Friday, 29 November 2024

हमारी ही मुठ्ठी में आकाश सारा" : गुड़िया झा

"हमारी ही मुठ्ठी में आकाश सारा" : गुड़िया झा

प्रत्येक बच्चा जन्म से ही विजेता होता है। वह अपने कुछ विशेष गुणों के साथ जन्म लेता है। थोड़े बड़े होने के बाद उसके सॉफ्टवेयर में छेड़छाड़ या तो घर में की जाती है या फिर स्कूल में। जब वह एक साल का होता है तो हम उसे एक-एक शब्द बोलना सिखाते हैं कि बेटा बोलो। लेकिन जब वह थोड़ा बड़ा होकर अपने मन की बात बोलना चाहता है, तो हम कहते हैं कि चुपचाप बैठो। तो फिर उसे बोलना क्यों सिखाया?   हर बार उसके कानों में यही बोला जाता है कि यह तुमसे नहीं होगा, तुम नहीं कर पाओगे। उसे उठने, बैठने और सांस लेने के लिए भी हमारे परमिशन की जरूरत होती है। नतीजा यह होता है कि हम भी उनकी क्षमताओं को पहचानना भूल जाते हैं। हर बार नकारात्मकता बच्चे के दिमाग में अपना घर बना लेती है।
अगर उनके लिए अनुशासन जरूरी है, तो खुलकर जीना भी जरूरी है। 

1 मित्रवत बने रहें।
परिवार बच्चों की पहली पाठशाला होती है और अभिभावक पहले गुरू। सबसे पहले तो बच्चे हमारे पास खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। उनके समुचित विकास के लिए यह जरूरी है कि हम उनके दोस्त भी बने रहें। इससे वो अपनी हर छोटी-बड़ी समस्याएं हमें बताएंगे।  जिसका समय रहते हम समाधान भी कर सकते हैं। क्योंकि जब हम बच्चों से मित्रवत नहीं होंगे, तो वे अपनी बातों को हमसे छुपायेंगे। बाहर उनके साथ जब बड़ी समस्या होगी, तो हमारे खुद और बच्चों के लिए भी बड़ी परेशानी बन सकती है।

2 काम की बात पर टिके रहें।
बच्चे को अगर स्वतंत्रता जरूरी है, तो उसे खुद के प्रति जिम्मेदार बनाना भी जरूरी है। इसी से वे बहुत कुछ सीख भी पाएंगे। उन्हें उनकी उम्र के हिसाब से छोटे कार्य जैसे- अपनी पुस्तकें और कॉपियों को संभालकर रखना, अगले दिन स्कूल के लिए रूटीन के हिसाब से बैग तैयार करना, पानी लेना, जूतों में पॉलिश करना, छुट्टी के दिनों में घर के कामों में भी थोड़ी मदद करना, सबसे मिलकर रहना आदि ऐसे कार्य हैं जो बच्चों को सिखाते हैं कि शिक्षा के साथ-साथ व्यवहारिक शिक्षा भी जीवन में उतनी ही ज्यादा आवश्यक है।

3 जबरदस्ती सजा मत दें।
जब भी हमारे ऊपर घर या बाहर का तनाव होता है, तो अनावश्यक रूप से अपना गुस्सा बच्चों पर निकाल देते हैं। जबकि इसमें उस मासूम का कोई दोष नहीं होता है।  इतना ही नहीं एक मामूली सी गलती पर भी उसे कड़ी फटकार लगाते हैं। इससे उनके कोमल मन पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है।  इसकी जगह हम उन्हें उनकी गलतियों से सीखना समझाएंगे, तो इससे उनपर अनुकूल प्रभाव होगा। बच्चे सजा से नहीं प्यार से हमारे करीब होते हैं।

Sunday, 24 November 2024

जो रहेगा व्यस्त वह स्वस्थ और मस्त भी : गुड़िया झा

जो रहेगा व्यस्त वह स्वस्थ और मस्त भी : गुड़िया झा

कहा जाता है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। इसलिए व्यस्त रहना भी जरूरी है। खाली बैठने से कई अनावश्यक बातें दिलों-दिमाग में आने लगती हैं। जिससे कई प्रकार की चिंताएं उत्पन्न होती हैं। इसके कारण कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इन सबका सबसे ज्यादा असर व्यक्ति के स्वास्थ्य पर पड़ता है। स्वास्थ्य प्रभावित होने का मतलब है कई प्रकार की बीमारियों को आमंत्रित करना। जब हमारा स्वास्थ्य ही ठीक नहीं रहेगा तो हम अपनी जिंदगी को जिंदादिली से कैसे जी सकते हैं।

1 रूचियों को जगाएं 
जिनको जिस कार्य में रूचि है, उसे वह पूरी तन्मयता के साथ संपन्न करें। इसका परिणाम यह होगा कि हमारे भीतर अपने काम के प्रति समर्पण की भावना उत्पन्न होगी तथा मस्तिष्क अनावश्यक बातों में उलझने के बजाय आवश्यक बातों में व्यस्त रहेगा। बच्चे, युवक, बुजुर्ग सभी को अपनी रूचि और क्षमता के अनुसार अपनी दिनचर्या तय करनी चाहिए।

2 छोटे-मोटे कामों में व्यस्त हों।
बच्चों को छोटे-छोटे कार्यों की जिम्मेदारी दी जा सकती है। जैसे- स्कूल बैग को रूटीन के अनुसार व्यवस्थित रूप से रखना, कपड़े फोल्ड कर एक जगह करना आदि।
घर में जो अनावश्यक चीजें हैं, उन्हें एक-एक कर हटा दें। घर के बाहर कहीं छोटी सी जगह में भी क्यारी बनाकर फूलों के पौधे लगाए जा सकते हैं। पेंटिंग बनाना, क्राफ्ट बनाना, लिखना, संगीत सीखना, अपनी पसंद की किताबें पढ़ना आदि कई ऐसे कार्य हैं जिनमें रूचि के साथ रोजगार के भी पर्याप्त साधन हैं।

3 बुजुर्गों के लिए।
रिटायरमेंट के बाद और बच्चों के बाहर रहने के कारण अधिकांश बुजुर्ग खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं। अनावश्यक सोचने से भी उन्हें कई तरह की शारीरिक परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है। उनके लिए यह बेहतर है कि वे अपने आसपास के पार्क में थोड़ी देर टहलें। इससे वहां उनकी उम्र के भी कई साथी भी मिल सकते हैं। वे चाहें तो किशोरों को पढ़ाई से संबंधित और अपने जीवन के अनुभवों से अवगत कराकर उन्हें भी प्रेरित कर सकते हैं। खाली समय में अपनी डायरी और कुछ किताबें भी लिख सकते हैं। भजन, गजल, और अपनी पसंद की फिल्मों का भी आनंद लिया जा सकता है।

Thursday, 14 November 2024

भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक मिथिलांचल का सामा चकेवा : गुड़िया झा

भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक मिथिलांचल का सामा चकेवा : गुड़िया झा

भाई-बहन के परस्पर प्रेम को समर्पित सामा चकेवा बिहार के मिथिलांचल में कार्तिक पूर्णिमा के दिन धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्योहार को मनाने के पीछे यह भावना है कि भाई हर परेशानी में कवच बनकर बहन की रक्षा के लिए आगे आएंगे।  
कहने को तो सामा चकेवा कच्ची मिट्टी से बनाया जाता है, लेकिन इसमें भाई-बहन के स्नेह की खुशबू वर्षों से महकती चली आ रही है।
1 छठ से शुरू होती है तैयारी।
सामा चकेवा बनाने की तैयारी छठ में खरना के दिन से शुरू होती है। उसी दिन मिट्टी को गूंथ कर उससे हर तरह की आकृतियां जैसे- रंग-बिरंगी चिड़ियां, सिरी सामा, चुगला, छोटी-छोटी टोकरियां आदि बनाने का काम शुरू हो जाता है। रोज शाम को इसे आसमान से गिरने वाली ओस की बूंदों में थोड़ी देर रखा जाता है। उसके बाद सभी को धूप में अच्छी तरह सुखाने के बाद देवउठनी एकादशी के दिन उन पर चावल के आंटे से सफेद रंग में रंग कर तरह-तरह के रंग चढ़ाए जाते हैं। इसमें नई फसल का चूरा और गुर सामा को भोग लगाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन बहनें रात्रि में कुल देवी-देवता के समक्ष प्रणाम कर पान के पत्तों को आंचल में रख कर सिरी सामा का एक-दूसरे से आदान-प्रदान करती हैं। उसके बाद जोते हुए खेत में चुगला को जलाने के बाद सभी मिलकर वहां सामा खेलती हैं तथा भाइयों को भी तोड़ने के लिए देती हैं। 
इसमें सिरी सामा जहां पूजनीय हैं, वही चुगला विभाजनकारी शक्तियों का प्रतीक है। इसमें चुगला को जलाने का तात्पर्य यह है कि भाई-बहन के आपसी प्रेम में तीसरा कोई अड़चन ना आये।
2 पौराणिक मान्यता।
सामा भगवान श्री कृष्ण की बेटी है। वे मुनि के आश्रम में रहती थीं। एक दिन वे बिना किसी को कुछ बताए आश्रम से चली गईं।शरद ऋतु के आरंभ होते ही बहुत सी रंग-बिरंगी चिड़ियां मिथिलांचल की तरफ चली जाती  हैं। सामा भी उन्हीं रंग-बिरंगी चिड़ियों को देखने के लिए मिथिलांचल चली गईं। मुनि ने उन पर आरोप लगाया कि वे अच्छी चरित्र की नहीं हैं। इसलिए बिना बताए ही चली गईं। मुनि ने उन्हें शाप दे दिया कि वे भी उन चिड़ियों के जैसी हो जाएंगी। मुनि के शाप से सामा चिड़ियां बन गईं। सामा के भाई ने मुनि के शाप से उन्हें मुक्त कराया। तभी तो महिलाएं जब सामा खेलती हैं, तो कुछ सामा को तोड़ने के लिए अपने भाइयों को देती हैं।
खेतों में अभिनय की यह प्रक्रिया सम्पन्न होने का तात्पर्य है- उपज में बढ़ोतरी।
3 सामा के गीतों में स्नेह की खुशबू आती है।

"गाम के अधिकारी हमर भैया हो,
 भैया हाथ दस पोखरी खनाय दिअ,चंपा फूल लगायब हो"
बहन आज भी भाई से किसी कीमती चीज की मांग नहीं करती। वे बस इतना कहती हैं कि आप गांव घर के अधिकारी हैं। आप मुझे दस हाथ की पोखरी यानी एक छोटा सा तालाब ही बनवा दीजिये। मैं उसमें चंपा फूल लगाउंगी।
"भैया लोढायब भौजो हार गांथू हे, सेहो हार पहिरत बहिनों, साम चकेवा खेलब"
बहन को अपने भाई-भाभी से इतना प्यार है कि वे कहती हैं कि भैया इस फूल को इकट्ठा करेंगे और भाभी उनका हार यानी माला बनाएंगी। जिसे बहनें पहन कर सामा चकेवा खेलेंगी।