Thursday, 16 January 2025

सजने लगीं स्टॉल्स पर किताबों की दुनिया, विधित शुभारंभ 17 जनवरी को

 राची, झारखण्ड  | जनवरी |  16, 2025 ::
स्थानीय जिला स्कूल मैदान में समय इंडिया, नई दिल्ली एवं बिहार राज्य अभिलेखागार निदेशालय, पटना के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 10 दिवसीय राष्ट्रीय पुस्तक मेले में प्रकाशकों एवं पुस्तक विक्रेताओं के आने के साथ परिसर में गहमा–गहमी शुरू हो गई है । इसी के साथ 80 से अधिक स्टॉल्स पर सजने लगी है किताबों की खूबसूरत दुनिया । मेले का विधिवत शुभारंभ  मुख्य अतिथि राज्यसभा सांसद एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार महुआ माजी और विधायक सी.पी. सिंह के उद्बोधन से होगा । समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में जिला शिक्षा पदाधिकारी विनय कुमार उपस्थित रहेंगे । 
    शुभारंभ समारोह के साथ ही पुस्तक प्रेमियों के आने का सिलसिला शुरू होगा जो 26 जनवरी तक जारी रहेगा । यहाँ पुस्तक प्रेमी प्रतिदिन प्रात: 11:00 बजे से रात्रि 7:30 बजे तक पुस्तकों को उलट–पलट सकेंगे, अपनी पसंद की पुस्तकें चुन और खरीद सकेंगे । यह जानकारी समय इंडिया (रजि), नई दिल्ली के प्रबंध न्यासी चन्द्र भूषण ने दी ।
उन्होंने बताया कि पुस्तक मेले में आने वाले पुस्तक प्रेमियों को प्रवेश के लिए 10 रुपये की सहयोग राशि देनी होगी लेकिन स्कूल एवं कॉलेज के विद्यार्थियों को सोमवार से शुक्रवार, प्रात: 11 बजे से 2 बजे के बीच अपना आई कार्ड दिखाने पर निशुल्क प्रवेश मिलेगा । पुस्तक प्रेमियों के लिए पूरे मेला अवधि के लिए पास जारी करने की सुविधा भी उपलब्ध है ।  
अन्य भाग ले रही प्रमुख संस्थाएं :– श्री भूषण ने बताया कि जिन प्रकाशकों एवं पुस्तक विक्रेताओं की मेले में भागीदारी है उनमें राजपाल एण्ड संस, प्रकाशन संस्थान, समय प्रकाशन, यश प्रकाशन, लक्ष्मी प्रकाशन, नैय्यर बुक सर्विस, वर्मा बुक कम्पनी, रोहित बुक कम्पनी, विकल्प प्रकाशन, आर्यन बुक कम्पनी (नई दिल्ली), हिन्द युग्म (गौतम बुद्ध नगर), दिव्यांश प्रकाशन (लखनऊ), योगदा सत्संग सोसायटी ऑफ इंडिया, क्राउन पब्लिकेशन, झारखंड झरोखा, गीता प्रेस, रामकृष्ण मिशन आश्रम (रांची), श्री कबीर ज्ञान प्रकाशन केन्द्र (गिरिडीह), राज्य अभिलेखागार (पटना) आदि प्रमुख हैं । झारखंड झरोखा के स्टॉल पर ही राजकमल प्रकाशन, वाणी प्रकाशन, प्रतियोगिता संबंधी और झारखंड पर केन्द्रित पुस्तकें होंगी । रामकृष्ण मिशन आश्रम का स्टॉल स्वामी रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद साहित्य के प्रेमियों के लिए आकर्षण का केन्द्र होगा ।
पुस्तक मेले में दो महत्वपूर्ण कार्यक्रम : मेले में 18 जनवरी को सायं 4:00 बजे प्रसिद्ध नाटककार अनीश अंकुर की पुस्तक का लोकार्पण डॉ. विनोद कुमार की अध्यक्षता में सम्पन्न होगा । 19 जनवरी को हरिवंश जी से किताबों पर संवाद करेंगे प्रोफेसर विनय भरत । यह महत्वपूर्ण कार्यक्रम सायं 4:00 बजे होगा । इसमें नगर के विशिष्ट लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार शामिल होंगे । दोनों लेखकों की पुस्तकें प्रकाशन संस्थान ने प्रकाशित की हैं ।  
बच्चों पर केन्द्रित विविध कार्यक्रम :– मेले के दौरान स्कूली बच्चों के लिए कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम रखे गए हैं जिनमें कविता–सुनाओ कहानी लेखन प्रतियोगिता, बच्चों की चित्रकला प्रतियोगिता, बच्चों की लोक गीत/देशभक्ति गीत गायन प्रतियोगिता, बच्चों की नृत्य प्रतियोगिता, बच्चों की फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता, एकल नाट्य प्रतियोगिता आदि प्रमुख हैं । बच्चों की सभी प्रतियोगिताएँ एवं कार्यक्रम नि:शुल्क होंगे । 

Wednesday, 15 January 2025

रामगढ़ महाविद्यालय में एयर फोर्स भर्ती संबंधी जानकारी के लिए सेमिनार का आयोजन


राची, झारखण्ड  | जनवरी |  15, 2025 ::

रामगढ़ महाविद्यालय रामगढ़ में एयर फोर्स के अधिकारियों के सहयोग से एक सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार की अध्यक्षता प्राचार्या डॉ रत्ना पांडेय ने किया। उन्होने कहा कि अनुशासित जीवन ही कामयाब जीवन है। और अनुशासन का सर्व श्रेष्ठ उदाहरण सेना है। सेमिनार को एयर फोर्स के भर्ती अधिकारी श्री चिन्मय महापत्रा ने संबोधित करते हुए कहा कि एयर फोर्स में महिला पुरुष दोनों आवेदन कर सकते है जिसमें साढ़े सत्रह वर्ष से इक्कीस वर्ष तक के युवा युवती उम्मीदवार हो सकते हैं। न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता इंटर पास होता है उम्मीदवार को मैट्रिक या इंटर में अंग्रेजी में 50% से अधिक अंक प्राप्त होना आवश्यक है। भर्ती के दौरान अंग्रेजी में जवाब देना आवश्यक होता है अतः बच्चों को अंग्रेजी में बात करने की योग्यता रखनी चाहिए तब एयर फोर्स में जा सकते हैं। उन्होंने अपनी बात बताने के साथ एयर फोर्स से संबंधित कुछ प्रश्न भी किया जिसके जवाब विद्यार्थियों ने देने की कोशिश की। सबसे अच्छा जवाब देने का काम बी लिव साइंस की सृष्टि सिंह ने किया। अत: बी लिव साइंस की सृष्टि सिंह को सेना से जुड़े सामान्य ज्ञान का सही सही उत्तर देने पर उपहार से सम्मानित किया गया। सेमिनार को एयर फोर्स के भर्ती अधिकारी प्रवीण द्विवेदी, प्राचार्य डॉ रत्ना पांडेय, डॉ बख्शी ओम प्रकाश सिन्हा, डॉ राजेश कुमार उपाध्याय ने भी संबोधित किया। अंत में प्रो मोहित जैन ने धन्यवाद ज्ञापन किया। सेमिनार में मुख्य रूप से प्रो रोज उरांव, डॉ मालिनी डीन डॉ बलवंती मिंज, प्रो बीरबल महतो, प्रो साजिद हुसैन, डॉ शाहनवाज खान, मनोज नायक, उस्मानुद्दीन उपस्थित थे।

Sunday, 12 January 2025

लोग हमारे चेहरे नहीं,शब्दों को याद रखते हैं : गुड़िया झा

लोग हमारे चेहरे नहीं,शब्दों को याद रखते हैं :  गुड़िया झा

हमारे बुजुर्गों ने भी कहा है सरस्वती सिर्फ किताबों में ही नहीं होती हैं, बल्कि हमारी जुबान पर भी होती हैं। इसलिए हमेशा शुभ बोलने को कहा जाता है।
वो कहते हैं ना कि थप्पड़ की मार जितना चोट नहीं पहुंचाती है, उससे कहीं ज्यादा तीखे शब्दों की चोट घाव करती है।
कई बार किसी के खराब शब्दों से हमारी मानसिक प्रतिक्रिया कुछ अजीब सी होती है जिससे कई दिनों तक हम परेशान रहते हैं। 
शब्द भी एक तरह का भोजन ही है। कब कौन सा शब्द परोसना है अगर यह समझ आ जाये, तो इससे अच्छा रसोइया और क्या हो सकता है। 
बाहरी सौंदर्य के लिए हम ब्रांडेड क्रीम, कपड़ों, घड़ी, पर्स, जूतों आदि का इस्तेमाल करते हैं। कभी-कभी हम यह भूल जाते हैं कि इन सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि बोलते समय हमारे शब्दों की मर्यादा कहीं ज्यादा जरूरी है। जो खराब शब्द हमें दुख पहुंचाते हैं, वो हम खराब शब्द या व्यवहार दूसरों को कैसे दे सकते हैं। 
"गौतम बुद्ध ने भी कहा है कि जहां जरूरत नहीं हो, वहां मौन सबसे ज्यादा अच्छा है। "
"शब्दों की खूबसूरती देखिए,
भला का उल्टा लाभ होता है
और दया का उल्टा याद होता है,
भला करके देखो हमेशा लाभ में रहोगे,
दया करके देखो,हमेशा याद रहोगे।"
अच्छे शब्द भी इंसान को बादशाह बना देते हैं।
संत कबीरदास जी ने भी अपने एक कथन में कहा है कि "पोथी पढ़ी-पढ़ी जग हुआ, पंडित भया न कोई, ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय"।
हमारी दिनचर्या में बहुत छोटी-छोटी बातें हैं, जिनका उपयोग कर हम बेवजह की उलझनों से बच सकते हैं।
1 लहजा (टोन)।
प्रत्येक शब्द सम्मानित है। बशर्तें की हमारे बोलने का लहजा कैसा है। बोलते समय हमारी भावना में नेकी, करूणा हो, तो बात चाहे कितनी भी सच क्यों न हो सामने वाले पर उसका अच्छा असर ही होगा। कई बार होता यह है कि अपना रूतबा, या अपने खानदान के अच्छे बैकग्राउंड की पहचान को बताने के लिए भी  हमारे बोलने के टोन में कड़वाहट होती है। कड़वाहट से बोलने से रूतबा कायम नहीं होता है, बल्कि हमारी इज्जत कम होती है। 
हम सामने वाले पर अपना गुस्सा उतार तो देते हैं,लेकिन कभी सामने वाले की मनोस्थिति को नहीं समझ पाते हैं। 
अपनी आवाज में तो कौआ भी बोलता है और कोयल भी बोलती है। फिर भी लोग कोयल की बोली को ही सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। 
जब भी मन क्रोधित हो, तो मौन सबसे बड़ी दवा है। यहां एक बात जान लेना भी जरूरी है कि क्रोध तब आवश्यक हो जाता है, जब हम अपने आसपास कुछ गलत होते देखते हैं।
2 शब्दों का चयन।
प्रत्येक शब्द कई तरीकों से बोले जाते हैं। सौम्य, शांत, स्थिर, क्रोधित आदि कई रूप में। अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम कौन से रूप को अपनाते हैं। शब्दों की गरिमा को बनाये रखना भी  हमारा काम है। कई बार होता यह है कि गलतफहमी या बदले की भावना में हम शब्दों के मायने बदल देते हैं। प्रकृति का एक नियम यह है कि जो हम देते हैं, वही हमें वापस मिलता भी है। फिर चाहे वह प्यार हो या सम्मान। क्रोध और तूफान को आने में समय नहीं लगता है और इन दोनों के शांत होने के बाद ही पता चलता है कि नुकसान कितना बड़ा हुआ है। 
कई बार मौन में इतनी शक्ति होती है कि सामने वाले को सोचने पर मजबूर कर देती है। तू-तू, मैं-मैं में कुछ नहीं रखा। थोड़ा रूकना, थोड़ा झुकना बेसुमार प्यार दिलाती है। जिस तरह से गाड़ी को अच्छे से चलाने के लिए अच्छी ड्रायविंग होनी जरूरी है,उसी तरह से लोगों के दिलों में जगह बनाने के लिए कुछ अच्छे शब्द ही काफी हैं और इसकी कोई कीमत भी नहीं लगती है।
3 शारीरिक हावभाव।
बोलते समय हमारा शारीरिक हावभाव कैसा है, यह भी काफी महत्वपूर्ण है। आंखों की चमक और चेहरे की सौम्यता हमारे शब्दों के सम्मान को और भी ज्यादा बढ़ा देते हैं। 
कभी-कभी हमारे बोलते समय चेहरे के हावभाव, आंखों के इशारे और हाथों का डायरेक्सन कुछ इस तरह से होता है कि सामने वाले को हमारे ऐसे व्यवहार से दुख पहुंचता है। जब भी हम बातचीत का सिलसिला जारी करें, तो अपनी पिछली शिकायतों को छोड़कर गर्मजोशी से अभिवादन करते हुए अपनी बात रखें। जब किसी बात पर आपत्ति हो, तो विनम्रतापूर्वक धीरे से ना कहना ज्यादा बेहतर होगा। इससे बात बढ़ेगी नहीं और आगे बात करने के अवसर भी मिलेंगे। हम जैसा बोलते हैं, हमारे आसपास भी उसी तरह का वातावरण बनता है।

Sunday, 29 December 2024

जीना इसी का नाम है : गुड़िया झा

जीना इसी का नाम है : गुड़िया झा
 एक पुरानी कहावत है कि चैन से जीने के लिए लक्जरी जीवन की आवश्यकता नहीं होती है जबकि बेचैन से जीने के लिए बहुत सी संपत्ति भी कम पड़ जाती है। सामने वाले के घर से ज्यादा बड़ा घर बनाना है, ज्यादा बड़ी गाड़ी लेनी है, ज्यादा संपत्ति अर्जित कर भविष्य के लिए निश्चिंत हो जाना है। यह सोच हम भारतीयों की आम बात है। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि इन भागदौड़ के बीच हम अपने जीवन के सुकून को खोते जा रहे हैं। यह हमारे भीतर ही मौजूद है। जीवन के हर पल का आनंद लेने के लिए सबसे कीमती हमारी सांसें हैं। जिसे ईश्वर ने हमें फ्री में गिफ्ट दिया है। इसकी कीमत हम नहीं समझ पाते हैं और जो बाजारों में बहुत महंगी जो चीजें है उसके पीछे परेशान हैं। खुशी की परिभाषा सबके लिए अलग अलग होती है। कोई झोपड़ी में भी मस्त है, तो कोई महलों में भी परेशान है। थोड़ी सी सजगता से हम अपने खुशियों को और भी ज्यादा बढ़ा सकते हैं।
1 दोषारोपण करने से बचें।
दुनिया का सबसे आसान काम है । दोषारोपण कर हम आराम से बैठ जाते हैं।  यह सोच कर कि इससे हमारी वर्तमान समस्याएं समाप्त हो जाएंगी। जबकि इससे समस्या और भी ज्यादा बढ़ती है।
परिस्थितियां हमेशा एक जैसी नहीं होती हैं। जैसे रात के अंधेरे के बाद हम सुबह का उजाला भी देखते हैं। हमेशा अपने भीतर जोश और जुनून के उत्साह को बरकरार रखें। जब हम उत्साहित रहेंगे तो सामने वाले पर भी इसका अच्छा असर देखने को मिलेगा और हम आने वाले समय में नए भारत के निर्माण में अपना योगदान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
2 मुश्किल वक्त कमांडो सख्त।
विपरीत परिस्थितियों में बहुत सारे निर्णय हमें सख्ती से भी लेने पड़ते हैं। ये समय भावनाओं में बहने का नहीं होता है। इस समय में जल्दीबाजी में लिया गया कोई भी फैसला सही नहीं होता है। खुद और जनकल्याण के हित में जो सही है  उससे समझौता नहीं करें और ना ही अनावश्यक दवाब में रहें। अपने अंतरात्मा की आवाज अवश्य सुनें। सबकी अपनी सोच अलग होती है। गलत दिशा में भीड़ के पीछे चलने से अच्छा है कि हम सही दिशा में अकेले ही चलें। 
हमेशा सकारात्मक रहें और संगति भी ऐसे ही लोगों की रखें क्योंकि काफी हद तक हमारे मन और मस्तिष्क पर संगति का भी असर होता है।
3 बेवजह की बातों से दूर रहें।
अक्सर हम देखते हैं कि कई बार हमारा ध्यान अनावश्यक बातों में उलझ जाता है। छोटी छोटी बातों को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाने से बचें।   हर किसी की परिस्थितियां एक जैसी नहीं होती हैं। हम जितना ज्यादा दूसरों से तुलना करते हैं उतना ही ज्यादा अपनी खुशियों से दूर होते जाते हैं। अनावश्यक तनाव मानसिक स्वास्थ्य के साथ साथ शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है।

Saturday, 28 December 2024

विधार्थी जीवन निर्माण का पथ प्रशस्त करता है अणुव्रत : डॉ. कुसुम लुनिया

विधार्थी जीवन निर्माण का पथ प्रशस्त करता है अणुव्रत : डॉ. कुसुम लुनिया

जिम कार्बेट, नैनीताल

शिक्षा के माध्यम से विधालय में बच्चे ज्ञान, कौशल , इतिहास और संस्कृति की जानकारी प्राप्त करते हैं।इन सबके साथ साथ अणुव्रत - जीवन विज्ञान विधार्थी जीवन निर्माण का पथ प्रशस्त करता है।
जो विधार्थी  जीवन को सफल और सार्थक बनाने में मदद करता है।
राजकीय उच्च माध्यामिक विधालय ,गांव भलोन में विधार्थियो को संबोधित करते हुए अणुविभा की उपाध्यक्ष डॉ. कुसुम लुनिया ने रखी।
डॉ. धनपत लुनिया ने अणुव्रत गीत का सरस संगान करते हुए बच्चों को संयम का महत्व समझाया।
प्रिसीपल श्री प्रकाश चन्द्र जी ने लुनिया दम्पति का स्वागत करते हुए विधार्थिंयो को संबोधित करने हेतु अहोभाव व्यक्त किया। विधालय शिक्षिका श्रीमती मंजु जोशी ने अतिथियों आभार प्रकट किया।डॉ लुनिया ने बालिकाओं को विशेष रूप से संबोधित करते हुए उन्हे जीवन मे उच्च शिक्षा के लिए विभिन्न लक्ष्य निर्धारण हेतु पथ प्रदर्शन किया।
उन्होने आगे कहा कि संयम प्रधान जीवनशैली वर्तमान युग की मांग है। अणुव्रत त्याग व संयम का आन्दोलन है। इससे व्यापारी, अधिकारी, शिक्षक, विधार्थी या यूं कहे प्रत्येक व्यक्ति अपना संतुलित व्यक्तित्व विकास करते हुए बेहतर विश्व निर्माण में अपनी भागीदारी निभा सकते हैं।
अणुव्रत विश्व भारती के नेतृत्व में चलने वाले जीवन विज्ञान, अणुव्रत क्रियेटीवीटी कान्टेस्ट (ACC ) डीजीटल डिटोक्स एवं एलीवेट जैसे प्रकल्प स्कूलों में बहुत पोपुलर हो रहे हैं। 
प्रिंसिपल श्री प्रकाशचन्द्र को डॉ धनपत लुनिया ने अणुव्रत पट्टका पहनाया उनको व संग श्रीमती मीना जोशी, श्रीमती प्रेमलता पाण्डे, श्री राकेश शर्मा ,प्रमोद कुमार व परमजीत कौर आदि को अणुव्रत पत्रिका भेंट की गई। पुरे विधालय परिवार को अणुव्रत से जुडने के लिए वंहा अणुव्रत मंच गठन की बात भी रखी, जिसे उन्होने सहर्ष स्वीकार किया।

Wednesday, 25 December 2024

एक्सीलेंट पब्लिक स्कूल में विज्ञान और कला की प्रदर्शनी मे झलकी बच्चों की वैज्ञानिक सोच

राची, झारखण्ड  | दिसम्बर |  25, 2024 ::

 एक्सीलेंट पब्लिक  स्कूल के प्रांगण में विज्ञान एवं कला प्रदर्शनी का आयोजन निदेशक कार्तिक विश्वकर्मा के  अध्यक्षता मे संपन्न हुआ।इस प्रदर्शनी में बच्चों के वैज्ञानिक सोच की झलक दिखी।
इस कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि हटिया विधानसभा क्षेत्र के  लोकप्रिय विधायक नवीन जायसवाल, छात्र क्लब बुद्धिजीवी मंच (यूनिट, छात्र क्लब ग्रुप) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिव किशोर शर्मा,समाजसेवी श्रीकांत शर्मा, अवकाश प्राप्त फौजी शांतनु कुमार, शिव कुमार विश्वकर्मा, विद्यालय के  निदेशक कार्तिक विश्वकर्मा एवं प्राचार्या शोभा देवी द्वारा संयुक्तरूप से दीप प्रज्वलित कर किया गया।
       वर्ग प्री नर्सरी से वर्ग 10 वीं तक के छात्र-छात्राओं द्वारा राम मंदिर,पाचन तंत्र प्रणाली, वाटर प्यूरीफायर, हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी, कूलर,वैक्यूम क्लीनर,रॉकेट लांचर,मानव हृदय,पॉल्यूशन  कंट्रोल प्रणाली, हाइड्रोलिक चेयर, वायोगैस प्लांट, ग्रीन हाउस इफेक्ट, ग्लोबल वार्मिंग, हाइड्रोलिक लिफ्ट 
 आदि मॉडलों को प्रस्तुत कर विस्तृत रूप से बतलाया गया। बच्चों द्वारा लगाई गई इन सभी मॉडलों को सभी अतिथियों एवं अभिभावकों ने काफी बारीकियों से अवलोकन कर बच्चों का उत्साह बर्धन किया।
मौके पर नवीन जायसवाल ने कहा इस तरह के प्रदर्शनी से  बच्चों में विज्ञान के प्रति जिज्ञासा बढ़ती है और कौशल विकास होता है साथ ही विज्ञान के क्षेत्र में   आवश्यकतानुसार नए-नए अविष्कार करने जानकारी प्राप्त होती  है। 
कार्यक्रम समाप्ति के पूर्व प्रतियोगिता में चयनित छात्र प्रीतम, आदित्य, राज,सूरज, दिव्या,ज्योति, आरती, चाहत, रिया,पूजा, नीरज, ज्ञान रंजन आदि को पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया।
धन्यवाद ज्ञापित करते हुए प्राचार्या शोभा देवी ने कहा आज यहां छात्रों ने जिस तरह की प्रतिभा दिखाई है निश्चितरूप से ये सभी बच्चे एक दिन विद्यालय एवं देश का नाम रौशन करेंगे।
मंच संचालन दयानंद विश्वकर्मा एवं धन्यवाद ज्ञापन सच्चिदानंद विश्वकर्मा ने किया।
 आज के कार्यक्रम को सफल बनाने में मुख्यरूप से विद्यालय के शिक्षक प्रिंस, कुणाल, शुशील, विकाश, नितेश, पिंकी, सचिन्द्र, सपना, ज्योति, प्रियंका, स्वेता, अनामिका, नन्दिनी इत्यादि का अहम योगदान रहा । 



Monday, 23 December 2024

मानवीय मूल्यों की उपयोगिता : गुड़िया झा

मानवीय मूल्यों की उपयोगिता : गुड़िया झा

आज हर कोई खुद में इतना व्यस्त और आगे बढ़ने की चाह में है कि मानवीय मूल्यों की उपयोगिता पर शायद ही किसी का ध्यान केंद्रित हो। व्यक्तिगत जीवन जीना अच्छा है। आज अकेले रहने की भावना ने मानवीय मूल्यों के महत्त्व को काफी कम भी किया है।हमारे जीवन के हर क्षेत्र में मानवीय योगदान ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। फिर भी हमारा ध्यान अधिकांश महलों और महंगी गाड़ियों की ओर अनायास ही चला जाता है। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि जहां मानवीय मदद की जरूरत होती है, वहां आधुनिक सुविधाएं फिकी पड़ जाती हैं।
 जब हम शारीरिक रूप से अस्वस्थ होते हैं,तो हमें यह एहसास होता है कि कोई हमारे साथ होता तो हमारी देखभाल करतां। मानवीय मूल्य के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता। हमें भी खुद इसके लिए जागरूक रहने की आवश्यकता है।

1, अपना सामाजिक दायरा बढायें।
हमने कभी बचपन में पढ़ा था कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इसके बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती।हम सभी के मिलने से ही एक संगठित समाज का निर्माण होता है। सबसे पहले तो अपने परिवार को संगठित कर मानवीय मूल्य के महत्त्व को एक उचित परिभाषा के रूप में हम पेश कर सकते हैं। क्योंकि जब हमें जरूरत पड़ती है, तो घर के सदस्यों का सहारा ही हमें एक मजबूत संबल प्रदान करता है।
किसी कारणवश यदि दूसरे शहर में अकेले रहने की मजबूरी हो तब भी पास पड़ोस के लोगों से संपर्क बनाये रखें। क्योंकि जब हम बाहर रहते हैं तो हमारे पड़ोसी ही परिवार की भूमिका निभाते हैं। ऐसे में उन्हें नजरअंदाज करना उचित नहीं। खुद भी समय-समय पर उनका हालचाल लेते रहें और जहां तक संभव हो सके अपनी तरफ से मदद का हाथ अवश्य आगे बढायें।

2, निःस्वार्थ भावना।
यह वो अनमोल गुण है जो हम सभी में मौजूद है। जब हम किसी की मदद करते हैं, तो बिना यह सोचे कि शायद हमें भी किसी की जरूरत पड़ सकती है। जब हम इस भावना से ऊपर उठकर कार्य करते हैं, तो हम पाते हैं कि हमारे अंदर आत्मविश्वास बढ़ता है। सच्चे अर्थों में यही मानवता की पहचान भी है। नर सेवा, नारायण सेवा भी शायद इसी को कहते हैं। भगवान हर जगह नहीं होते हैं। इसलिए उन्होंने हम इंसानों को एक दूसरे की मदद के लिए माध्यम बनाया है। निःस्वार्थ भावना से की गई सेवा कभी व्यर्थ नही जाती है।

3 भेदभाव से ऊपर उठें।
आज हर जगह अपने और पराये की भावना ने जन्म ले लिया है। इससे ऊपर उठकर कार्य करने की आवश्यकता है। प्रकृति का एक नियम है कि जो हम देते हैं वही हमें वापस भी मिलता है। फिर चाहे वह प्यार हो या सम्मान। 
जो चीजें हमें खुद अच्छी नहीं लगती वो हम दूसरों को कैसे बांट सकते हैं।
समय और सत्य दोनों को साथ लेकर चलने से बेहतर परिणाम भी मिलते हैं। किसी के बहकावे में आने से बचें। अपने अंतरात्मा की आवाज अवश्य सुनें। क्योंकि अंतरात्मा कभी भी झूठ नहीं कहती। अंतरात्मा में ईश्वर का वास होता है और ईश्वर के संकेत हमेशा सावधान करने वाले होते हैं।