कुछ किए बिना ही जय जयकार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती : गुड़िया झा
साहस एक ऐसा गुण है जिसे पवित्र धर्म पुस्तक गीता के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति का दैवीय गुण माना गया है। हम अपने सुरक्षित दायरे से बाहर निकल कर कार्य करने से डरते हैं। दिल कुछ कहता है और दिमाग कुछ और। हमें हारने का, रिश्ते छुटने का, जो हाथ में है उसे खोने का डर सताता है, यहां तक कि सही बात को किसी के सामने बोलने से भी हमें डर लगता है कि पता नहीं सामने वाला कहीं बुरा ना मान जाए। लेकिन सही बात सही नियत से कही जाए तो परिणाम भी बेहतर होते हैं।
1 शुरूआत करने में देर कैसी।
जब हम भविष्य में होने वाले भयानक परिणामों के बारे में कल्पना शुरू करते हैं और यह हमारे लिए बहुत वास्तविक जैसा लगने लगता है। इस तरह से हम बेवजह डर के कारण किसी भी तरह के कार्य करने के लिए अपने कदम आगे नहीं बढ़ा पाते हैं।
दूसरी तरफ भयभीत होने के बावजूद लक्ष्य प्राप्ति में लगे रहना साहस है। अगर हम यह मान लें कि 99.9 प्रतिशत डर हमारे भीतर की उपज है जिसे हमने ही बढ़ावा दे रखा है, तो हम उस डर से बाहर निकल सकते हैं।
एक बार जब हम यह महसूस करते हैं कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला है। यह सिर्फ हमारी कल्पना में हो रहा है और हम इन सबका मुकाबला कर उसे दूर कर सकते हैं। आगे बढ़ने के लिए सबसे पहले हमें अपने भीतर के डर को भी भगाना होगा।
2 डरें नहीं बढ़ते रहें।
अपने जीवन में बदलाव के लिए कुछ चुनौतियों का सामना करना भी जरूरी है। तभी तो हमें अपनी वास्तविक क्षमता का पता चलता है। क्योंकि डर के प्रभाव में हारकर बैठने के बजाय अपने मन को मजबूत कड़ी बनाते हुए आगे बढ़ें। क्योंकि इस जमीन पर डर कर छिपने की कोई जगह नहीं है। किसी की भी समय और परिस्थितियां हमेशा एक जैसी नहीं होती हैं। अब क्या होगा यह सोचने की बजाय इससे अच्छा और कैसे कर सकते हैं इस पर ध्यान दिया जाए तो आगे के रास्ते भी मिलते हैं। कई बार अगर असफलता हाथ भी लगी तो उससे सीखें कि आखिर कमी कहां रह गई। फिर से खड़े हों और चलते रहें।
3 अकेले चलने से घबराएं नहीं।
इस बात में कोई संदेह नहीं कि जब हम अपने कदम अकेले आगे बढ़ा रहे होते हैं तो घबराहट होती है। यही वह समय होता है जब हमारी परीक्षा होती है। इस परीक्षा में धैर्य रूपी जवाब के साथ संयमित हो कर चलते रहें। अगर सफलता छोटी भी मिली तो अनुभव की सीख उससे बड़ी मिलेगी।
दूसरों के जीवन से अपनी तुलना करने की भूल ना करें। हमारे पास जो भी है वह ईश्वर ने हमारे भले के लिए ही दिया है। जरा सोचें कि जब कोई छोटा बच्चा किसी भी ऐसी चीज के लिए जिद करता है जो उसके हित में नहीं है। फिर भी उसके माता पिता उसकी अनावश्यक जिद को पूरी नहीं करते हैं। तो फिर जिस ईश्वर ने हमें ये जीवन दिया है वो हमें गलत स्थिति नहीं दे सकता। अगर ऐसा है भी तो जरूर हमारे लिए भी उसमें कुछ अच्छा ही होगा।
No comments:
Post a Comment