Wednesday 31 July 2024

बच्चे मन के सच्चे" : गुड़िया झा

"बच्चे मन के सच्चे" : गुड़िया झा

प्रत्येक बच्चा जन्म से ही विजेता होता है। वह अपने कुछ विशेष गुणों के साथ जन्म लेता है। थोड़े बड़े होने के बाद उसके सॉफ्टवेयर में छेड़छाड़ या तो घर में की जाती है या फिर स्कूल में। जब वह एक साल का होता है तो हम उसे एक-एक शब्द बोलना सिखाते हैं कि बेटा बोलो। लेकिन जब वह थोड़ा बड़ा होकर अपने मन की बात बोलना चाहता है, तो हम कहते हैं कि चुपचाप बैठो। तो फिर उसे बोलना क्यों सिखाया?   हर बार उसके कानों में यही बोला जाता है कि यह तुमसे नहीं होगा, तुम नहीं कर पाओगे। उसे उठने, बैठने और सांस लेने के लिए भी हमारे परमिशन की जरूरत होती है। नतीजा यह होता है कि हम भी उनकी क्षमताओं को पहचानना भूल जाते हैं। हर बार नकारात्मकता बच्चे के दिमाग में अपना घर बना लेती है।
अगर उनके लिए अनुशासन जरूरी है, तो खुलकर जीना भी जरूरी है। 

1 मित्रवत बने रहें।
परिवार बच्चों की पहली पाठशाला होती है और अभिभावक पहले गुरू। सबसे पहले तो बच्चे हमारे पास खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। उनके समुचित विकास के लिए यह जरूरी है कि हम उनके दोस्त भी बने रहें। इससे वो अपनी हर छोटी-बड़ी समस्याएं हमें बताएंगे।  जिसका समय रहते हम समाधान भी कर सकते हैं। क्योंकि जब हम बच्चों से मित्रवत नहीं होंगे, तो वे अपनी बातों को हमसे छुपायेंगे। बाहर उनके साथ जब बड़ी समस्या होगी, तो हमारे खुद और बच्चों के लिए भी बड़ी परेशानी बन सकती है।

2 काम की बात पर टिके रहें।
बच्चे को अगर स्वतंत्रता जरूरी है, तो उसे खुद के प्रति जिम्मेदार बनाना भी जरूरी है। इसी से वे बहुत कुछ सीख भी पाएंगे। उन्हें उनकी उम्र के हिसाब से छोटे कार्य जैसे- अपनी पुस्तकें और कॉपियों को संभालकर रखना, अगले दिन स्कूल के लिए रूटीन के हिसाब से बैग तैयार करना, पानी लेना, जूतों में पॉलिश करना, छुट्टी के दिनों में घर के कामों में भी थोड़ी मदद करना, सबसे मिलकर रहना आदि ऐसे कार्य हैं जो बच्चों को सिखाते हैं कि शिक्षा के साथ-साथ व्यवहारिक शिक्षा भी जीवन में उतनी ही ज्यादा आवश्यक है।

3 जबरदस्ती सजा मत दें।
जब भी हमारे ऊपर घर या बाहर का तनाव होता है, तो अनावश्यक रूप से अपना गुस्सा बच्चों पर निकाल देते हैं। जबकि इसमें उस मासूम का कोई दोष नहीं होता है।  इतना ही नहीं एक मामूली सी गलती पर भी उसे कड़ी फटकार लगाते हैं। इससे उनके कोमल मन पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है।  इसकी जगह हम उन्हें उनकी गलतियों से सीखना समझाएंगे, तो इससे उनपर अनुकूल प्रभाव होगा। बच्चे सजा से नहीं प्यार से हमारे करीब होते हैं।

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