Thursday, 27 February 2025

केवल अंक नहीं हो सकता बच्चों की क्षमता के मूल्यांकन का आधार : गुड़िया झा

केवल अंक नहीं हो सकता बच्चों की क्षमता के मूल्यांकन का आधार  : गुड़िया झा

हम अधिकांश परीक्षा में आने वाले अच्छे नंबरों के आधार पर किसी भी बच्चे की क्षमता का आकलन बहुत ही आसानी से करते हैं। यह बात भी सत्य है कि वर्तमान समय में अच्छे नंबरों के आधार पर ही किसी अच्छे संस्थान में नामांकन प्रक्रिया में किसी तरह की कोई बाधा नहीं आती है। लेकिन केवल इससे किसी भी बच्चे की वास्तविक क्षमता का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। परीक्षाएं शैक्षणिक अवसरों को वितरित करने का एक आवश्यक और आसान तरीका मात्र है। छात्र की प्रतिभा उसकी परीक्षा में दिखाए गए प्रदर्शन से आगे जा सकती है। यदि हमारे पास कम नंबर है, तो हम हारे हुए बिल्कुल नहीं हैं।
प्रत्येक बच्चा स्वभावतः विजेता होता है। जब उसके आस पास के बुद्धिजीवी समझे जाने वाले लोग अपनी दृष्टि से या अपनी पूर्वाग्रहता से उसका मूल्याङ्कन करने लगते हैं तभी उसे हरा हुआ या कमज़ोर समझने लगते है।  जिस तरह से हाथों की सभी उंगलियां बराबर नहीं होती हैं, उसी तरह से सभी बच्चों की योग्यता और क्षमता भी अलग अलग होती है। स्कूल और कॉलेजों में जिन बच्चों के नंबर कम आते हैं इसका मतलब यह नहीं है कि ऐसे बच्चे आगे नहीं बढ़ सकते हैं। प्रत्येक बच्चों को अपना दायरा पता होता है। उसे प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। 
मान लिया कि एक ही क्लास के कुछ बच्चों का चयन आईआईटी में हुआ। वहीं कुछ बच्चों का चयन आईआईटी में नहीं हुआ। जिन बच्चों का चयन आईआईटी में नहीं हुआ, वैसे बच्चे दूसरे, तीसरे, चौथे या अन्य क्षेत्र जिसका हमें अपनी सीमित जानकारी के कारण ज्ञान नहीं है के लिए बेहतर हो सकते हैं। सामान्य वर्ग के छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं में ज्यादा नंबर अपनी कड़ी मेहनत से लाते हैं लेकिन उन्हें प्रवेश नहीं मिल पाता है क्योंकि आरक्षण के कारण कम अंक लाने वाला छात्र प्रवेश पा लेते है। इसका अर्थ यह नहीं कि हम सामान्य वर्ग उन छात्रों को नाकारा समझें जो आईआईटी में प्रवेश नहीं पा सके।  हर एक बच्चा अपनी योग्यता और क्षमता के आधार पर अपने मुकाम को हासिल कर सकता है।  
अगर सामान्य शिक्षा के साथ-साथ रूपांतरण शिक्षा पर भी यदि ध्यान दिया जाए तो बच्चों में व्यवहारिक शिक्षा भी विकसित होगी जिससे कि वो जीवन के हर क्षेत्र में और प्रत्येक परिस्थितियों में भी सामंजस्य स्थापित करते हुए एक नए  समाज और देश के निर्माण में अपना योगदान दे सकते हैं। रूपांतरण शिक्षा से तात्पर्य वासी व्यावहारिक शिक्षा से है जो आपके सोच में परिवर्तन लाकर आपको अपने पसंद के क्षेत्र में एक बड़ी हस्ती के रूप में स्थापित करने में मदद करता है। 
दरअसल अगर हम अंक प्राप्ति पर ध्यान देने के साथ साथ छात्रों में "कमिटमेंट" शक्ति विकसित करने पर भी जोड़ दें तो देश का कायाकल्प हो सकता है।  'कमिटमेंट' यानि 'सकारात्मक प्राण पूरा करने के लिए अपने सर्वस्व न्योछावर करने का जज्जबा।  वास्तव में हम प्रत्येक संस्थाओं और संगठनों में "प्रतिबद्धता" के लिए विशेष पुरस्कार रख सकते हैं। उदाहरण के लिए- "सर्वाधिक कमिटेड छात्र",  "सर्वाधिक कमिटेड शिक्षक"। यह पुरस्कार प्रत्येक संस्था, संगठन में प्रतिवर्ष दिया जा सकता है। यहां हमें सावधानी बरतने की भी जरूरत है। हमें परिणामों के लिए भी प्रतिबद्ध होना चाहिए। अगर हम हार जाते हैं,तो हम यह सहर्ष स्वीकार करें कि जीवन एक खेल है और यहां हार-जीत लगा रहता है।

Tuesday, 11 February 2025

भारतीय संस्कृति और उनका उद्देश्य : गुड़िया झा

भारतीय संस्कृति और उनका उद्देश्य : गुड़िया झा

संस्कृतियों के मामले में हमारा देश भारत पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनाये हुए है। ये संस्कृति ही है जो विदेशों में दूर बैठे अपने बच्चों और रिश्तेदारों को अपने देश खींच लाती है घरवालों से मिलने। इन संस्कृतियों को सहेज कर रखने का कार्य भी हमारे देश के लोगों की विशेषताओं को दर्शाती है। 
साल के बारह महीने हमेशा किसी न किसी त्योहार से आसपास आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता रहता है। त्योहार सिर्फ हमारी खुशियां ही नहीं बढाते हैं, बल्कि हमें यह भी एहसास कराते हैं कि कोई न कोई अदृश्य शक्ति है जो हर समय हम सभी की रक्षा करती है। भले ही इन शक्तियों को हम देख नहीं पाते हैं। लेकिन अध्यात्म का संदेश तो यही है कि पहले ईश्वर फिर विज्ञान । एक नजर इनके उद्देश्य पर भी।
1 हिन्दू नववर्ष।
ब्राहाण पुराण के अनुसार सृष्टि की रचना का कार्य विष्णु जी ने ब्रह्मा जी को सौंप कर रखा हुआ है और ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना जब की तो वह दिन चैत्र मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि थी। 
इसके पीछे का उद्देश्य यह है कि सभी लोग साल के पहले दिन को  एक साथ मिलकर खुशी से मनाएं और नए सिरे से शुरूआत करें अपने आने वाले बेहतर भविष्य के लिए।
2 महाशिवरात्रि।
ऐसी मान्यता है कि देवों के देव महादेव और माता पार्वती का विवाह फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को हुआ था। हर साल इस तिथि को महाशिवरात्रि बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि इससे वैवाहिक जीवन से संबंधित सभी परेशानियों से छुटकारा मिलता है साथ ही दाम्पत्य जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है। महाशिवरात्रि हमें यह भी संदेश देती है कि इस पृथ्वी पर सभी को एक समान रूप से सम्मान  मिले। तभी तो शिव जी की बारात में सभी वर्ग के लोग शामिल होते हैं।
3 होली।
यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस पर शिवजी, कामदेव और राजा लघु से जुड़ी मान्यताएं भी हैं जो होलिका दहन से जुड़ी हैं। 
यह त्योहार ऐसे समय पर आता है जब मौसम में बदलाव के कारण हम थोड़े आलसी भी होते हैं। शरीर की इस सुस्ती को दूर भगाने के लिए लोग इस मौसम में न केवल जोर से गाते हैं, बल्कि पूरे उत्साह में होते हैं।
4 अक्षय तृतीया।
मत्स्य पुराण के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन अक्षत, पुष्प, दीप आदि द्वारा भगवान विष्णु, शिव और मां पार्वती की आराधना करने से संतान भी अक्षय बनी रहती है साथ ही सौभाग्य भी प्राप्त होता है।
5 वट सावित्री व्रत।
सौभाग्य और संतान की प्राप्ति में  सहायक यह व्रत माना गया है।भारतीय संस्कृति में यह व्रत नारीत्व का प्रतीक बन चुका है। सुहागन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा अपने पति की लंबी उम्र के लिए करती हैं।
ऐसी मान्यता है कि वटवृक्ष के मूल में भगवान ब्रह्मा, मध्य में विष्णु, तथा अग्र भाग में महादेव का वास होता है। इस प्रकार वट वृक्ष के पेड़ में त्रिदेवों की दिव्य ऊर्जा का अक्षय भंडार उपलब्ध होता है।
6 रक्षा बंधन।
यह त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस भागदौड़ भरी जिंदगी में जहां सभी के पास समय का अभाव होता है। रक्षा बंधन के माध्यम से भाई बहन एक दूसरे के लिए समय निकालते हैं। इस दौरान बहनें भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधकर उनकी लंबे उम्र  की कामना करती हैं। 
वहीं भाई भी बहन के लिए सुरक्षा कवच बनकर तैयार रहते हैं।
7 हरितालिका तीज।
हिंदू परंपरा में हरितालिका तीज व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए कठोर व्रत का पालन करती हैं। 
इस दिन पूरे विधि विधान से भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा की जाती है।
8 अनंत चतुर्दशी।
अनंत चतुर्दशी का विशेष महत्व है। क्योंकि इसे भगवान विष्णु की अनंत शक्ति और उनकी निरंतरता का प्रतीक माना जाता है। 'अनंत' शब्द का अर्थ है 'जिसका कोई अंत नहीं है'।  
यह पर्व मुख्य रूप से जीवन में आने वाली कठिनाइयों और दुखों के निवारण के लिए मनाया जाता है। 
9 जितिया।
यह व्रत हर साल आशिन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस व्रत को माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और स्वस्थ जीवन की कामना के लिए करती हैं।
10 शारदीय नवरात्र। 
नवरात्र शब्द से विशेष रात्रि का बोध होता है। इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है। 'रात्रि ' शब्द सिद्धि का प्रतीक है।
भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है। इसलिए दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है। 
मनीषियों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान बनाया है। चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली तिथि) से 9 दिन अर्थात नवमी तक और इसी प्रकार ठीक 6 मास बाद आशिन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी अर्थात विजयादशमी के 1 दिन पूर्व तक।
 11 शरद पूर्णिमा।
आशिन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस तिथि पर चंद्रमा अपने पूर्ण कलाओं पर होता है। 
दूसरी मान्यता यह है कि इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी धरती पर आती हैं। पूर्णिमा पर खीर बनाने का विशेष महत्व है। 
12 दीपावली।
इसे दीपों का पर्व माना जाता है। जो अज्ञानता और नकारात्मकता  के अंधकार को दूर करने का प्रतीक है। दीपावली घर की सफाई के साथ आंतरिक शुद्धि का भी प्रतीक है, जो आत्मा की पवित्रता को दर्शाता है। 
माता लक्ष्मी की पूजा केवल भौतिक धन के लिए ही नहीं,बल्कि आत्मिक समृद्धि और शांति के लिए भी की जाती है।
13 गोवर्धन पूजा।
इस पर्व को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत की पूजा के कारण इसे गोवर्धन पूजा का नाम मिला। यह त्योहार दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है और उसका उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों की पूजा और संरक्षण का संदेश देना है।
14 भाईदूज।
भाईदूज कार्तिक मास के शुक्लपक्ष के द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला हिन्दू धर्म का पर्व है। जिसे यम द्वितीया भी कहते हैं। 
दिवाली उत्सव के अंतिम दिन आने वाला यह ऐसा पर्व है, जो भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करता है एवं बहनें अपने भाई की लंबी उम्र के लिए व्रत करती हैं और भाई भी अपनी बहन की रक्षा में सदैव आगे रहते हैं। 
15 छठ पूजा।
लोकआस्था का महापर्व छठ पूजा की तैयारी दिवाली के बाद से ही शुरू हो जाती है। धर्म शास्त्रों के अनुसार चार दिनों  तक चलने वाले उस महापर्व को परिवार और संतान की सुखद भविष्य के लिए की जाती है।
इस पर्व में प्रकृति से जुड़ी हर एक चीज जैसे- सूर्यदेव, नदी, तालाब,फल, फूल, बांस से बने सूप और डालियों में पूजन सामग्री को सजा कर छठी मईया की पूजा की जाती है। 
इस पर्व का मुख्य उद्देश्य सूर्य देवता की उपासना करना है, जो जीवनदायी ऊर्जा और प्रकाश का स्त्रोत माना जाता है। उनका पूजन हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि का संचार करता है।
इसमें पहले दिन शाम को डूबते सूर्य और दूसरे दिन सुबह उदयगामी सूर्य की उपासना की जाती है।
16 देवोत्थान एकादशी।
हमारे वेद पुराणों में मान्यता है कि दिवाली के बाद पड़ने वाले एकादशी पर देव उठ जाते हैं।यही कारण है कि इस दिन से शुभ कार्य जैसे- शादी विवाह, गृह प्रवेश आदि शुरू हो जाते हैं।भगवान विष्णु चार माह के लंबे समय के बाद योग निद्रा से जागते हैं। इसलिए इसे देवउठनी एकादशी भी कहते हैं। इसी दिन सायंकाल बेला में तुलसी विवाह का पुण्य लिया जाता है। सालीग्राम, तुलसी व शंख का पूजन होता है।
17 मकर संक्रांति।
मकर संक्रांति को फसल के मौसम की शुरूआत कहा जाता है और इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है।इसलिए मकर संक्रांति सूर्य के मकर राशि में गोचर राशि का प्रतीक है।  इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं और सर्दी घटना शुरू हो जाती है।

Saturday, 1 February 2025

Healthy mindset ; गुड़िया झा

Healthy mindset ; गुड़िया झा

अगर हमारा mind healthy  है तो जीवन के हर डिपार्टमेंट में हम    सक्रिय होते हैं। क्योंकि सारा खेल दिमाग का ही है। अपने दिमाग का सही उपयोग करके हम अपने फील्ड के बादशाह  बन सकते हैं। जिन लोगों ने इतिहास रचा है, उनका दिमाग उनके कंट्रोल में था। वे अपने दिमाग के कंट्रोल में नहीं थे। कहते हैं कि लाइट और साउंड की स्पीड सबसे तेज होती है। लेकिन दिमाग की स्पीड ने सबको पीछे छोड़ दिया है। कुछ चीजें आंखों से दूर होने के बाद भी सालों साल तक दिमाग में चलती रहती हैं। जीवन में सभी लड़ाइयां पहले दिमाग में चलती हैं, फिर मैदान में उतरती हैं। 
जिंदगी में सबसे अच्छी और सबसे बुरी बात का सबसे पहला असर हमारे दिमाग पर पड़ता है और दिमाग पर असर पड़ने से सीधा असर हमारे शरीर पर पड़ता है।  एक रिसर्च के अनुसार रिश्तों का हमारे दिमाग पर सबसे ज्यादा असर होता है। जिनके पास मजबूत रिश्ते हैं वे ज्यादा खुश रहते हैं। 
इसके अलावा कुछ झूठ इतनी शिद्दत से मान लिए जाते हैं कि वह सच लगने लगता है। फिर हमारा शरीर भी उसी तरह से काम करने लगता है। 
कुछ बातों का ध्यान रख कर हम अपनी सोच को एक मजबूत दिशा दे सकते हैं।
1 हर हाल में अच्छा सोचें।
हमारा सबसे बड़ा एकाउंट हमारा दिमाग है। इसमें हम जिस तरह की सोच डालते हैं, रिजल्ट भी उसी तरह से मिलता है। हम अपनी सोच के ही प्रोडक्ट हैं। तो क्यों न हम अच्छा ही सोचें। अपने आसपास चाहे लाख नकारात्मकता हो खुद सकारात्मक रहें। सकारात्मक लोग हमेशा ही ऊर्जावान होते हैं। वे हर बात का सशक्त अर्थ देते हैं।
2 अकेलेपन से बचें और हंसने का बहाना ढूंढें।
जहां तक संभव हो सके अपना सामाजिक दायरा बढाते रहें और हमेशा दोस्ताना माहौल बनाना भी जरूरी है। मजाक-मस्ती भी करें जिससे हंसने के मौके भी मिले। कहा जाता है कि प्रसन्नचित्त में ईश्वर का वास होता है। उदास और चिंता में बने रहने के हजार कारण है। उन्हें तलाशने की जरूरत नहीं होती है,जबकि हंसी के लिए माहौल बनाना पड़ता है। 
हम जितना ज्यादा खुश रहेंगे परेशानियां भी हमसे उतनी ही दूर रहेंगी। अपने दिमाग को कभी खाली नहीं रहने दें क्योंकि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। 
अगर किसी कारणवश अकेले रहना भी पड़े तो किताबों से दोस्ती करें।
3 अध्यात्म भी जरूरी।
अध्यात्म के बिना तो हमारा जीवन अधूरा है। आध्यात्मिक शक्ति हमें गलत रास्तों पर जाने से रोकती है। जीवन में अगर हर कार्य जरूरी है तो थोड़ा सा समय हम ईश्वर के ध्यान में लगा ही सकते हैं। इससे दिमाग को बहुत शांति मिलती है।