खुद को बदलना है तो बदला लेना छोड़ें : गुड़िया झा
"छोड़ो कल की बातें कल की बात पुरानी, नए दौर में लिखेंगे मिलकर नई कहानी"।
मानव मन होता ही इतना चंचल है कि वो सबकुछ अपने तरीके से बदलना चाहता है। बदलते परिवेश में सामाजिक दायरा हो या अपने कार्यस्थल में रोजमर्रा की जिंदगी में भी नकारात्मकता आसपास ना हो, यह संभव ही नहीं है। इसके लिए हर समय परेशान रहने या अपना गुस्सा किसी निर्दोष पर निकालने से कोई फायदा भी नहीं है। इसका सबसे अच्छा तरीका यह है कि खुद ही अपने भीतर बदलाव लाकर खुश रहा जाए। क्योंकि हमें अपने कार्य के माध्यम से चैंपियन के रूप में चमकना है।
1 व्यस्त रहें, मस्त रहें और स्वस्थ रहें।
अगर हम अपने कार्यों में व्यस्त रहेंगे तो फिर हमारा ध्यान नकारात्मकता की तरफ नहीं जा सकता है। फिर भी किसी कारणवश ऐसी स्थिति से सामना करना ही पड़े तो माहौल को देखकर थोड़ा समझना की वास्तविकता क्या है, उसके बाद ही निर्णय लें। बहुत ज्यादा प्रतिक्रिया देने से अपने समय और ऊर्जा दोनों को ही बर्बाद करना है।
यह भी सही है कि हर समय गलत पर चुप हो जाना सही नहीं।
सीमित और शालीन तरीके से कहना भी जरूरी है।
बीती हुई बातों को ज्यादा लंबे समय तक अपने दिमाग में न रखें। जितनी जल्दी हो सके उसे अपने मन से बाहर निकालकर हम फ्रेश महसूस करते हैं।
2 सेहत का ध्यान भी जरूरी।
लगातार काम की थकान या अनावश्यक सोच और चिंता हमारी सेहत को बिगाड़ भी सकती है। जिस बात से हमारा खुद का भला ना हो ऐसी बातों को अपने मन में पालकर क्या फायदा?
जान है तो जहान है। समय पर भोजन, भरपूर पानी का सेवन, व्यायाम, ध्यान, अच्छे दोस्तों का साथ, अपना मनपसंद संगीत सुनना, मूवी देखना, लिखना आदि ऐसे कार्य हैं जो हमें फालतू बातों से दूर रखती हैं।
3 बदले की भावना से दूर रहें।
जीवन में कई ऐसे मोड़ भी आते हैं जब बिना कारण ही हमें तीखी आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ता है। इससे मन को बहुत आहत पहुंचती है। कई बार हम भूल भी जाते हैं, तो वहीं कई बातों को दिल से लगा बैठते हैं।
इसके अनुकूल जब हम किसी के लिए भी अपने मन में बदले की भावना नहीं रखते हैं, तो बहुत ही सुकून महसूस होता है। यही सुकून हमें आगे कार्य करने के लिए भी प्रेरित करती है। हमारा मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों ही बेहतर रहता है।
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