अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस पर विशेष :: गुड़िया झा
दुनिया के सभी देशों और उनके नागरिकों के बीच शांति एवं सद्भाव कायम रखने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 21 सितंबर के दिन विश्व शांति दिवस के रूप में मनाया जाता है।
अहिंसा और संघर्ष विराम के माध्यम से विश्व में शांति कायम रखना ही इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य है।
सफेद कबूतर को शांति का दूत माना जाता है। अतः दुनियाभर में शांति का संदेश पहुंचाने के लिए विश्व शांति दिवस पर सफेद कबूतरों को उड़ाकर शांति का पैगाम दिया जाता है।
इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र से लेकर अलग-अलग संगठनों, स्कूलों और कॉलेजों में शांति दिवस के अवसर पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
जीवन का प्रमुख लक्ष्य शांति और खुशी प्राप्त करना है जिसके लिए मनुष्य निरंतर कर्मशील रहता तो है, लेकिन शांति के लिए प्रयासरत नहीं।
पूरा विश्व समस्त देशों के बीच शांति स्थापित करने के लिए प्रयासरत है।
इसके लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा कला, साहित्य, सिनेमा तथा अन्य क्षेत्रों की मशहूर हस्तियों को शांति दूत के तौर पर नियुक्त किया जाता है।
पंडित नेहरू द्वारा विश्व शांति का संदेश देने के लिए 5 मूल सिद्धांत दिए गए थे, जिन्हें पंचशील सिद्धान्त कहा गया है।
इसके अलावा कुछ छोटी और महत्वपूर्ण बातें भी हैं जिसका अपने दैनिक जीवन में अमल कर भी हम शांति कायम रख सकते हैं।
1. सामाजिक बनने की कला।
शांति को बढावा देने में सामाजिकता का भी महत्वपूर्ण योगदान है। अकेला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज के बिना इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। अपने आसपास लोगों के सुख-दुख में शामिल होना, जरूरत पड़ने पर उनके काम आना और उनसे सलाह मशवरा लेना भी एक- दूसरे को जोड़ने और शांति स्थापित करने का कार्य करता है। तो जाहिर सी बात है कि जहां हम अपनी ओर से योगदान देंगे, वहां पर शांति की शुरूआत अवश्य होगी।
कई बार हम इसलिए भी पिछड़ जाते हैं कि हम पहल नहीं करना चाहते हैं। पहल करने के आगे हमारा ईगो आकर खड़ा हो जाता है जो कि शांति कायम रखने में एक बहुत बड़ी बाधा का काम करता है।
2. अनावश्यक प्रतिक्रिया देने से बचें।
कई बार अशांति का माहौल तब बनता है जब छोटी-छोटी बातों में हम अनावश्यक प्रतिक्रिया देना शुरू कर देते हैं और आवेश में आकर कुछ ऐसा बोल जाते हैं कि सामने वाले के मन में एक गांठ बन जाती है जो आपस में दूरी बढाने का काम करती है। बस, यहीं से शुरू हो जाती है अशांति की प्रतिक्रिया।
थोड़ा सा धैर्य और मौन के बल पर कहीं भी शांति कायम रखी जा सकती है। ऐसा नहीं है कि जरूरत पड़ने पर बोला न जाये लेकिन शब्दों की मर्यादा का भी ध्यान रखा जाये तो बात बिगड़ने से रोकी जा सकती है।
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