लोहरदगा : दुनिया भर में तेजी से बदलते पर्यावरण प्रदूषण ऋतुओं में परिवर्तन कृषि वानिकी और वन उत्पादों में पड़ रहा इसका गहरा प्रभाव मानव जीवन की शैली में अत्यंत आमूल चूल परिवर्तन के लिए विवश कर रहा है। ऐसे मे पारिस्थितिकी के साथ-साथ मानव जीवन और उनके व्यवहार पर अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों का ध्यान उस पर केंद्रित होना स्वाभाविक है।
गुमला की भूमि आरंभ से ही यहां की जनजातीय और वनस्पतियों की विविधता के अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं को आकर्षित करती रही है।
लेकिन जब से वनस्पतियों को लेकर वर्षों से लगातार शोध कर रहे प्राध्यापक प्रसनजीत मुखर्जी कार्तिक उरांव महाविद्यालय गुमला में योगदान दिया है वनस्पति विज्ञान के छात्रों और इससे रुचि रखने वालों की जिज्ञासा को तृप्तकर उनके अरमानों पर पंख लगाने का भरपूर प्रयास किया है ।
यूं तो प्रोफेसर मुखर्जी ने इस दिशा में अनेक पहल किए हैं लेकिन इथेनॉबॉटनी एनवायरमेंटल स्टेनबिलिटी एंड मल्टीडिसिंप्निरी रिसर्चस पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन करने की एक महत्वाकांक्षी पहल गुमला ही नहीं रांची विश्वविद्यालय और झारखंड प्रदेश के लिए एक माइल स्टोन होगा। इस सम्मेलन में जनजातीय जनजीवन जैव विविधता पर्यावरण संरक्षण पर्यावरण क्षति ऋतु परिवर्तन प्रदूषण खनन और उसका प्रभाव कृषि वानिकी एवं वन उत्पाद पारितंत्र जनजातीय अधिकारों का संरक्षण आदि विषयों पर तथ्य पूर्ण चर्चा होगी ।इस सम्मेलन में देश-विदेश के 100 से अधिक वैज्ञानिक और शोधकर्ता भाग लेंगे।
इसकी जानकारी देते हुए इस सम्मेलन के आयोजन सचिव डॉक्टर प्रसनजीत मुखर्जी ने कहा कि इसमें भाग लेने वाले वैज्ञानिक अथवा शोधार्थी नवंबर तक अपना संक्षिप्त सार mailcser@ gmail.com में भेज सकते हैं। इस सम्मेलन के लिए रांची की संस्था सेंटर फॉर सोशल एंड एनवायरमेंटल रिसर्च ने सहयोग का पूरा आश्वासन दिया है। इस मौके पर इथेनोबॉटनी विषय पर एक कार्यशाला भी आयोजित की जाएगी जिसमें स्थानीय आयुर्वेद विधि द्वारा उपचार कर रहे चिकित्सक भी हिस्सा ले सकेंगे। मौके पर जनजातीय भोजन बनाने की प्रतियोगिता एवं औषधीय पौधों की प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी। इस अवसर पर उन्होंने कॉन्फ्रेंस ब्रोशर का भी विमोचन किया गया। इसकी सफलता के लिए कार्तिक उरांव महाविद्यालय के प्राचार्य ए जे खलखो डॉ दिलीप प्रसाद डॉ सतीश गुप्ता प्रोफेसर टेटरु तिर्की डॉ सीमा डॉ कंचन और डॉक्टर संजय भोक्ता तैयारी शुरू कर दी है।
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