Sunday, 21 June 2020

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अष्टांग योग का महत्व : रोहित कुमार ( योग प्रशिक्षक )

रांची , झारखण्ड | जून | 22, 2020 ::


• अष्टांग योग का सामान्य परिचय

अष्टांग योग विद्या जो भारत की प्राचीन योग विद्याओं में से एक है, जिसकी सूत्रपात “महर्षि पतंजलि” ने अपने योग दर्शन सूत्र में किए हैं, जो आठ अंगों में विभक्त है: १. यम २. नियम ३. आसन ४. प्राणायाम ५. प्रत्याहार ६. धारणा ७. ध्यान ८. समाधि। इन आठ अंगों की सहायता से मनुष्य अपने जीवन को सार्थक बनाता है, जिसमें शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, उन्नति का विकास होता है परिणामस्वरूप चेतना उच्च अवस्था में पहुंच जाता है।

 वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अष्टांग योग का महत्व.
वर्तमान परिप्रेक्ष्य यानी 21वीं सदी में आज हमारे बीच कई प्रकार के रोग उत्पन्न हो गए हैं, जो शरीर और मन को पूरी तरह से जकड़ चुका है,आज भौतिक युग में प्रत्येक मानव दैहिक, दैविक और भौतिक दुखों से घिरा हुआ है। संपूर्ण विश्व में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो कि इन तीनों प्रकार के दुख की पीड़ा को दूर कर सके। इन पीड़ाओं को दूर करने के लिए प्राचीन काल में ऋषियों ने योग विद्या को दीपक के रूप में प्रज्वलित किया, जो आज पूरे मनुष्य-जाति को लाभ पहुंचा रही हैं और इसी योग विद्या में अष्टांग योग का उद्देश्य जीवन को संवारना और समृद्ध करना है। अष्टांग योग विभिन्न पदों यथा अष्टांग योग का अभ्यास कर अखिल विश्व स्वास्थ्य रहने की सदाचारी बनने की अहम संजीवनी बूटी प्रदान की है। वहीं इसके विपरीत वर्तमान समय में मनुष्य भौतिक सुख सुविधाओं का गुलाम बन कर रह गया हैं, अध्यात्म से दूर होता जा रहा है, जिसके परिणाम स्वरूप भिन्न-भिन्न बीमारियों से ग्रस्त होता जा रहा है जैसे: अवसाद, तनाव ,चिंता,मधुमेह, उच्च- रक्तचाप, मोटापा, कैंसर, गैस, कब्ज आदि कई बीमारियों से ग्रस्त हो गया है इन उपरोक्त व्याधियों से मनुष्य को यदि मुक्ति प्राप्त करनी है तो योग के भिन्न-भिन्न क्रियाओं का अभ्यास करें। यम ,नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि पतंजलि के अष्टांग योग को अपनाएं जिससे अंतःकरण (मन ,बुद्धि, चित्त ,अहंकार) शुद्ध होगा, तथा चित्त की वृत्तियां स्थिर होकर प्रसन्न रहेगी, व्यक्ति पुनः अपने स्वास्थ्य की ओर लौट आएगा।
अष्टांग योग के आठ अंग मनुष्य जीवन में क्यों आवश्यक है:
• यम और नियम
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यम और नियम का पालन करना अति आवश्यक है खासकर बालक को, क्योंकि जब वह यम और नियम का पालन करेंगे तभी वह देश के जिम्मेदार नागरिक बन पाएंगे। वही इसके विपरीत देखा जाता है कि जिस बालक में अनुशासन, कर्तव्य-निष्ठा, सद्कर्म, सत्यनिष्ठा ,अस्तेय, तप, स्वाध्याय आदि चीजों का अभाव रहता है, उनके जीवन में असफलता की लकीरें खिंची चली आती है, जो आगे चलकर बालक को मानसिक स्वास्थ्य पर इसका असर पड़ता है और यह किसी भी देश की महत्वपूर्ण समस्या है परिणामस्वरूप किसी भी राष्ट्र की उन्नति और विकास में बालक का अहम योगदान रहता है, बालक ही राष्ट्र का भविष्य होते है। अतः इसके लिए परिवार,माता-पिता, गुरुजनों ,को दायित्व का निर्वाह करना होगा, बालक के मस्तिष्क में यम और नियम का बीज बोना होगा।अतः इससे स्पष्ट होता है कि यम और नियम का योगदान, व्यक्ति ,समाज, राष्ट्र के लिए बहुत ही आवश्यक है।
• आसन और प्राणायाम
आज वर्तमान समय में अनेक ऐसी बीमारियां का जन्म हो चुका है जो मनुष्य को विनाश के कगार पर ले जा रही है और अभी हाल ही में कोरोना जैसी महामारी का जन्म हुआ है जो पूरा विश्व को तबाह करके रख दिया है, लाखों- लाख व्यक्तियों की जाने जा चुकी है,लोग बहुत दिनों से घरों में बंद रहकर तनाव और अवसाद से घिर चुके हैं ,डॉक्टरों का कहना है कि यह वायरस सबसे ज्यादा उन्हीं को संक्रमित कर रही है जिनका रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है, तथा डॉक्टर वैक्सिन बनाने में कड़ी मेहनत कर रहे हैं, इसी बीच इन समस्याओं का समाधान में आसन और प्राणायाम काफी सहायक साबित हो रहा है,जिससे कि रोग प्रतिरोधक क्षमता का शरीर में विकास होता है जिसके अंतर्गत श्वसन तंत्र में सुधार होता है, फेफड़ों की मजबूती मिलती है परिणाम स्वरूप वायरस जनित रोग शरीर में निष्प्रभावी होता है इसके साथ ही साथ मानसिक विकार भी दूर होता है, मन स्थिर रहता है परिणाम स्वरूप तनाव और अवसाद जैसी बीमारी को दूर किया जा सकता है।

• प्रत्याहार ,धारणा ,ध्यान और समाधि
व्यक्ति जीवन में प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि अपना कर सिद्धियां प्राप्त कर सकता है, इतिहास से लेकर वर्तमान तक जनमानस के लोक कल्याण में जितने भी महापुरुष का जन्म हुआ है इस धरती पर वह इन प्रत्याहार, धारणा ध्यान और समाधि से भलीभांति परिचित हुए हैं जैसे-: स्वामी विवेकानंद, स्वामी शिवानंद, स्वामी सत्यानंद सरस्वती, या वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन इन लोगों ने अपनी अंतःकरण तथा चेतना का द्वार खोल कर अपने अंदर ज्ञान का एक दीपक जलाएं और इस दीपक से पूरे संसार को रोशनी दिए, परिणाम स्वरूप वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इन सभी से प्रेरित होकर लोग अपने चेतना को जागृत कर अपने जीवन में अच्छे-अच्छे कार्य कर रहे हैं, चाहे वह एक अच्छा डॉक्टर, एक अच्छे वैज्ञानिक, एक अच्छे शोधकर्ता इत्यादि ।


नमो नारायण

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