Sunday, 29 December 2024

जीना इसी का नाम है : गुड़िया झा

जीना इसी का नाम है : गुड़िया झा
 एक पुरानी कहावत है कि चैन से जीने के लिए लक्जरी जीवन की आवश्यकता नहीं होती है जबकि बेचैन से जीने के लिए बहुत सी संपत्ति भी कम पड़ जाती है। सामने वाले के घर से ज्यादा बड़ा घर बनाना है, ज्यादा बड़ी गाड़ी लेनी है, ज्यादा संपत्ति अर्जित कर भविष्य के लिए निश्चिंत हो जाना है। यह सोच हम भारतीयों की आम बात है। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि इन भागदौड़ के बीच हम अपने जीवन के सुकून को खोते जा रहे हैं। यह हमारे भीतर ही मौजूद है। जीवन के हर पल का आनंद लेने के लिए सबसे कीमती हमारी सांसें हैं। जिसे ईश्वर ने हमें फ्री में गिफ्ट दिया है। इसकी कीमत हम नहीं समझ पाते हैं और जो बाजारों में बहुत महंगी जो चीजें है उसके पीछे परेशान हैं। खुशी की परिभाषा सबके लिए अलग अलग होती है। कोई झोपड़ी में भी मस्त है, तो कोई महलों में भी परेशान है। थोड़ी सी सजगता से हम अपने खुशियों को और भी ज्यादा बढ़ा सकते हैं।
1 दोषारोपण करने से बचें।
दुनिया का सबसे आसान काम है । दोषारोपण कर हम आराम से बैठ जाते हैं।  यह सोच कर कि इससे हमारी वर्तमान समस्याएं समाप्त हो जाएंगी। जबकि इससे समस्या और भी ज्यादा बढ़ती है।
परिस्थितियां हमेशा एक जैसी नहीं होती हैं। जैसे रात के अंधेरे के बाद हम सुबह का उजाला भी देखते हैं। हमेशा अपने भीतर जोश और जुनून के उत्साह को बरकरार रखें। जब हम उत्साहित रहेंगे तो सामने वाले पर भी इसका अच्छा असर देखने को मिलेगा और हम आने वाले समय में नए भारत के निर्माण में अपना योगदान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
2 मुश्किल वक्त कमांडो सख्त।
विपरीत परिस्थितियों में बहुत सारे निर्णय हमें सख्ती से भी लेने पड़ते हैं। ये समय भावनाओं में बहने का नहीं होता है। इस समय में जल्दीबाजी में लिया गया कोई भी फैसला सही नहीं होता है। खुद और जनकल्याण के हित में जो सही है  उससे समझौता नहीं करें और ना ही अनावश्यक दवाब में रहें। अपने अंतरात्मा की आवाज अवश्य सुनें। सबकी अपनी सोच अलग होती है। गलत दिशा में भीड़ के पीछे चलने से अच्छा है कि हम सही दिशा में अकेले ही चलें। 
हमेशा सकारात्मक रहें और संगति भी ऐसे ही लोगों की रखें क्योंकि काफी हद तक हमारे मन और मस्तिष्क पर संगति का भी असर होता है।
3 बेवजह की बातों से दूर रहें।
अक्सर हम देखते हैं कि कई बार हमारा ध्यान अनावश्यक बातों में उलझ जाता है। छोटी छोटी बातों को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाने से बचें।   हर किसी की परिस्थितियां एक जैसी नहीं होती हैं। हम जितना ज्यादा दूसरों से तुलना करते हैं उतना ही ज्यादा अपनी खुशियों से दूर होते जाते हैं। अनावश्यक तनाव मानसिक स्वास्थ्य के साथ साथ शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है।

Saturday, 28 December 2024

विधार्थी जीवन निर्माण का पथ प्रशस्त करता है अणुव्रत : डॉ. कुसुम लुनिया

विधार्थी जीवन निर्माण का पथ प्रशस्त करता है अणुव्रत : डॉ. कुसुम लुनिया

जिम कार्बेट, नैनीताल

शिक्षा के माध्यम से विधालय में बच्चे ज्ञान, कौशल , इतिहास और संस्कृति की जानकारी प्राप्त करते हैं।इन सबके साथ साथ अणुव्रत - जीवन विज्ञान विधार्थी जीवन निर्माण का पथ प्रशस्त करता है।
जो विधार्थी  जीवन को सफल और सार्थक बनाने में मदद करता है।
राजकीय उच्च माध्यामिक विधालय ,गांव भलोन में विधार्थियो को संबोधित करते हुए अणुविभा की उपाध्यक्ष डॉ. कुसुम लुनिया ने रखी।
डॉ. धनपत लुनिया ने अणुव्रत गीत का सरस संगान करते हुए बच्चों को संयम का महत्व समझाया।
प्रिसीपल श्री प्रकाश चन्द्र जी ने लुनिया दम्पति का स्वागत करते हुए विधार्थिंयो को संबोधित करने हेतु अहोभाव व्यक्त किया। विधालय शिक्षिका श्रीमती मंजु जोशी ने अतिथियों आभार प्रकट किया।डॉ लुनिया ने बालिकाओं को विशेष रूप से संबोधित करते हुए उन्हे जीवन मे उच्च शिक्षा के लिए विभिन्न लक्ष्य निर्धारण हेतु पथ प्रदर्शन किया।
उन्होने आगे कहा कि संयम प्रधान जीवनशैली वर्तमान युग की मांग है। अणुव्रत त्याग व संयम का आन्दोलन है। इससे व्यापारी, अधिकारी, शिक्षक, विधार्थी या यूं कहे प्रत्येक व्यक्ति अपना संतुलित व्यक्तित्व विकास करते हुए बेहतर विश्व निर्माण में अपनी भागीदारी निभा सकते हैं।
अणुव्रत विश्व भारती के नेतृत्व में चलने वाले जीवन विज्ञान, अणुव्रत क्रियेटीवीटी कान्टेस्ट (ACC ) डीजीटल डिटोक्स एवं एलीवेट जैसे प्रकल्प स्कूलों में बहुत पोपुलर हो रहे हैं। 
प्रिंसिपल श्री प्रकाशचन्द्र को डॉ धनपत लुनिया ने अणुव्रत पट्टका पहनाया उनको व संग श्रीमती मीना जोशी, श्रीमती प्रेमलता पाण्डे, श्री राकेश शर्मा ,प्रमोद कुमार व परमजीत कौर आदि को अणुव्रत पत्रिका भेंट की गई। पुरे विधालय परिवार को अणुव्रत से जुडने के लिए वंहा अणुव्रत मंच गठन की बात भी रखी, जिसे उन्होने सहर्ष स्वीकार किया।

Wednesday, 25 December 2024

एक्सीलेंट पब्लिक स्कूल में विज्ञान और कला की प्रदर्शनी मे झलकी बच्चों की वैज्ञानिक सोच

राची, झारखण्ड  | दिसम्बर |  25, 2024 ::

 एक्सीलेंट पब्लिक  स्कूल के प्रांगण में विज्ञान एवं कला प्रदर्शनी का आयोजन निदेशक कार्तिक विश्वकर्मा के  अध्यक्षता मे संपन्न हुआ।इस प्रदर्शनी में बच्चों के वैज्ञानिक सोच की झलक दिखी।
इस कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि हटिया विधानसभा क्षेत्र के  लोकप्रिय विधायक नवीन जायसवाल, छात्र क्लब बुद्धिजीवी मंच (यूनिट, छात्र क्लब ग्रुप) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिव किशोर शर्मा,समाजसेवी श्रीकांत शर्मा, अवकाश प्राप्त फौजी शांतनु कुमार, शिव कुमार विश्वकर्मा, विद्यालय के  निदेशक कार्तिक विश्वकर्मा एवं प्राचार्या शोभा देवी द्वारा संयुक्तरूप से दीप प्रज्वलित कर किया गया।
       वर्ग प्री नर्सरी से वर्ग 10 वीं तक के छात्र-छात्राओं द्वारा राम मंदिर,पाचन तंत्र प्रणाली, वाटर प्यूरीफायर, हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी, कूलर,वैक्यूम क्लीनर,रॉकेट लांचर,मानव हृदय,पॉल्यूशन  कंट्रोल प्रणाली, हाइड्रोलिक चेयर, वायोगैस प्लांट, ग्रीन हाउस इफेक्ट, ग्लोबल वार्मिंग, हाइड्रोलिक लिफ्ट 
 आदि मॉडलों को प्रस्तुत कर विस्तृत रूप से बतलाया गया। बच्चों द्वारा लगाई गई इन सभी मॉडलों को सभी अतिथियों एवं अभिभावकों ने काफी बारीकियों से अवलोकन कर बच्चों का उत्साह बर्धन किया।
मौके पर नवीन जायसवाल ने कहा इस तरह के प्रदर्शनी से  बच्चों में विज्ञान के प्रति जिज्ञासा बढ़ती है और कौशल विकास होता है साथ ही विज्ञान के क्षेत्र में   आवश्यकतानुसार नए-नए अविष्कार करने जानकारी प्राप्त होती  है। 
कार्यक्रम समाप्ति के पूर्व प्रतियोगिता में चयनित छात्र प्रीतम, आदित्य, राज,सूरज, दिव्या,ज्योति, आरती, चाहत, रिया,पूजा, नीरज, ज्ञान रंजन आदि को पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया।
धन्यवाद ज्ञापित करते हुए प्राचार्या शोभा देवी ने कहा आज यहां छात्रों ने जिस तरह की प्रतिभा दिखाई है निश्चितरूप से ये सभी बच्चे एक दिन विद्यालय एवं देश का नाम रौशन करेंगे।
मंच संचालन दयानंद विश्वकर्मा एवं धन्यवाद ज्ञापन सच्चिदानंद विश्वकर्मा ने किया।
 आज के कार्यक्रम को सफल बनाने में मुख्यरूप से विद्यालय के शिक्षक प्रिंस, कुणाल, शुशील, विकाश, नितेश, पिंकी, सचिन्द्र, सपना, ज्योति, प्रियंका, स्वेता, अनामिका, नन्दिनी इत्यादि का अहम योगदान रहा । 



Monday, 23 December 2024

मानवीय मूल्यों की उपयोगिता : गुड़िया झा

मानवीय मूल्यों की उपयोगिता : गुड़िया झा

आज हर कोई खुद में इतना व्यस्त और आगे बढ़ने की चाह में है कि मानवीय मूल्यों की उपयोगिता पर शायद ही किसी का ध्यान केंद्रित हो। व्यक्तिगत जीवन जीना अच्छा है। आज अकेले रहने की भावना ने मानवीय मूल्यों के महत्त्व को काफी कम भी किया है।हमारे जीवन के हर क्षेत्र में मानवीय योगदान ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। फिर भी हमारा ध्यान अधिकांश महलों और महंगी गाड़ियों की ओर अनायास ही चला जाता है। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि जहां मानवीय मदद की जरूरत होती है, वहां आधुनिक सुविधाएं फिकी पड़ जाती हैं।
 जब हम शारीरिक रूप से अस्वस्थ होते हैं,तो हमें यह एहसास होता है कि कोई हमारे साथ होता तो हमारी देखभाल करतां। मानवीय मूल्य के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता। हमें भी खुद इसके लिए जागरूक रहने की आवश्यकता है।

1, अपना सामाजिक दायरा बढायें।
हमने कभी बचपन में पढ़ा था कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इसके बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती।हम सभी के मिलने से ही एक संगठित समाज का निर्माण होता है। सबसे पहले तो अपने परिवार को संगठित कर मानवीय मूल्य के महत्त्व को एक उचित परिभाषा के रूप में हम पेश कर सकते हैं। क्योंकि जब हमें जरूरत पड़ती है, तो घर के सदस्यों का सहारा ही हमें एक मजबूत संबल प्रदान करता है।
किसी कारणवश यदि दूसरे शहर में अकेले रहने की मजबूरी हो तब भी पास पड़ोस के लोगों से संपर्क बनाये रखें। क्योंकि जब हम बाहर रहते हैं तो हमारे पड़ोसी ही परिवार की भूमिका निभाते हैं। ऐसे में उन्हें नजरअंदाज करना उचित नहीं। खुद भी समय-समय पर उनका हालचाल लेते रहें और जहां तक संभव हो सके अपनी तरफ से मदद का हाथ अवश्य आगे बढायें।

2, निःस्वार्थ भावना।
यह वो अनमोल गुण है जो हम सभी में मौजूद है। जब हम किसी की मदद करते हैं, तो बिना यह सोचे कि शायद हमें भी किसी की जरूरत पड़ सकती है। जब हम इस भावना से ऊपर उठकर कार्य करते हैं, तो हम पाते हैं कि हमारे अंदर आत्मविश्वास बढ़ता है। सच्चे अर्थों में यही मानवता की पहचान भी है। नर सेवा, नारायण सेवा भी शायद इसी को कहते हैं। भगवान हर जगह नहीं होते हैं। इसलिए उन्होंने हम इंसानों को एक दूसरे की मदद के लिए माध्यम बनाया है। निःस्वार्थ भावना से की गई सेवा कभी व्यर्थ नही जाती है।

3 भेदभाव से ऊपर उठें।
आज हर जगह अपने और पराये की भावना ने जन्म ले लिया है। इससे ऊपर उठकर कार्य करने की आवश्यकता है। प्रकृति का एक नियम है कि जो हम देते हैं वही हमें वापस भी मिलता है। फिर चाहे वह प्यार हो या सम्मान। 
जो चीजें हमें खुद अच्छी नहीं लगती वो हम दूसरों को कैसे बांट सकते हैं।
समय और सत्य दोनों को साथ लेकर चलने से बेहतर परिणाम भी मिलते हैं। किसी के बहकावे में आने से बचें। अपने अंतरात्मा की आवाज अवश्य सुनें। क्योंकि अंतरात्मा कभी भी झूठ नहीं कहती। अंतरात्मा में ईश्वर का वास होता है और ईश्वर के संकेत हमेशा सावधान करने वाले होते हैं।

Monday, 9 December 2024

जीना इसी का नाम है : गुड़िया झा

जीना इसी का नाम है : गुड़िया झा

एक पुरानी कहावत है कि चैन से जीने के लिए लग्जरी जीवन की आवश्यकता नहीं होती है जबकि बेचैन से जीने के लिए बहुत सी संपत्ति भी कम पड़ जाती है। सामने वाले के घर से ज्यादा बड़ा घर बनाना है, ज्यादा बड़ी गाड़ी लेनी है, ज्यादा संपत्ति अर्जित कर भविष्य के लिए निश्चिंत हो जाना है। यह सोच हम भारतीयों की आम बात है। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि इन भागदौड़ के बीच हम अपने जीवन के सुकून को खोते जा रहे हैं। यह हमारे भीतर ही मौजूद है। जीवन के हर पल का आनंद लेने के लिए सबसे कीमती हमारी सांसें हैं। जिसे ईश्वर ने हमें फ्री में गिफ्ट दिया है। इसकी कीमत हम नहीं समझ पाते हैं और जो बाजारों में बहुत महंगी है उसके पीछे परेशान हैं।  

1 दोषारोपण करने से बचें
दुनिया का सबसे आसान काम है दोषारोपण करना। कई बार हम यह भूल जाते हैं कि जब अपने हाथ की एक अंगुली हम दूसरों की तरफ दिखाते हैं तो बाकी सभी उंगलियां हमारी तरफ ही होती हैं। दोषारोपण कर हम आराम से बैठ जाते हैं।  यह सोच कर कि इससे हमारी वर्तमान समस्याएं समाप्त हो जाएंगी। जबकि ऐसा है नहीं। परिस्थितियां हमेशा एक जैसी नहीं होती हैं। जैसे रात के अंधेरे के बाद हम सुबह का उजाला भी देखते हैं। हमेशा अपने भीतर जोश और जुनून के उत्साह को बरकरार रखें। जब हम उत्साहित रहेंगे तो सामने वाले पर भी इसका अच्छा असर देखने को मिलेगा और हम आने वाले समय में नए भारत के निर्माण में अपना योगदान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

2 मुश्किल वक्त कमांडो सख्त
विपरीत परिस्थितियों में बहुत सारे निर्णय हमें सख्ती से भी लेने पड़ते हैं। ये समय भावनाओं में बहने का नहीं होता है। इस समय में जल्दबाजी में लिया गया कोई भी फैसला सही नहीं होता है। खुद और जनकल्याण के हित में जो सही है  उससे समझौता नहीं करें और ना ही अनावश्यक दबाव में रहें। अपने अंतरात्मा की आवाज अवश्य सुनें। सबकी अपनी सोच अलग होती है। गलत दिशा में भीड़ के पीछे चलने से अच्छा है कि हम सही दिशा में अकेले ही चलें। हमेशा सकारात्मक रहें और संगति भी ऐसे ही लोगों की रखें क्योंकि काफी हद तक हमारे मन और मस्तिष्क पर संगति का भी असर होता है।

3 बेवजह की बातों से दूर रहें
अक्सर हम देखते हैं कि कई बार हमारा ध्यान अनावश्यक बातों में उलझ जाता है। छोटी छोटी बातों को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाने से बचें।   हर किसी की परिस्थितियां एक जैसी नहीं होती हैं। हम जितना ज्यादा दूसरों से तुलना करते हैं उतना ही ज्यादा अपनी खुशियों से दूर होते जाते हैं। अनावश्यक तनाव मानसिक स्वास्थ्य के साथ साथ शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है।