Friday, 22 August 2025

झारखंड सीनियर योग प्रतियोगिता 24 को

झारखंड सीनियर योग  प्रतियोगिता 24 को

झारखंड योग संघ के तत्वावधान में रविवार 24 अगस्त  को एक दिवसीय झारखंड राज्य सीनियर योगासन स्पोर्ट्स चैंपियनशिप का आयोजन श्री अरविंदो सोसायटी हेसल ब्रांच में किया जा रहा है। संघ के महासचिव आदित्य कुमार सिंह ने बताया कि प्रतियोगिता में 18 वर्ष से अधिक उम्र के प्रतिभागी भाग लेंगे। प्रतियोगिता के आधार पर झारखंड योग टीम का गठन किया जाएगा। जो चयनित टीम आगामी 9 से 12 अक्टूबर तक मैसूर में आयोजित 50 वीं राष्ट्रीय सीनियर योग प्रतियोगिता में भाग लेंगी। श्री सिंह ने बताया कि रविवार को प्रतियोगिता का शुभारंभ पूर्वाह्न् 11 बजे से किया जायेगा एवं समापन सह पुरस्कार वितरण समारोह तीन बजे से किया जायेगा।

Wednesday, 30 July 2025

भारतीय संस्कृति और उनका उद्देश्य : गुड़िया झा


संस्कृतियों के मामले में हमारा देश भारत पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनाये हुए है। ये संस्कृति ही है जो विदेशों में दूर बैठे अपने बच्चों और रिश्तेदारों को अपने देश खींच लाती है घरवालों से मिलने। इन संस्कृतियों को सहेज कर रखने का कार्य भी हमारे देश के लोगों की विशेषताओं को दर्शाती है। 
साल के बारह महीने हमेशा किसी न किसी त्योहार से आसपास आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता रहता है। त्योहार सिर्फ हमारी खुशियां ही नहीं बढाते हैं, बल्कि हमें यह भी एहसास कराते हैं कि कोई न कोई अदृश्य शक्ति है जो हर समय हम सभी की रक्षा करती है। भले ही इन शक्तियों को हम देख नहीं पाते हैं। लेकिन अध्यात्म का संदेश तो यही है कि पहले ईश्वर फिर विज्ञान । एक नजर इनके उद्देश्य पर भी।
1 हिन्दू नववर्ष।
ब्राहाण पुराण के अनुसार सृष्टि की रचना का कार्य विष्णु जी ने ब्रह्मा जी को सौंप कर रखा हुआ है और ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना जब की तो वह दिन चैत्र मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि थी। 
इसके पीछे का उद्देश्य यह है कि सभी लोग साल के पहले दिन को  एक साथ मिलकर खुशी से मनाएं और नए सिरे से शुरूआत करें अपने आने वाले बेहतर भविष्य के लिए।
2 महाशिवरात्रि।
ऐसी मान्यता है कि देवों के देव महादेव और माता पार्वती का विवाह फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को हुआ था। हर साल इस तिथि को महाशिवरात्रि बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि इससे वैवाहिक जीवन से संबंधित सभी परेशानियों से छुटकारा मिलता है साथ ही दाम्पत्य जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है। महाशिवरात्रि हमें यह भी संदेश देती है कि इस पृथ्वी पर सभी को एक समान रूप से सम्मान  मिले। तभी तो शिव जी की बारात में सभी वर्ग के लोग शामिल होते हैं।
3 होली।
यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस पर शिवजी, कामदेव और राजा लघु से जुड़ी मान्यताएं भी हैं जो होलिका दहन से जुड़ी हैं। 
यह त्योहार ऐसे समय पर आता है जब मौसम में बदलाव के कारण हम थोड़े आलसी भी होते हैं। शरीर की इस सुस्ती को दूर भगाने के लिए लोग इस मौसम में न केवल जोर से गाते हैं, बल्कि पूरे उत्साह में होते हैं।
4 अक्षय तृतीया।
मत्स्य पुराण के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन अक्षत, पुष्प, दीप आदि द्वारा भगवान विष्णु, शिव और मां पार्वती की आराधना करने से संतान भी अक्षय बनी रहती है साथ ही सौभाग्य भी प्राप्त होता है।
5 वट सावित्री व्रत।
सौभाग्य और संतान की प्राप्ति में  सहायक यह व्रत माना गया है।भारतीय संस्कृति में यह व्रत नारीत्व का प्रतीक बन चुका है। सुहागन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा अपने पति की लंबी उम्र के लिए करती हैं।
ऐसी मान्यता है कि वटवृक्ष के मूल में भगवान ब्रह्मा, मध्य में विष्णु, तथा अग्र भाग में महादेव का वास होता है। इस प्रकार वट वृक्ष के पेड़ में त्रिदेवों की दिव्य ऊर्जा का अक्षय भंडार उपलब्ध होता है।
6 रक्षा बंधन।
यह त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस भागदौड़ भरी जिंदगी में जहां सभी के पास समय का अभाव होता है। रक्षा बंधन के माध्यम से भाई बहन एक दूसरे के लिए समय निकालते हैं। इस दौरान बहनें भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधकर उनकी लंबे उम्र  की कामना करती हैं। 
वहीं भाई भी बहन के लिए सुरक्षा कवच बनकर तैयार रहते हैं।
7 हरितालिका तीज।
हिंदू परंपरा में हरितालिका तीज व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए कठोर व्रत का पालन करती हैं। 
इस दिन पूरे विधि विधान से भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा की जाती है।
8 अनंत चतुर्दशी।
अनंत चतुर्दशी का विशेष महत्व है। क्योंकि इसे भगवान विष्णु की अनंत शक्ति और उनकी निरंतरता का प्रतीक माना जाता है। 'अनंत' शब्द का अर्थ है 'जिसका कोई अंत नहीं है'।  
यह पर्व मुख्य रूप से जीवन में आने वाली कठिनाइयों और दुखों के निवारण के लिए मनाया जाता है। 
9 जितिया।
यह व्रत हर साल आशिन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस व्रत को माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और स्वस्थ जीवन की कामना के लिए करती हैं।
10 शारदीय नवरात्र। 
नवरात्र शब्द से विशेष रात्रि का बोध होता है। इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है। 'रात्रि ' शब्द सिद्धि का प्रतीक है।
भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है। इसलिए दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है। 
मनीषियों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान बनाया है। चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली तिथि) से 9 दिन अर्थात नवमी तक और इसी प्रकार ठीक 6 मास बाद आशिन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी अर्थात विजयादशमी के 1 दिन पूर्व तक।
 11 शरद पूर्णिमा।
आशिन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस तिथि पर चंद्रमा अपने पूर्ण कलाओं पर होता है। 
दूसरी मान्यता यह है कि इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी धरती पर आती हैं। पूर्णिमा पर खीर बनाने का विशेष महत्व है। 
12 दीपावली।
इसे दीपों का पर्व माना जाता है। जो अज्ञानता और नकारात्मकता  के अंधकार को दूर करने का प्रतीक है। दीपावली घर की सफाई के साथ आंतरिक शुद्धि का भी प्रतीक है, जो आत्मा की पवित्रता को दर्शाता है। 
माता लक्ष्मी की पूजा केवल भौतिक धन के लिए ही नहीं,बल्कि आत्मिक समृद्धि और शांति के लिए भी की जाती है।
13 गोवर्धन पूजा।
इस पर्व को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत की पूजा के कारण इसे गोवर्धन पूजा का नाम मिला। यह त्योहार दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है और उसका उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों की पूजा और संरक्षण का संदेश देना है।
14 भाईदूज।
भाईदूज कार्तिक मास के शुक्लपक्ष के द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला हिन्दू धर्म का पर्व है। जिसे यम द्वितीया भी कहते हैं। 
दिवाली उत्सव के अंतिम दिन आने वाला यह ऐसा पर्व है, जो भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करता है एवं बहनें अपने भाई की लंबी उम्र के लिए व्रत करती हैं और भाई भी अपनी बहन की रक्षा में सदैव आगे रहते हैं। 
15 छठ पूजा।
लोकआस्था का महापर्व छठ पूजा की तैयारी दिवाली के बाद से ही शुरू हो जाती है। धर्म शास्त्रों के अनुसार चार दिनों  तक चलने वाले उस महापर्व को परिवार और संतान की सुखद भविष्य के लिए की जाती है।
इस पर्व में प्रकृति से जुड़ी हर एक चीज जैसे- सूर्यदेव, नदी, तालाब,फल, फूल, बांस से बने सूप और डालियों में पूजन सामग्री को सजा कर छठी मईया की पूजा की जाती है। 
इस पर्व का मुख्य उद्देश्य सूर्य देवता की उपासना करना है, जो जीवनदायी ऊर्जा और प्रकाश का स्त्रोत माना जाता है। उनका पूजन हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि का संचार करता है।
इसमें पहले दिन शाम को डूबते सूर्य और दूसरे दिन सुबह उदयगामी सूर्य की उपासना की जाती है।
16 देवोत्थान एकादशी।
हमारे वेद पुराणों में मान्यता है कि दिवाली के बाद पड़ने वाले एकादशी पर देव उठ जाते हैं।यही कारण है कि इस दिन से शुभ कार्य जैसे- शादी विवाह, गृह प्रवेश आदि शुरू हो जाते हैं।भगवान विष्णु चार माह के लंबे समय के बाद योग निद्रा से जागते हैं। इसलिए इसे देवउठनी एकादशी भी कहते हैं। इसी दिन सायंकाल बेला में तुलसी विवाह का पुण्य लिया जाता है। सालीग्राम, तुलसी व शंख का पूजन होता है।
17 मकर संक्रांति।
मकर संक्रांति को फसल के मौसम की शुरूआत कहा जाता है और इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है।इसलिए मकर संक्रांति सूर्य के मकर राशि में गोचर राशि का प्रतीक है।  इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं और सर्दी घटना शुरू हो जाती है।

Monday, 21 July 2025

योग विशेषज्ञा डा० अर्चना कुमारी 'झारखंड राज्य योग लवर्स पुरस्कार 2025' से सम्मानित

योग विशेषज्ञा डा० अर्चना कुमारी 'झारखंड राज्य योग लवर्स पुरस्कार 2025' से सम्मानित
राची, झारखण्ड  | जुलाई |  21, 2025 :: 
 श्रीमती कुसुम कमानी ऑडिटोरियम, बिष्टुपुर, जमशेदपुर में सरकार योग अकादमी द्वारा राची की योग विशेषज्ञा डा० अर्चना कुमारी को
योग के क्षेत्र में समर्पण और अमूल्य योगदान के सम्मान में 'झारखंड राज्य योग लवर्स पुरस्कार 2025' प्रदान किया गया। 
ज्ञात हो कि डॉ अर्चना कुमारी योग के क्षेत्र में लगातार कई वर्षों से काम करती आ रही है और योग विषय में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त है ।
इसके अलावा उन्हे योग के क्षेत्र मे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई सारे पदक और सम्मान प्राप्त है।
वर्तमान में डॉ अर्चना राज्य योग केन्द्र, आयुष निदेशालय, स्वास्थ्य विभाग में योग चिकित्सक-सह-योग प्रशिक्षक के पद पर कार्यरत है।

योग विशेषज्ञा डा० अर्चना कुमारी की योग्यता एवम् उपलब्धिया : 

1. शैक्षणिक योग्यता (योग विषय में)

• पी०एच०डी० : योग विज्ञान (देव संस्कृत विश्व विद्यालय, हरिद्वार)
• एम० फिल० योग विज्ञान (बरकतुल्लाह विश्व विद्यालय, भोपाल)
• पी०जी० : योग विज्ञान (देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार)

2. उपलब्धियाँ (अन्तर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय)

• प्रथम स्थान "1st World Youth Cup Yoga Championship 2011" काठमाण्डू (नेपाल)
• प्रथम स्थान "2nd Asia Cup Yoga Championship 2011" हांगकांग
• द्वितीय स्थान "1st Asia Cup Yoga Championship 2010" बैंकॉक (थाईलैंड)
• द्वितीय स्थान "National Yoga Championship 2010" बेलूर (कोलकत्ता)
• प्रथम स्थान "Jharkhand State Yoga Championship 2009" राँची झारखण्ड । 
• 30 से अधिक अलग-अलग प्रकार के "अन्तर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय Yoga Championship" में भागीदारी और पदक विजेता।

3. सम्मान :-

• अक्टुबर 2010. झारखण्ड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुण्डा द्वारा सम्मानित ।
• जून 2011, विधायक सी०पी० सिंह द्वारा सम्मानित ।
• अप्रैल 2013, झारखण्ड के राज्यपाल, डा० सैय्यद अहमद द्वारा सम्मानित।
• जून 2015. झारखण्ड मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा सम्मानित।
• मई 2016, झारखण्ड विधानसभा स्पीकर दिनेश उराँव द्वारा सम्मानित ।
• मई 2018, झारखण्ड के राज्यपाल, द्रौपदी मूर्मु के द्वारा सम्मानित।
• जून 2018 झारखण्ड मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा सम्मानित।
• नवंबर 2022 लोकसभा अध्यक्ष, ओम बिरला द्वारा पीएचडी उपाधि से सम्मानित 

4. कार्य अनुभव :-

• झारखण्ड के सरकारी संस्थानों शिक्षा विभाग, गृह विभाग (झारखण्ड जगुआर एवं झारखण्ड सशस्त्र बल-10 महिला बटालियन), खेल विभाग (साझा) आदि में योग प्रशिक्षण देने का कार्यानुभव।
• वर्तमान में राज्य योग केन्द्र, आयुष निदेशालय, स्वास्थ्य विभाग में योग चिकित्सक-सह-योग प्रशिक्षक के पद पर कार्यरत।

5. शोध कार्य :-

• 20 से अधिक अलग-अलग प्रकार के "राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय योग सेमीनार" में भागीदारी।
• 12 से अधिक शोध पत्र, "राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय योग पत्रिका' में प्रकाशित।
• योग पर आधारित पुस्तक "योग- एक दृष्टि में (2019 ) तथा "अभ्यासम् - प्रारंभिक योग अभ्यास क्रम' (2021) तथा पारंपरिक योग (  2023 ) में प्रकाशित

Friday, 18 July 2025

अकेले हैं तो क्या कम हैं : गुड़िया झा

अकेले हैं तो क्या कम हैं : गुड़िया झा
किसी ने क्या खूब कहा है कि किताब से सीखें तो नींद आती है और अगर जिंदगी सिखाए तो नींद उड़ जाती है। कई बार जीवन में ऐसे दौड़ भी आते हैं, जब हमें अकेले ही चलना होता है। इससे मन विचलित होता है और एक अजीब सी घबराहट का होना भी स्वाभाविक है। ऐसी स्थिति में सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि जो हमारे सबसे नजदीकी हैं उनसे हम परामर्श लें। उस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि हम जहां भी रहें वहां नकारात्मकता ना रहे। यही वह समय होता है जब हमें पूरे धैर्य के साथ सिर्फ अपने काम पर ही फोकस करना होता है। अपने काम से जितना ज्यादा प्यार करेंगे, उतने ही ज्यादा खुश रहेंगे। कभी ये सोच कर निराश ना हों कि अकेले हैं, बल्कि यह सोच कर डटे रहे कि अकेले हैं तो क्या कम हैं।
1 आत्मविश्वास बनाये रखें।
दुनिया में सबसे कीमती गहना हमारा परिश्रम है और सबसे अच्छा साथी अपना आत्मविश्वास। जिस दिन से हमने परिश्रम करना छोड़ दिया उस दिन से कई रास्ते भी बंद हो जाते हैं। जिस भी कार्य में निपुण हैं, उसी क्षेत्र में पूर्ण समर्पण के साथ लगे रहें। इससे धीरे-धीरे हमारे मन में आत्मविश्वास बढ़ता जाता है। फिर देखें चाहे परिस्थितियां कितनी ही विपरीत क्यों ना हो आप चट्टान की तरह खुद को मज़बूत पाएँगे। 
सुनाने वाले भी आपको बहुत कुछ सुनाएंगे पर ध्यान रहे कि हिम्मत नहीं तो प्रतिष्ठा नहीं और विरोधी नहीं तो प्रगति नहीं। बस, हाथी की चाल  चलते जाएं। 
2 जीतेंगे या फिर सीखेंगे।
जब भी यह विचार आये की हमने तो अपनी तरफ से पूरा परिश्रम किया फिर हमें अपने हिसाब से रिजल्ट क्यों नहीं मिल रहा है। तो यह तय मानें कि अगर हम जीत नहीं पाए, तो उससे बहुत कुछ सिख भी रहे हैं। जिंदगी जो सबक सिखाती है वह हमें किसी भी स्कूल और कॉलेजों में सीखने को नहीं मिलती है। 
अनुभवों से मिली सीख आगे किसी तरह की गलती ना करने की संकेत देती है और निरंतर सुधार की प्रक्रिया को आगे बढ़ाती है। इससे हमारे व्यक्तित्व में निखार भी आता है।
3 छोटी-छोटी रिस्क लें।
कई बार कुछ महत्वपूर्ण कार्य हमारे हाथों से इसलिए भी निकल जाते हैं कि हम जैसे हैं वैसे ही बने रहना चाहते हैं। थोड़ा सा भी रिस्क लेने से घबराते हैं। कंफर्ट जोन छोड़ना नहीं चाहते हैं। दिल कुछ कहता है और दिमाग कुछ और। 
पता नहीं क्या होगा? 
लोग क्या कहेंगे? कहीं कोई नाराज ना हो जाए? 
तो ध्यान रहे कि हर छोटे से  रिस्क में भी बड़ी संभावनाएं छिपी होती हैं। जब हम थोड़ा आगे बढ़ते हैं, तो कई कार्यों की संभावनाएं देखने को मिलती है।
जिंदगी भी एक परीक्षा ही है। यहां दूसरों की नकल करने से अच्छा यह है कि हमें यह ध्यान रहे कि इसमें सभी के पेपर अलग-अलग होते हैं।

Friday, 30 May 2025

आरकेडीएफल यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेकर सपने करें साकार 

राची, झारखण्ड  | मई |  30, 2025 ::

मैट्रिक और इंटर के परिणाम घोषित हो चुके हैं, और अब विद्यार्थियों के सामने अगला बड़ा कदम है सही विश्वविद्यालय का चयन. अक्सर देखा जाता है कि झारखंड के छात्र हायर एजुकेशन लिए दूसरे राज्यों का रुख करते हैं. लेकिन अब सवाल उठता है क्या वाकई बाहर जाना जरूरी है? या झारखंड में ही बेहतर और आधुनिक शिक्षा के विकल्प उपलब्ध हैं. इन्हीं सवालों का जवाब देते हुए आरकेडीएफ यूनिवर्सिटी रांची के रजिस्ट्रार अमित कुमार पांडे ने बताया कि अब झारखंड भी शैक्षणिक रूप से तेजी से आगे बढ़ रहा है और आरकेडीएफ यूनिवर्सिटी रांची छात्रों के लिए एक मजबूत और विश्वसनीय विकल्प बनकर उभरी है. 

पहचान की माेहताज नहीं आरकेडीएफ 
राजधानी रांची में स्थित आरकेडीएफ यूनिवर्सिटी आज किसी पहचान की मोहताज नहीं है. दिनो दिन यहां स्टूडेंट की संख्या में इजाफा हो रहा है. स्टडी के साथ-साथ यूनिवर्सिटी की ओर से प्लेसमेंट का भी खास ख्याल रखा जाता है. इस विवि से पढकर निकलने वाले छात्र- छात्राएं देश विदेश में सेटल्ड है और बेहतरीन पैकेज में जॉब कर रहे है. इस विवि में सभी स्ट्रीम की पढ़ाई होती है. 
थ्योरी के साथ-साथ प्रैक्टिकल पर विशेष ध्यान
यहां की खासियत है कि थ्योरी के साथ-साथ प्रैक्टिकल में विशेष ध्यान दिया जाता है. सबसे अच्छी बात तो यह है प्रेकटिकल के स्टूडेंट काे को माहौल भी उसी प्रकार दिया जाता है. जैसा उन्हें स्टडी के बाद फेस करना है. लॉ के प्रैक्टिकल के डिपार्टमेंट में ही एक कोर्ट रुम बनाया गया है, जहां सब कुछ प्रैक्टिकल करके स्टूडेंट को बताया और सिखाया जाता है. इसी प्रकार फार्माशिस्ट, बीेटेक, कम्यूटर साइंस आदि के लिए अलग-अलग प्रेक्टिकल रुम है.  

आरकेडीएफ यूनिवर्सिटी आधुनिक शिक्षा का केंद्र
आरकेडीएफ यूनिवर्सिटी न केवल शैक्षणिक गुणवत्ता के लिए जानी जाती है, बल्कि यह छात्रों को समग्र विकास के अवसर भी प्रदान करती है. विश्वविद्यालय का पाठ्यक्रम इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वह तीन प्रमुख क्षेत्रों को कवर करता है 

1. रिसर्च आधारित शिक्षाः
रिसर्च में रुचि रखने वाले छात्रों के लिए विश्वविद्यालय ने एक रिसर्च-ओरिएंटेड करिकुलम तैयार किया है जो आधुनिक आवश्यकताओं के अनुसार डिजाइन किया गया है. 
2. स्किल-बेस्ड प्लेसमेंट कार्यक्रमः
यदि छात्र प्लेसमेंट की तैयारी कर रहे हैं, तो उनके लिए स्किल-बेस्ड एजुकेशन सिस्टम उपलब्ध है, जिसे इंडस्ट्री पार्टनरशिप के साथ मिलकर तैयार किया गया है. 

3. कॉम्पिटिटिव एग्ज़ाम की तैयारीः
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के इच्छुक छात्रों के लिए विशेषज्ञों द्वारा समय-समय पर मार्गदर्शन दिया जाता है। इनमें वे लोग शामिल हैं जिन्होंने स्वयं विभिन्न राष्ट्रीय परीक्षाएं उत्तीर्ण की हैं. 

सभी स्ट्रीम्स के लिए हैं विकल्प
आरकेडीएफ यूनिवर्सिटी में सभी शैक्षणिक पृष्ठभूमियों वाले छात्रों के लिए उपयुक्त पाठ्यक्रम प्रदान करती है. साइंस के छात्र के लिए बी.एससी., इंजीनियरिंग, फार्मेसी, डिप्लोमा इन फार्मेसी उपलब्ध है. तो वहीं कॉमर्स स्टूडेंट यहां से बी.कॉम, एमबीए आदि कर सकते है. इसके अलावा कला के छात्र बीए, बीए-एलएलबी, बीबीए-एलएलबी, एलएलबी का कोर्स कर सकते है. इससे यह स्पष्ट होता है कि चाहे छात्र किसी भी स्ट्रीम से हों, आरकेडीएफ यूनिवर्सिटी उनके लिए एक बेहतर विकल्प है. 

स्कॉलरशिप की भी है सुविधा 
अक्सर लोग यह मानते हैं कि अच्छे कैंपस और सुविधाओं वाले कॉलेज महंगे होते हैं. लेकिन आरकेडीएफ यूनिवर्सिटी इससे अलग है. यह एक बजट-फ्रेंडली यूनिवर्सिटी है, जहां कम फीस में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाती है्. खास बात यह है कि विश्वविद्यालय में विभिन्न स्कॉलरशिप स्कीम्स उपलब्ध हैं.

मेरिट-बेस्ड स्कॉलरशिप
राज्य एवं भारत सरकार की स्कॉलरशिप योजनाएं
विशेष चांसलर स्कॉलरशिप
इससे आर्थिक रूप से कमजोर लेकिन मेधावी छात्रों को शिक्षा के अवसर मिलते हैं. 
ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीके से ले सकते है एडमिशन 
आरकेडीएफ यूनिवर्सिटी में प्रवेश की प्रक्रिया अत्यंत सरल है. छात्र उनके अभिभावक विश्वविद्यालय की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर आवेदन कर सकते हैं. वेबसाइट के जरिए रजिस्ट्रेशन, फॉर्म सबमिशन, और क्वेरी सबमिशन किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालय ने एक टोल-फ्री नंबर भी जारी किया है, जहां कॉल कर छात्र अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं. साथ ही यदि आप कैंपस विजिट करना चाहते हैं तो उनके लिए विश्वविद्यालय रांची के कटहल मोड़ के पास स्थित है. यहां बल्कि करियर काउंसलिंग की सुविधा भी कती है. करियर काउंसलर छात्रों को उनकी रुचि और योग्यता के अनुसार सही कोर्स चुनने में सहायता करते हैं. 
आरकेडीएफ यूनिवर्सिटी अब झारखंड के छात्रों के लिए केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि एक उज्जवल भविष्य की नींव बन चुकी है. यदि आप झारखंड में रहकर उच्च गुणवत्ता की शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं, तो आरकेडीएफ यूनिवर्सिटी आपके लिए एक बेहतर इंस्टीट्यूट साबित हो सकता है. यह विश्वविद्यालय न केवल शिक्षा प्रदान करता है, बल्कि आपके सपनों को साकार करने का प्लेटफार्म भी है.

Wednesday, 28 May 2025

खुद भी एक ब्रांड बनें : गुड़िया झा


जिन लोगों ने इतिहास रचा है उनका दिमाग उनके कंट्रोल में था। वे अपने दिमाग के कंट्रोल में नहीं थे। जीवन का सही आनंद लेने के लिए स्वस्थ मानसिकता का अपना एक अलग ही महत्वपूर्ण स्थान है। अगर हम स्वस्थ मानसिकता अपनाते हैं, तो जीवन के हर डिपार्टमेंट में हमारी बल्ले-बल्ले। अपने दिमाग का सही उपयोग करके हम अपने फील्ड के बादशाह बन सकते हैं। 
जिंदगी में सबसे अच्छी और सबसे बुरी बात का सबसे ज्यादा असर हमारे दिमाग पर पड़ता है। 
एक रिसर्च के अनुसार हमारे दिमाग पर सबसे ज्यादा असर रिश्तों का पड़ता है। 
थोड़ी सी सावधानी से हम भी स्वस्थ मानसिकता अपनाकर खुश रह सकते हैं।
1 खुश रहें यह सोचकर कि।
अक्सर  यह सोच कर परेशान रहते हैं कि हमारे पास  ये नहीं है, वो नहीं है। जबकि जो उपलब्ध है   उसकी तरफ हमारा ध्यान नहीं जाता है। हमेशा खुश रहें यह सोच कर कि जो हमारे पास है बहुत लोगों के पास वह भी नहीं है। अत्यधिक सुविधाएं आराम तो बहुत देती हैं। लेकिन जो नहीं हैं इसका मतलब यह नहीं कि उसके बिना हमारा जीवन अधूरा है। 
2 अपनी सोच के प्रोडक्ट बने।
हमारा सबसे बड़ा एकाउंट दिमाग है। इसमे हम जैसी सोच डालते हैं वैसा ही रिजल्ट भी हमें मिलता है। 
 इसलिए हमेशा अच्छा सोचें। इससे हम ऊर्जावान तो महसूस करते ही हैं साथ ही हमारे जीवन पर भी इसका अनुकूल प्रभाव पड़ता है। अपने आसपास चाहे कितनी भी नकारात्मकता क्यो न हो। अपने ऊपर कभी भी हावीं न होने दें। 
लोगों से खुले दिल से मिलें और बातों में भी दोस्ताना माहौल बनाये रखें। मजाक मस्ती भी करें जिससे हंसने के मौके मिलें। चिंता में बने रहने के हजार कारण हैं। उन्हें ढूंढना नहीं पड़ता है। हम जितने ज्यादा खुश रहेंगे उतने ही ज्यादा स्वस्थ भी रहेंगे। 

3 आध्यात्मिकता भी जरूरी।
आध्यात्मिकता के बिना तो हमारा जीवन अधूरा है। आध्यात्मिक शक्ति हमें गलत रास्ते पर जाने से रोकती है। इसके माध्यम से बड़ी से बड़ी परेशानियां भी आसानी से पार हो जाती हैं। अगर  अपने  हर कार्य के लिए हम समय निकाल सकते हैं, तो फिर थोड़ा समय ईश्वर की भक्ति के लिए भी सही।
4 खुद को  व्यस्त रखें।
एक पुरानी कहावत है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। किसी न किसी रचनात्मक कार्यों में खुद को व्यस्त रखें। इससे फालतू की बातें दिमाग में नहीं आएंगी और दूसरों के लिए भी प्रेरणादायक बन सकते हैं। उच्च विचार वाले लोग समाधान पर ज्यादा चर्चा करते हैं। औसत विचार वाले लोग समस्याओं पर ज्यादा चर्चा करते हैं और निम्न विचार वाले लोग दूसरे लोगों पर चर्चा करते हैं। अब हमें यह निर्णय लेना है कि हमें किस तरह बनना है।

Friday, 23 May 2025

रिश्तों में जिक्र नहीं फिक्र की एहमियत : गुड़िया झा

रिश्तों में  जिक्र नहीं फिक्र की एहमियत : 
गुड़िया झा
हम एक साथ कई रिश्तों में बंधे होते हैं। हर किसी का अपना एक अलग स्थान  और महत्व है। प्यार बांटना और पाना दोनों ही हमारे हाथों में है। क्योंकि प्रकृति का एक नियम है कि जो हम देते हैं वही हमें वापस मिलता भी है।
खुद को बार-बार साबित ना करना पड़े, जो सहज हो, सरल हो वास्तविक प्रेम की परिभाषा यही है। इसके लिए अपने मन की मजबूती भी उतनी ही आवश्यक है। प्रेम वह भाव है जो   दिल से जुड़ता है और एक-दूसरे से बांधे रखता है। लेकिन हर समय हमारे मन के अनुकूल हो यह कोई जरूरी तो नहीं। हर रिश्ते में सामंजस्य बना रहे इसके लिए जरूरी है थोड़ी सी सजगता।
1 अपेक्षाओं से दूर रहें।
अक्सर हमें कहने या सुनने में आता है कि उन लोगों से ऐसी उम्मीद नहीं थी। हर रिश्ते में कुछ अपेक्षाओं का होना स्वाभाविक है। लेकिन बहुत ज्यादा उम्मीद बनाये रखना खुद को खुशियों से दूर करना है। बल्कि खुद को दूसरों की उम्मीदों 
पर खड़े बनाये रखना ज्यादा खुशियां देता है। इससे काफी हद तक हम रिश्तों को संभाले रख सकते हैं।
2 खूबियों के साथ खामियों को अपनाना एक कला।
हर किसी में कुछ गुण और दोष दोनों ही होते हैं। हर कोई सर्वगुणसम्पन्न नहीं होता है। जब हाथों की पांचों उंगलियां भी एक जैसी नहीं होती हैं, तो फिर हम मनुष्यों का स्वभाव भी एक जैसे कैसे हो सकता है। 
इसलिए जो जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार कर अपना लें तो  रिश्तों के बीच खुद को सहज महसूस करते हैं साथ ही खुद के ऊपर कोई बोझ भी नहीं लगता। 
सामने वाले की अच्छाइयों को भी अपनाकर हम उनसे  बहुत कुछ  सीख भी सकते हैं। 

3 रिश्तों को भी सम्मान की एहमियत।
कोई भी रिश्ता यूं ही मजबूत नहीं होता है, बल्कि उसे कई तरह के पड़ाव से होकर गुजरना पड़ता है। उसके बाद उसमें स्थायित्व आता है।  वैसे कोई भी रिश्ता को  निभाना ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। एक बहुत व्यस्त है तो दूसरे की समझदारी से ही इसे बचाया जा सकता है। 
यहां सिर्फ अपनी खुशी के बारे में सोचना दूसरे को हमसे दूर करने लगता है। किसी से तुलना से भी संबंधों में दरार पैदा करती है। त्याग, समर्पण और भावनाओं को समझना रिश्तों की जड़ों को मज़बूत बनाती है।
किसी को अगर कुछ देना हो तो अपनी तरफ से सम्मान सबसे बड़ा गिफ्ट है। आपसी तालमेल बना रहे साथ ही एक दूसरे की बातों को गहराई से समझना भी जरूरी है। तभी तो इसे बचाया जा सकता है।