Thursday, 14 November 2024

भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक मिथिलांचल का सामा चकेवा : गुड़िया झा

भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक मिथिलांचल का सामा चकेवा : गुड़िया झा

भाई-बहन के परस्पर प्रेम को समर्पित सामा चकेवा बिहार के मिथिलांचल में कार्तिक पूर्णिमा के दिन धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्योहार को मनाने के पीछे यह भावना है कि भाई हर परेशानी में कवच बनकर बहन की रक्षा के लिए आगे आएंगे।  
कहने को तो सामा चकेवा कच्ची मिट्टी से बनाया जाता है, लेकिन इसमें भाई-बहन के स्नेह की खुशबू वर्षों से महकती चली आ रही है।
1 छठ से शुरू होती है तैयारी।
सामा चकेवा बनाने की तैयारी छठ में खरना के दिन से शुरू होती है। उसी दिन मिट्टी को गूंथ कर उससे हर तरह की आकृतियां जैसे- रंग-बिरंगी चिड़ियां, सिरी सामा, चुगला, छोटी-छोटी टोकरियां आदि बनाने का काम शुरू हो जाता है। रोज शाम को इसे आसमान से गिरने वाली ओस की बूंदों में थोड़ी देर रखा जाता है। उसके बाद सभी को धूप में अच्छी तरह सुखाने के बाद देवउठनी एकादशी के दिन उन पर चावल के आंटे से सफेद रंग में रंग कर तरह-तरह के रंग चढ़ाए जाते हैं। इसमें नई फसल का चूरा और गुर सामा को भोग लगाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन बहनें रात्रि में कुल देवी-देवता के समक्ष प्रणाम कर पान के पत्तों को आंचल में रख कर सिरी सामा का एक-दूसरे से आदान-प्रदान करती हैं। उसके बाद जोते हुए खेत में चुगला को जलाने के बाद सभी मिलकर वहां सामा खेलती हैं तथा भाइयों को भी तोड़ने के लिए देती हैं। 
इसमें सिरी सामा जहां पूजनीय हैं, वही चुगला विभाजनकारी शक्तियों का प्रतीक है। इसमें चुगला को जलाने का तात्पर्य यह है कि भाई-बहन के आपसी प्रेम में तीसरा कोई अड़चन ना आये।
2 पौराणिक मान्यता।
सामा भगवान श्री कृष्ण की बेटी है। वे मुनि के आश्रम में रहती थीं। एक दिन वे बिना किसी को कुछ बताए आश्रम से चली गईं।शरद ऋतु के आरंभ होते ही बहुत सी रंग-बिरंगी चिड़ियां मिथिलांचल की तरफ चली जाती  हैं। सामा भी उन्हीं रंग-बिरंगी चिड़ियों को देखने के लिए मिथिलांचल चली गईं। मुनि ने उन पर आरोप लगाया कि वे अच्छी चरित्र की नहीं हैं। इसलिए बिना बताए ही चली गईं। मुनि ने उन्हें शाप दे दिया कि वे भी उन चिड़ियों के जैसी हो जाएंगी। मुनि के शाप से सामा चिड़ियां बन गईं। सामा के भाई ने मुनि के शाप से उन्हें मुक्त कराया। तभी तो महिलाएं जब सामा खेलती हैं, तो कुछ सामा को तोड़ने के लिए अपने भाइयों को देती हैं।
खेतों में अभिनय की यह प्रक्रिया सम्पन्न होने का तात्पर्य है- उपज में बढ़ोतरी।
3 सामा के गीतों में स्नेह की खुशबू आती है।

"गाम के अधिकारी हमर भैया हो,
 भैया हाथ दस पोखरी खनाय दिअ,चंपा फूल लगायब हो"
बहन आज भी भाई से किसी कीमती चीज की मांग नहीं करती। वे बस इतना कहती हैं कि आप गांव घर के अधिकारी हैं। आप मुझे दस हाथ की पोखरी यानी एक छोटा सा तालाब ही बनवा दीजिये। मैं उसमें चंपा फूल लगाउंगी।
"भैया लोढायब भौजो हार गांथू हे, सेहो हार पहिरत बहिनों, साम चकेवा खेलब"
बहन को अपने भाई-भाभी से इतना प्यार है कि वे कहती हैं कि भैया इस फूल को इकट्ठा करेंगे और भाभी उनका हार यानी माला बनाएंगी। जिसे बहनें पहन कर सामा चकेवा खेलेंगी।