवन को अवश्य ही बचा सकते हैं। ध्यान रहे सावधानी हटी, दुर्घटना घटी।

Saturday, 7 September 2024

चंद्रदेव की आराधना का पर्व चौठचन्द्र : गुड़िया झा

चंद्रदेव की आराधना का पर्व चौठचन्द्र : गुड़िया झा

हमारा देश भारत अपनी विभिन्न प्रकार की संस्कृतियों के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। यहां प्रकृति से जुड़ी हर एक चीज की पूजा की जाती है। उन्ही  में से एक है बिहार के मिथिलांचल में मनाया जाने वाला चंद्रदेव की आराधना का पर्व चौठचन्द्र। यह भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।
एक नजर इसके विधि-विधान और पौराणिक मान्यता पर।
1 विधि-विधान।
इस दिन स्नान कर पूरे घर आंगन  की सफाई की जाती है और अगर स्थान मिट्टी वाला हो तो गाय के गोबर से लिपाई की जाती है। फिर अरवा चावल को पानी में भिंगोने के बाद उसे पीसकर पेस्ट तैयार कर उस पेस्ट से आंगन में चंद्रदेव की आकृति के साथ मां गौरी और भगवान श्री गणेश की आकृति ( अरिपन ) बनाने के बाद उसपर सिंदूर का टीका भी लगाया जाता है। महिलाएं निर्जला व्रत रख कर पूरे दिन पकवान तैयार करती हैं। फिर सभी पकवानों और विभिन्न प्रकार के फलों को बांस से बनी छोटी-छोटी डालियों पर सजाया जाता है। एक दिन पहले ही शुद्ध गाय के दूध से मिट्टी के बर्तनों में दही जमाया जाता है। जितने भी घर के सदस्य होते हैं उतनी ही पकवानों की डालियां और दही के बर्तनों को भी तैयार किया जाता है। 
चंद्रदेव की आकृति के अल्पना ( अरिपन ) के ऊपर केले के पत्ते पर फूल, दीपक, चन्दन, अक्षत आदि अर्पित कर शाम को सूर्यास्त के बाद और चंद्रदेव के निकलने के बाद एक -एक कर सभी पकवानों की डालियों और दही के बर्तनों को हाथ में लेकर पूरे मंत्रोच्चारण के साथ पूजा-अर्चना की जाती है।
2 पौराणिक मान्यता का विशेष महत्व।
एक दिन भगवान श्री गणेश अपने वाहन मूषक के साथ कैलाश के भ्रमण पर निकले थे। तभी उन्हें चंद्रदेव के हंसने की आवाज सुनाई दी। भगवान गणेश ने चंद्रदेव से उनके हंसने का कारण पूछा। इस पर चंद्रदेव ने कहा कि भगवान गणेश का विचित्र रूप देखकर उन्हें हंसी आ रही है। मजाक उड़ाने की इस  प्रवृत्ति को देख कर गणेश जी को काफी गुस्सा आया। उन्होंने चंद्रदेव को श्राप दिया और कहा कि जिस रूप का उन्हें इतना अभिमान है वह रूप आज से कुरूप हो जाएगा। कोई भी व्यक्ति जो चंद्रदेव को इस दिन देखेगा, उसे झूठा कलंक लगेगा। यह बात सुनते ही चंद्रदेव भगवान गणेश के सामने क्षमा मांगने लगे। उन्होंने भगवान गणेश को खुश करने के लिए भाद्रपद की चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की तथा उनके लिए व्रत रखा। तब भगवान गणेश ने चंद्रदेव को माफ कर दिया और कहा कि वे अपनी बात को वापस तो नहीं ले सकते परंतु वह उसका असर कम कर सकते हैं। 
उन्होंने कहा कि यदि चंद्रदेव के झूठे आरोप से किसी व्यक्ति को बचना है तो उसे गणेश चतुर्थी की शाम को चंद्रमा की पूजा भी करनी होगी।

Tuesday, 27 August 2024

मुंबई मे प्रसिद्ध उद्योगपति रतन टाटा अणुव्रत पुरस्कार से सम्मानित



मुंबई

अणुव्रत विश्व भारती द्वारा दिये जाने वाले प्रतिष्ठित ‘‘अणुव्रत पुरस्कार’’ वर्ष 2023 के लिए प्रसिद्ध उद्योगपति व समाज सेवी  रतन टाटा को मुम्बई स्थित उनके आवास पर भेंट किया गया। अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के अध्यक्ष अविनाश नाहर के साथ वहां पहुंचे प्रतिनिधि मण्डल ने रतन टाटा को पुरस्कार स्वरूप स्मृति चिन्ह, प्रशिस्त पत्र सहित 1.51 लाख की राशि भेंट की। इस अवसर पर अणुविभा के महामंत्री भीखम सुराणा, मुम्बई कस्टम कमिश्नर अशोक कुमार कोठारी, अणुविभा उपाध्यक्ष  विनोद कुमार व सहमंत्री  मनोज सिंघवी उपस्थित थे।
अणुविभा अध्यक्ष  नाहर ने  रतन टाटा को अणुव्रत पुरस्कार सौंपते हुए मानव जाति को उनके सकारात्मक योगदान की प्रशंसा की एवं दुनिया में मानवीयता का एक श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए सम्पूर्ण अणुविभा परिवार की ओर से बधाई ज्ञापित की। उन्होंने आगे बताया कि अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण ने  रतन टाटा के प्रति अपनी मंगल कामनाएं प्रेषित की हैं तथा उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना की है।  रतन टाटा ने अणुव्रत अनुशास्ता के प्रति अपना हार्दिक आदर व सम्मान व्यक्त किया।
उल्लेखनीय है कि 75 वर्षों से गतिमान अणुव्रत आंदोलन मानवीय एकता,  नैतिकता, अहिंसा व सद्भावना के क्षेत्र में विशद कार्य कर रहा हैं। आचार्य तुलसी द्वारा प्रणीत यह आंदोलन संयुक्त राष्ट्र तक अपनी विशेष पहचान स्थापित कर चुका है। अणुव्रत पुरस्कार की श्रृंखला में अभी तक देश के गणमान्य व्यक्तियों को सम्मानित किया गया है, जिनमें -  आत्माराम,  जैनेन्द्र कुमार,  शिवाजी भावे,  शिवराज पाटिल,  नीतिश कुमार, डॉ. ए.पी. जे. अब्दुल कलाम, डॉ. मनोहन सिंह,  टी.एन. शेषन,  प्रकाश आमटे इत्यादि शामिल है।
इस अवसर पर अणुविभा प्रतिनिधि मण्डल ने  रतन टाटा को अणुव्रत साहित्य, ‘अणुव्रत’ व ‘बच्चों का देश’ पत्रिकाओं के विशेषांक भेंट किये एवं अणुव्रत की प्रवृत्तियों चुनावशुद्धि अभियान, अणुव्रत डिजिटल डिटॉक्स, एलिवेट, पर्यावरण जागरूकता अभियान, नशामुक्ति अभियान, जीवन विज्ञान आदि के बारे में जानकारी प्रदान की।  रतन टाटा ने मनाव समाज की भलाई के लिए अणुव्रत आंदोलन द्वारा किये जा रहे प्रयासों की सराहना की।