मानवीय मूल्यों की उपयोगिता : गुड़िया झा
आज हर कोई खुद में इतना व्यस्त और आगे बढ़ने की चाह में है कि मानवीय मूल्यों की उपयोगिता पर शायद ही किसी का ध्यान केंद्रित हो। व्यक्तिगत जीवन जीना अच्छा है। आज अकेले रहने की भावना ने मानवीय मूल्यों के महत्त्व को काफी कम भी किया है।हमारे जीवन के हर क्षेत्र में मानवीय योगदान ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। फिर भी हमारा ध्यान अधिकांश महलों और महंगी गाड़ियों की ओर अनायास ही चला जाता है। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि जहां मानवीय मदद की जरूरत होती है, वहां आधुनिक सुविधाएं फिकी पड़ जाती हैं।
जब हम शारीरिक रूप से अस्वस्थ होते हैं,तो हमें यह एहसास होता है कि कोई हमारे साथ होता तो हमारी देखभाल करतां। मानवीय मूल्य के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता। हमें भी खुद इसके लिए जागरूक रहने की आवश्यकता है।
1, अपना सामाजिक दायरा बढायें।
हमने कभी बचपन में पढ़ा था कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इसके बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती।हम सभी के मिलने से ही एक संगठित समाज का निर्माण होता है। सबसे पहले तो अपने परिवार को संगठित कर मानवीय मूल्य के महत्त्व को एक उचित परिभाषा के रूप में हम पेश कर सकते हैं। क्योंकि जब हमें जरूरत पड़ती है, तो घर के सदस्यों का सहारा ही हमें एक मजबूत संबल प्रदान करता है।
किसी कारणवश यदि दूसरे शहर में अकेले रहने की मजबूरी हो तब भी पास पड़ोस के लोगों से संपर्क बनाये रखें। क्योंकि जब हम बाहर रहते हैं तो हमारे पड़ोसी ही परिवार की भूमिका निभाते हैं। ऐसे में उन्हें नजरअंदाज करना उचित नहीं। खुद भी समय-समय पर उनका हालचाल लेते रहें और जहां तक संभव हो सके अपनी तरफ से मदद का हाथ अवश्य आगे बढायें।
2, निःस्वार्थ भावना।
यह वो अनमोल गुण है जो हम सभी में मौजूद है। जब हम किसी की मदद करते हैं, तो बिना यह सोचे कि शायद हमें भी किसी की जरूरत पड़ सकती है। जब हम इस भावना से ऊपर उठकर कार्य करते हैं, तो हम पाते हैं कि हमारे अंदर आत्मविश्वास बढ़ता है। सच्चे अर्थों में यही मानवता की पहचान भी है। नर सेवा, नारायण सेवा भी शायद इसी को कहते हैं। भगवान हर जगह नहीं होते हैं। इसलिए उन्होंने हम इंसानों को एक दूसरे की मदद के लिए माध्यम बनाया है। निःस्वार्थ भावना से की गई सेवा कभी व्यर्थ नही जाती है।
3 भेदभाव से ऊपर उठें।
आज हर जगह अपने और पराये की भावना ने जन्म ले लिया है। इससे ऊपर उठकर कार्य करने की आवश्यकता है। प्रकृति का एक नियम है कि जो हम देते हैं वही हमें वापस भी मिलता है। फिर चाहे वह प्यार हो या सम्मान।
जो चीजें हमें खुद अच्छी नहीं लगती वो हम दूसरों को कैसे बांट सकते हैं।
समय और सत्य दोनों को साथ लेकर चलने से बेहतर परिणाम भी मिलते हैं। किसी के बहकावे में आने से बचें। अपने अंतरात्मा की आवाज अवश्य सुनें। क्योंकि अंतरात्मा कभी भी झूठ नहीं कहती। अंतरात्मा में ईश्वर का वास होता है और ईश्वर के संकेत हमेशा सावधान करने वाले होते हैं।
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