Monday, 11 April 2016

National Safe Motherhood Day :: 11th of April every year

National Safe Motherhood Day :: 11th of April every yearRanchi, Jharkhand | April | Monday | 11, 2016 :: National Safe Motherhood Day is observed on 11 April every year. The focus this year is on respectful maternity care (RMC). RMC is a universal human right that is due to every childbearing woman in every health system around the world. Women’s experiences with maternity caregivers can empower and comfort them, or inflict lasting damage and emotional trauma. While many interventions aim to improve access to skilled birth care, the quality of relationships with caregivers during maternity care has received less attention
Safe Motherhood Day aims at enforcing the strong voice that all women should have access to care and no maternal death is acceptable. Maternal death has a devastating impact not only on the family and communities, but is especially so for the surviving children. A newborn baby is more likely to die within its first two years without its mother.
Situation in India and Jharkhand
About 8.3 lakh women give birth every year In Jharkhand, of them 1726 women die during delivery (SRS 2013). The Maternal Mortality Ratio (MMR) estimates have dropped from 371 maternal deaths per 100,000 live births during 2001-03 to 208 maternal deaths per 100,000 live birth (SRS 13). In Jharkhand, highest number of deaths occur in Palamu region (302/100,000 live births) as compared to other regions of Jharkhand (AHS 2012-13).
The Government of India is committed to the Sustainable Development Goals (SDGs) which aim to bring down the maternal mortality ratio in India to 70 from the current level of 167 by 2030. It seeks to “accelerate the decline of maternal mortality” by ensuring that “all women have access to high-quality delivery care: a skilled attendant at delivery, access to emergency obstetric care in case of a complication and a referral system to ensure that those women who experience complications can reach life-saving emergency obstetric care in time”.
How can death of mothers be prevented
  • Ensure delivery in hospitals/institutions or by skilled birth attendant–
    Ensuring institutional deliveries and proper care around birth for mother and baby can avert maternal and neonatal deaths by 40%. At present only 56% deliveries are conducted in institutions (Ministry of Women & Child Development’s Rapid Survey on Child - RSOC 2013) which means 3, 70,000 mothers are still delivering at home. Making these deliveries safe by promoting institutional deliveries is most important intervention to prevent these deaths.
  • Reduce maternal anaemia and improve ante-natal care (ANC) –
    In Jharkhand, the prevalence of anaemia among women (18-59 years) is highest amongst all states at 84.5% (Clinical, Anthropometric and Biochemical survey – CAB 2014). Two-thirds of adolescent girls (15-19 years) are anaemic. Maternal anaemia is a major cause for death of mothers during delivery due to haemorrhage which in turn is most common cause of maternal deaths. It is important to ensure all pregnant women get IFA tablets and at least three ANC services during Village Health and Nutrition Days.
  • Postnatal care for mothers and newborns –
    Postnatal care (within 24-48 hours of delivery) is the most critical period as most deaths occur within this time frame. Therefore all mothers should be monitored regularly for excessive bleeding, pain and infection during this period.
  • Stop child marriages–
    Child marriage is a major indirect cause for maternal mortality because of early conception and early delivery. Girls who become pregnant as adolescents have an increased risk of death. Their babies are also at risk of infection, malnutrition and death.
  • Invest in girl’s education –
    Education is the best guarantee for preventing child marriage, empowering adolescent girls and ensuring better health.
UNICEF in Action
UNICEF has partnered with the Government of Jharkhand (GoJ) to promote simple interventions which can significantly improve maternal survival. UNICEF is committed to reduce maternal deaths in the state and has partnered with the GOJ to support training of skilled birth attendants; Village Health and Nutrition Days (VHNDs) to reach out to pregnant women in underserved areas & hard-to-reach area and community; facility based review of maternal deaths; and supplementation of iron in all age groups, especially adolescents and pregnant women.
Community participation to avert such deaths by promoting care around birth is very much essential. Newly elected PRI member can play vital role in strengthening maternal care and awareness creation for safe deliveries. All PRI members are requested to take cognizance of the maternal deaths in their panchayat and prepare a plan to reduce it.
Special gram sabha are planned from 14 April 2016 across the state to make PRIs and communities aware of the availability of Mamta Vahansin their panchayat to transport pregnant women to delivery points on time;ensure 100% registration of pregnant women in villages where institutional delivery is low and most of the deliveries occur at home; increasing awareness about the nearest delivery point where all services are given free of cost to pregnant women and infants (children below the age of 1 year).
Information was given by  Moira Dawa [  Communication Officer, Jharkhand ]



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राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस - 11 अप्रैल
राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस प्रत्येक वर्ष 11 अप्रैल को मनाया जाता है। इस वर्ष का मुख्य बिंदू सम्मानजनक मातृत्व देखभाल है। पूरी दुनिया के प्रत्येक स्वास्थ्य प्रणाली में बच्चे को जन्म देने वाली महिला को सम्मानजनक मातृत्व देखभाल का सार्वभौमिक मानव अधिकार प्राप्त है। मातृत्व देखभाल के महिलाओं के अनुभव को सशक्त और आरामदायक बनाया जा सकता है या स्थायी नुकसान और भावनात्मक आघात को कम किया जा सकता है। जबकि कई उपायों का उद्देश्य प्रसव देखभाल को बेहतर बनाना है, वहीं मातृत्व देखभाल के दौरान देखभाल करने वालों के साथ संबंधों की गुणवत्ता पर बहुत ही कम ध्यान दिया गया है।
सुरक्षित मातृत्व दिवस का उद्देश्य इस आवाज़ को बल प्रदान करना है कि सभी महिलाओं को देखभाल उपलब्ध होनी चाहिए और किसी भी जननी की मृत्यु को स्वीकार नहीं किया जा सकता। मातृ मृत्यु का बुरा प्रभाव न केवल परिवार और समाज   पर पड़ता है, बल्कि इससे सबसे ज्यादा प्रभावित बच्चे होते हैं। इस बात की काफी संभावना होती है कि बिना मां का बच्चा पहले दो वर्ष के अंदर ही दम तोड़ दे।
भारत और झारखंड में स्थिति
झारखंड में करीब 8.3 लाख महिलाएं प्रति वर्ष बच्चे को जन्म देती है, उनमें से 1,726 महिलाओं की मृत्यु प्रसव के दौरान ही हो जाती है (एसआरएस 2013)। झारखंड में मातृ मृत्यु दर में पहले की तुलना में गिरावट आई है। 2001-03 के दौरान मातृ मृत्यु की दर प्रति 1,00000 जीवित जन्मे बच्चे में 371 था, जो कि घटकर प्रति जीवित जन्मे बच्चे में 208 पर पहुंच गया (एसआरएस 2013)। झारखंड के दूसरे क्षेत्रों की तुलना में सबसे ज्यादा मृत्यु पलामू क्षेत्र में पाई गई है, प्रति 1,00000 जीवित बच्चे के जन्म में 302 महिलाओं की मृत्यु (एएचएस 2012-13)।
भारत सरकार सतत विकास लक्ष्य को लेकर प्रतिबद्ध है, जिसका लक्ष्य भारत में मातृ मृत्यु दर को 2030 तक वर्तमान दर 167 से घटाकर 70 पर लाना है। यह ‘‘मातृ मृत्यु दर में तीव्रता के साथ गिरावट’’ की मांग करता है। इसके तहत यह सुनिश्चित किया जाना है कि उच्च स्तर के प्रसव देखभाल सुविधा तक सभी महिलाओं की पहुंच होनी चाहिएः प्रसव के दौरान देखभाल करने वाली एक प्रशिक्षित सहायिका, परेशानी की स्थिति में आपात प्रसूति देखभाल की सुविधा और एक रेफरल प्रणाली जो कि आपात स्थिति में महिलाओं को जीवन रक्षक आपात प्रसूति देखभाल प्रदान कर सके।
मातृ मृत्यु को कैसे रोका जा सकता है
अस्पतालों/संस्थानों में प्रसव को सुनिश्चित कर या प्रशिक्षित सहायक द्वारा प्रसूति देखभाल को सुनिश्चित कर - संस्थागत प्रसव और मां एवं बच्चे की समुचित देखभाल को सुनिश्चित कर मां और बच्चे की मृत्यु को 40 प्रतिशत तक रोका जा सकता है। वर्तमान में संस्थानों में केवल 56 प्रतिशत प्रसव हो रहे हैं ( महिला एवं शिशु विकास विकास द्वारा किया गया रैपिड सर्वे आॅन चाइल्ड - आरएसओसी 2013) इसका मतलब हुआ कि 3,70,000 महिलाओं का प्रसव घर पर हो रहा है। मातृ मृत्यु को रोकने और प्रसव को सुरक्षित बनाने के लिए यह अति आवश्यक है कि प्रसव अस्पतालों या संस्थानों में हो।
महिलाओं में एनीमिया की दर में कमी लाना और प्रसव पूर्व देखभाल को बेहतर बनाना -झारखंड में, 18-59 वर्ष की महिलाओं में एनीमिया का प्रसार 84.5 प्रतिशत है, जो कि भारत के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक है (क्लिनीकल, एंथ्रोपोमेट्रिक एंड बाॅयोकैमिकल सर्वे - सीएबी 2014)। दो तिहाई किशोरियां (15-19 वर्ष) एनीमिया ग्रस्त हैं। माताओं में खून की कमी प्रसव के दौरान उनकी मृत्यु का प्रमुख कारण है। प्रसव के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव एनीमिया ग्रस्त महिलाओं में मृत्यु के खतरे को बढ़ा देता है। यह सुनिश्चित करना अति आवश्यक है कि गर्भवती महिलाओं को ग्राम स्वास्थ्य और पोषण दिवस के दौरान आयरन की गोली और कम से कम तीन प्रसव पूर्व देखभाल सेवा (एएनसी) प्राप्त हो। 
माताओं एवं नवजातों के लिए प्रसव पश्चात देखभाल - प्रसव पश्चात देखभाल (प्रसव के 24-48 घंटे के अंदर) अति आवश्यक है, क्योंकि अधिकांश मृत्यु इसी दौरान होता है। इसिलिए यह आवश्यक है कि इस अवधि में अत्यधिक रक्तस्राव, दर्द और संक्रमण की जांच के लिए माताओं की नियमित तौर पर निगरानी की जानी चाहिए।  
बाल विवाह पर रोक - समय से पहले गर्भवती होने और समय से पहले प्रसव के कारण बाल विवाह मातृ मृत्यु का अप्रत्यक्ष प्रमुख कारण है। लड़कियांजोकिशोरावस्थामेंगर्भ धारणकरती हैं, उनमें मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।  और उनके बच्चों को भी संक्रमण, कुपोषण और मृत्यु का खतरा रहता है।
लड़कियों की शिक्षा में निवेष -शिक्षा, बाल विवाह को रोकने, किशोरियों को सशक्त बनाने और बेहतर स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए सर्वोत्तम गारंटी है।

यूनिसेफ के कार्य
यूनिसेफ ने मातृ मृत्यु में गिरावट लाने वाले कुछ साधारण उपायों को बढ़ावा देने हेतु झारखंड सरकार के साथ साझेदारी की  है, जिससे माताओं के जीवन में काफी सुधार लाया जा सकता है। यूनिसेफ राज्य में मातृ मृत्यु में कमी लाने के लिए प्रतिबद्ध है। यूनिसेफ ने कूशल प्रसव सहायकों के प्रशिक्षण, दुर्गम क्षे़त्रों और समुदायों में रहने वाली गर्भवती माताओं तक ग्र्राम स्वास्थ्य एवं पोषण दिवस के माध्यम से स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने, मातृ मृत्यु की सुविधा के आधार पर समीक्षा करने और सभी आयु वर्गांे में आयरन गोली की पूरकता को सुनिश्चित करने में, (खासकर किशोरियों और गर्भवती महिलाओं को) सहयोग प्रदान करने के लिए झारखंड सरकार के साथ साझेदारी की है।
समुदाय की भागीदारी से इस तरह की मृत्यु को रोकने के लिए बच्चे के जन्म के दौरान माता की देखभाल को बढ़ावा देना अति आवश्यक है। नये चुने गए पंचायती राज सदस्य माताओं की देखभाल सुविधा को मजबूती प्रदान करने और सुरक्षित प्रसव के प्रति जागरूकता निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। सभी पंचायती राज सदस्यों से आग्रह है कि वे अपने पंचायत में होने वाले मातृ मृत्यु का संज्ञान लें और इसमें कमी लाने के लिए एक योजना का निर्माण करें।
14 अप्रैल 2016 से पूरे राज्य में विशेष ग्राम सभा के आयोजन की योजना बनाई गई है, ताकि प्ंाचायती राज प्रतिनिधियों और समुदायों को उनके पंचायत में गर्भवती महिलाओं को समय पर प्रसव केंद्र तक पहुंचाने के लिए ममता वाहन की उपलब्धता के बारे में जागरूक किया जा सके, कम संस्थागत प्रसव वाले गांव जहां अधिकांश प्रसव घर पर होते हैं, वहां 100 प्रतिशत पंजीकरण सुनिश्चित किया जा सके तथा गर्भवती महिलाओं और शिशुओं ( 1 वर्ष से कम उम्र का बच्चा) को सभी सुविधाएं मुफ्त प्रदान करने वाले निकटतम प्रसव केंद्रों के प्रति जागरूकता बढ़ायी जा सके।

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